Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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गौतम बुद्ध
बौद्ध व्यक्ति
गौतम बुद्ध
कोटीग्राम आदि ग्रामों से होता हुआ वैशाली नगरी में रूप में, वे दो विभिन्न तत्त्वज्ञान एक ही तत्वज्ञान के पहुँच गया। वहाँ लिच्छवी के नगरप्रमुख के निमंत्रण का दो पहलु कहे जा सकते है। इस तत्वज्ञान में मानवीय अस्वीकार कर, बुद्ध ने आम्रपाली गणिका के आमंत्रण का जीवन दुःवपूर्ण बताया गया है, एवं उस दुःख को उत्पन्न स्वीकार किया। उसी समय आम्रपाली ने वैशालि में करनेवाले कारणों को दूर कर उससे छटकारा पाने स्थित अपना 'आम्रपालीवन' इसे अर्पित किया । पश्चात यह का संदेश बुद्ध के द्वारा दिया गया है। मानवीय जीवन वैशालि से वेलुवग्राम गया, जहाँ यह बीमार हुआ। की इस दुःखरहित अवस्था को बुद्ध के द्वारा 'विाण' ___ महापरिनिर्वाण--बीमार होते ही इसने आनंद से कहा गया है। कहा "मेरा अवतारकार्य समाप्त हो चुका है। जो कुछ बुद्ध के द्वारा प्रणीत 'निर्वाण' की कल्पना परलोक में भी मुझे कहना था वह मैने कहा है। अब तुम अपनी 'मुक्ति' प्राप्त कराने का आश्वासन देनेवाले वैदिक हिंदुधर्म ही ज्योति में चलो, धर्म की शरण में चलो'। पश्चात् से सर्वस्वी भिन्न है। मुमुक्षु साधक को इसी आयु में मुक्ति इसने जन्मचक्र से छुटकारा पाने के लिए एक चतुःसुत्री मिल सकती है, एवं उसे प्राप्त करने के लिए चित्तशुद्धि कथन की, जिसमें पवित्र आचरण, तपःसाधन, ज्ञान- एवं सदाचरण की आवश्यकता है, यह तत्त्व बुद्ध ने ही साधना एवं विचारस्वातंत्र्य का समावेश था। प्रथम प्रतिपादन किया, एवं इस प्रकार धर्म को 'परलोक'
पश्चात् मल्हों के अनेक गाँवों से होता हुआ यह पावा का नहीं, बल्कि 'इहलोक' का साधन बनाया। पहुँच गया, वहाँ चुन्द नामक लुहार ने 'सूकरमद्दव' इस निर्वाणप्राप्ति के लिए, 'मध्यममाग' से चलने का . नामक सूकरमाँस से युक्त पदार्थ का भोजन इसे कराया, आदेश बुद्ध के द्वारा दिया गया है, एवं देहदण्ड एवं जिस कारण रक्तातिसार हो कर कुशीनगर के शालवन शारीरिक सुखोपभोग इन दोनों आत्यंतिक विचारों का . में इसका महापरिनिर्वाण (बूझना) हुआ। महापरि- त्याग करने की सलाह बुद्ध के द्वारा ही गयी है। बुद्ध के . निर्वाण के पूर्व अपना अंतीम संदेश कथन करते हुए द्वारा प्रणीत 'मध्यममार्ग' के तत्त्वज्ञान में, निर्वाणप्राप्ति : इसने कहा था, 'संसार की सभी सत्ताओं की अपनी के निम्नलिखित आठ मार्ग बताये गये है:-१.सुयोग्य अपनी आयु होती है । अप्रमाद से काम करते रहो, यही धार्मिक दृष्टिकोन, जो हिंसक यज्ञयाग, एवं परमेश्वरप्रधान - 'तथागत' की अंतिम वाणी है।
धार्मिक तत्वज्ञान से अलिप्त है; २. सुयोग्य मानसिक ___ महापरिनिर्वाण के समय इसकी आयु अस्सी वर्ष की निश्चय, जो जातीय, वर्णीय एवं सामाजिक भेदाभेद से
थी, एवं इसका काल इ. पूर्व ५४४ माना जाता है। । अलिप्त है; ३. सुयोग्य संभाषण, जो अमृत, काम, क्रोध, __ दाहकर्म--कुशीनगर के मल्लों ने इसका दाहकर्म कर, | भय आदि से अलिप्त है; ४. सुयोग्य वर्तन, जो हिंसा, चौर्यएवं इसकी धातुओं (अस्थियाँ) को भालाधनुषों से घिर, कर्म एवं कामक्रोधादि विकारों से अलिप्त हैं; ५. सुयोग्य कर आठदिनों तक नृत्यगायन किया । पश्चात् इसकी धातु जीवन, जो हिंसा आदि निषिद्ध व्यवसायों से अलिप्त निम्नलिखित राजाओं ने आपस में बाँट लिये:-१. है; ६. सुयोग्य प्रयत्नशीलता, जो व्याक्ति के मानसिक अजातशत्रु (मगध ) २. लिच्छवी (वैशालि); ३. | एवं नैतिक उन्नति की दृष्टिकोन से प्रेरित है: ७. सयोग्य शाक्य (कपिलवस्तु); ४. बुलि (अल्लकप्प ); ५.. तपस्या, जिसमें निर्वाग के अतिरिक्त अन्य कौनसे भी कोलिय ( रामग्राम); ६. मल्ल (पावा ); ७. एक ब्राह्मण विचार निषिद्ध माने गये हैं; ८. सुयोग्य जागृति, जिसमें (बेठद्वीप)। बुद्ध की रक्षा पिप्तलीवन के मोरिय राजाओं मानवीय शरीर की दुर्बलता की ओ सदैव ध्यान दिया ने ले ली।
जाता है। ___ पश्चात् बुद्ध की अस्थियों पर विभिन्न स्तूप बनवाये गये। बुद्ध की चतु:सूत्री-बुद्ध के अनुसार, निर्वाणेच्छ किसी पवित्र अवशेष के उपर यादगार के रूप में वास्तु साधक के लिए एक चतु:सूत्रीय आचरण संहिता बतायी बनवाने की पद्धति वैदिक लोगों में प्रचालित थी । बौद्ध गयी है, जिसमें मेत्त (सारे विश्व से प्रम), करुणा, सांप्रदायी लोगों ने उसका ही अनुकरण कर बुद्ध के मुदित (सहानुभूतिमय आनंद), उपेख्य (मानसिक अवशेषों पर स्तूपों की रचना की।
| शांति) ये चार आचरण प्रमुख कहे गये हैं। तत्त्वज्ञान--बुद्ध का समस्त तत्वज्ञान तात्त्विक एवं प्रमुक बौद्ध सांप्रदाय---बुद्ध की मृत्यु के पश्चात् , नैतिक भागों में विभाजित किया जा सकता है। किन्तु सही | बौद्ध संघ अनेकानेक बौद्ध सांप्रदायों में विभाजित हुआ,
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