Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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देवदत्त
सहायता से बुद्ध का वध करने के दो तीन प्रयत्न भी किये। वे प्रयत्न असफल होने पर इसने बौद्ध संघ में विभेद निर्माण करने का भी प्रयत्न किया। इस प्रयत्न में असफलता प्राप्त होने के कारण, अत्यंत निराश अवस्था में जेतवन में इसकी मृत्यु हुई ( विनय ४.६६; गौतम बुद्ध देखिये) ।
बौद्ध व्यक्ति
प्रसेनजित् -- कोशल देश का एक सुविख्यात राजा, जो गीतम बुद्ध का परम मित्र एवं शिष्य था। यह महा कोशल राजा का पुत्र था, एवं इसकी शिक्षा तक्षशिला में हुई थी, जिस समय मल्लराजकुमार बंधुल एवं लिच्छवी राजकुमार महालि इसके सहाध्यायी थे। शिक्षा समाप्त करने के पश्चात् अपने पिता के द्वारा यह कोशल देश का राजा बनाया गया। राजा होने के पश्चात् अल्पावधि में ही इसका बुद्ध से परिचय हुआ, एवं यह बौद्धधर्म का निःसीम उपासक बना था ।
इसकी बहन कोसलादेवी का विवाह मगध सम्राट् दिवसा से हुआ था। आगे चल कर बिंबिसार के पुत्र अजातशत्रु ने अपने पिता का वध किया, एवं यह स्वयं मगध देश का राजा बन गया। प्रसेनजित् की बहन कोसलादेवी पतिनिधन के दुख से मृत हुई। तत्पश्चात् इसने अजातशत्रु पर आक्रमण कर उसे वेदी बनाया। पश्चात् इसने उससे संधि की एवं अपने वजिरा नामक बहन उसे विवाह में दे दी ( जातक २० २३७) ।
बिंबिसार श्रेणिय शिशुनाग-मगध देश का एक सुविख्यात सम्राट्, जो गौतम बुद्ध एवं वर्धमान महावीर के अनन्य उपासकों में से एक था। इसे 'अप्य एमे 'हर्यणक ' नामांतर भी प्राप्त थे । इसका राज्यकाल ५२८ इ. १. ५०० इ.पू. माना जाता है।
बिंबिसार
राजधानी बसायी । इस नगर की रचना महागोविंद नामक स्थापत्यविशारद के द्वारा की गयी थी।
बौद्ध साहित्य में - बौद्ध साहित्य के अनुसार, बिंबिसार एवं गौतम बुद्ध शुरू से ही अत्यंत परम मित्र थे, एवं सारनाथ में किये गये ' धर्मचक्रप्रवर्तन' के प्रवचन के पश्चात् गौतम बुद्ध सर्वप्रथम इससे ही मिलने आया था। तत्पश्चात अपने परिवार के ग्यारह लोगों के साथ यह बौद्ध बन गया। अपने सारे जीवनकाल में यह बौद्धधर्म की सहायता करता रहा ( विनय. १.३५ ) ।
इसके पिता का नाम भट्टिय था, जो कुमारसेन राजा का सेनापति था । भट्टिय ने तालजंघ राजा के द्वारा कुमारसेन लाव करवा कर इस मगध देश के राजगद्दी पर बैठाया। राज्य पर आते ही इसने अंगराज ब्रह्मदत्त पर आक्रमण कर, अंगदेश का राज्य मगध राज्य में शामिल किया। पश्चात् लिपी राजकुमारी चेलना एवं कोशलराजकुमारी लिच्छवी से विवाह कर इसने कोशल एवं वृद्धि देशों से मैत्री संपादन की महाबा के अनुसार, इसके राज्य का विस्तार तीन सौ योजन था, एवं उसमें अस्सी हजार ग्राम थे।
इसके पूर्वकाल में मगध देश की राजधानी गिरिवज्र नगरी में थी। इसने उसे बदल कर 'राजगृह' नामक नयी
धार्मिक दृष्टिकोण -- बौद्ध एवं जैन साहित्य में, बिंबिसार के द्वारा बौद्ध एवं जैन धर्मों को स्वीकार किये जाने के निर्देश प्राप्त है। पौराणिक साहित्य में भी इसके द्वारा अनेक ब्राह्मणों की परामर्ष लेने का उल्लेख किया गया है। इससे प्रतीत होता है कि, यह किसी भी एक धर्म को स्वीकार न कर, तत्कालीन भारतीय परंपरा के अनुसार सभी धर्मों का एवं धर्मप्रचारकों की समान रूप से परामर्श लेता था। इसके काल में चंद्रधर्म संघ विशेष मियाशील एवं संगठित था, जिस कारण जैन एवं पौराणिक साहित्य की अपेक्षा बौद्ध साहित्य में इसका निर्देश एवं कथाएँ विशेषरूप से पायी जाती है।
मृत्यु- बिंबिसार का अन्त अत्यंत दुःखपूर्ण हुआ। इसके पुत्र अजातशत्रु को युद्ध के एक शिष्य देवदत्त ने अपनी सिद्धि के प्रभाव से मोहित किया । पश्चात् देवदत्त ने अगत को अपने पिता विसार का वध करने की अजातशत्रु मंत्रणा दी । किन्तु यह प्रयत्न असफल हुआ, एवं उस प्रयत्न में अजातशत्रु देवदत्त के साथ पकड़ा गया | पश्चात् इसने अजातशत्रु को क्षमा कर उसे मगधदेश ला राज्य प्रदान किया, एवं यह स्वयं राज्य निवृत्त हुआ ।
राज्यसत्ता प्राप्त होते ही अजातशत्रु ने इसे कैद कर लिया एवं इसे भूखा प्यासा रख कर इस पर अनन्वित अत्याचार करना प्रारंभ किया। इसका फोठरी में घूमना फिरना बंद करने के लिए नाई के द्वारा उसके पैरों में उत्पन्न कराये, एवं उसमें नमक एवं मद्यार्क मरवाया । पश्चात् अजातशत्रु ने कोयले पश्चात् अजातशत्रु ने कोयले के द्वारा इसके पाँव जला दिये। उसी क्लेश में इसकी मृत्यु हो गयी।
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अजातशत्रु, उदयन, महापद्म नंद, चंद्रगुप्त मौर्य आदि बौद्धकालीन सम्राट् जैन, हिन्दू एवं धर्म का समानरूप से आदर करते थे, जिससे प्रतीत होता है कि तत्कालीन राजा किसी एक धर्म को स्वीकार न कर सभी धर्मों को आश्रय प्रदान करते थे ।
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