Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna

View full book text
Previous | Next

Page 1148
________________ गौतम बुद्ध दिया । यह बंगीचा खरीदने के लिए सुदत्त ने जेत को उतने ही सिक्के अदा किये, जितने उस बगीचे में बिछाये जा सकते थे । प्राचीन चरित्रकोश नामक वन इसी काल में श्रावस्ती के विशाखा ने इसे 'पूर्वाराम' भेंट में दिया । श्रावस्ती के उग्रसेन ने भी इसी समय बौद्धधर्म का स्वीकार किया ( धम्मपद, ४.५९) । शुद्धोदन का निधन - इसे परनज्ञान होने के पश्चात् इसके पिता शुद्धोदन का देहान्त हुआ । इसके पिता की मृत्यु के पश्चात्, इसकी माता महाप्रजापति गौतमी एवं अन्य शाक्य स्त्रियों ने बौद्ध भिक्षुणी बनने की इच्छा प्रकट की । इसने तीन बार उस प्रस्ताव का अस्वीकार किया, किन्तु आगे चल कर आनंद की मध्यस्थता के कारण इसने स्त्रियों को बौद्धधर्म में प्रवेश करने की अनुज्ञा दी। तत्पश्चात् भिक्षुणी के संघ की अलग स्थापना की गयी, एवं जिस प्रकार वृद्ध भिक्षु ‘थेर' ( स्थविर ) नाम से प्रसिद्ध थे, उसी प्रकार वृद्ध भिक्षुणियाँ ' थेरी' ( स्थविरी) कहलायी जाने लगी । इन दो बुद्धसंघों का साहित्य क्रमशः 'थेरगाथा' एवं 'थेरीगाथा ' में संग्रहित है । गौतम बुद्ध उपलब्ध सामुग्री से प्रतीत होता है कि, वर्षाकाल के चार महिने यह श्रावस्ती के जेतवन एवं पूर्वाराम में व्यतीत करता था, एवं बाकी आठ महिने विभिन्न स्थानों में घूमने में व्यतीत करता था । भ्रमण गाथा--तदुपरांत अपनी आयु का ४५ वर्षों तक का काल इसने भारत के विभिन्न सोलह जनपदों में भ्रमण करने में व्यतीत किया, जिसकी संक्षिप्त जानकारी निम्न प्रकार है: -- १. छठवें साल में - श्रावस्ती, जहाँ इसने ' यमक गठिहारिय' नामक अभियानकर्म का दर्शन अपने . भिक्षुओं को दिया (धम्मपद. ३.१९९ ); २. सातवें साल में — मंकुलपर्बतः ३. आठवें साल में भर्ग ( मनोरथ . पूरणी. १.२१७ ); ४. नौंवें साल में - कौशांबी; ५. दसवें साल में—पारिलेयक्कवन; ६. ग्यारहवें साल में एकनाला ग्राम; ७. बारहवें साल में——- वेरांजाग्रामः ८. तेरहवें साल मैं चालिक पर्वत ९. चौदहवें साल में -- श्रावस्ती १०. पद्रहवें साल में --कपिलवस्तु; ११. सोलहवें एवं सत्रहवें साल में – अलावी; १२ अठारहवें एवं उन्नीसवें साल में चालिक पर्वत, १३. बीसवें साल में - राजगृह । • भ्रमणस्थल -- बुद्ध के द्वारा भेंट दिये गये स्थानों में निम्नलिखित प्रमुख थे:-- अग्रालवचेतीय; अनवतप्त सरोवर, अंधकविंद, आम्रपालीवन, अंत्रयष्टिकावन, अश्वपुर, आपण, उग्रनगर, उत्तरग्राम, उत्तरका, उत्तरकुरु, उरुवेलाकप्प, एकनाल, ओपसाद, कजंगल, किंबिला, कीटगिरि, कुण्डधानवन, केशपुत्र, कोटिग्राम, कौशांबी, खानुमत, गोशिंगशालवन, चंडालकम्प, चंपा, चेतीय गिरि, जीवकंचचन, तपोदाराम, दक्षिण गिरि, दण्डकम्प, देवदह, नगरक, नगारविंद, नालंदा, पंकधा, पंचशाला, पाटिकाराम, बेलुव, भद्रावती, भद्रिय, भगनगर, मनसाकेत, मातुला, मिथिला, मोरणिवाप, रम्य काश्रम, यष्टिवन, विदेह, वेनागपुर, बेलद्वार, वैशालि, साकेत, श्यामग्राम, शालबाटिक, शाला, शीलावती, सीतावन, सेतव्य, हस्तिग्राम, हिमालय पर्वत । देवदत्त से विरोध - बुद्ध के महानिर्वाण के पूर्व की एक महत्त्वपूर्ण घटना, इसका देवदत्त से विरोध कही जा सकती है। परिनिर्वाण के आठ साल पहले मगध देश का सुविख्यात सम्राट् एवं बुद्ध का एक एकनिष्ठ उपासक राजा बिंबिसार मृत हुआ । इस सुसंधी का लाभ उठा कर देवदत्त नामक बुद्ध के शिष्य ने बौद्धधर्म का संचालकत्व इससे छीनना चाहा। इसी कार्य में मगध देश के नये सम्राट अजातशत्रु ने देवदत्त की सहायता की । गृध्रकूट पर्वत से एक प्रचंड शीला गिरा कर देवदत्त ने इसका वध करने का प्रयत्न किया । यह प्रयत्न तो असफल हुआ, किन्तु आहत हो कर इसे जीवक नामक वैद्यकशास्त्रज्ञ का औषधोपचार लेना पड़ा । इसके वध का यह प्रयत्न असफल होने पर, देवदत्त ने अपने पाँच सौ अनुयायियों के साथ एक स्वतंत्र सांप्रदाय स्थापन करना चाहा, जिसका मुख्य केंद्र गयाशीर्ष में था । किन्तु सारीपुत्त एवं मौदलायन के प्रयत्नों से देवदत्त का यह प्रयत्न भी असफल हुआ, एवं वह अल्पावधी में ही मृत हुआ । अंतयात्रा बुद्ध के अंतीमयात्रा का सविस्तृत वर्णन 'महापरिनिर्वाण' एवं ' महासुदर्शन' नामक सूत्र ग्रंथों में प्राप्त है । गृध्रकूट से निकलने के पश्चात् यह अंत्रयष्टिका, नालंदा, पाटलिग्राम, गोतमद्वार, गोतमतीर्थ, घटन क्रम – प्रचलित बौद्ध साहित्य से प्रतीत होता है कि, पच्चीस वर्ष की आयु में इसे परमज्ञान की प्राप्ति हुई। उसके बाद के पच्चीस साल इसने भारत के विभिन्न जनपदों के भ्रमण में व्यतीत किये। इस भ्रमणपर्व के पश्चात् पच्चीस साल तक यह जीवित रहा, किन्तु बौद्धजीवन से संबंधित इस पर्व की अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। ११२७

Loading...

Page Navigation
1 ... 1146 1147 1148 1149 1150 1151 1152 1153 1154 1155 1156 1157 1158 1159 1160 1161 1162 1163 1164 1165 1166 1167 1168 1169 1170 1171 1172 1173 1174 1175 1176 1177 1178 1179 1180 1181 1182 1183 1184 1185 1186 1187 1188 1189 1190 1191 1192 1193 1194 1195 1196 1197 1198 1199 1200 1201 1202 1203 1204 1205 1206 1207 1208 1209 1210 1211 1212 1213 1214 1215 1216 1217 1218 1219 1220 1221 1222 1223 1224 1225 1226 1227 1228