Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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निमि वंश
पौराणिक राजवंश
सोम वंश
वैदिक साहित्य में निर्दिष्ट उपर्युक्त बहुत सारे राजाओं | आगे चल कर, ये लोग क्षत्रियधर्म छोड़ कर ब्राह्मण के नाम पौराणिक साहित्य में प्राप्त वंशावलियों में अप्राप्य बन गये, एवं आग्निवेश्यायान नाम से सुविख्यात हुए। है। संभव है कि, इन सारे राजाओं ने क्षत्रिय धर्म दिष्ट राजवंश में भी नरिष्यंत नामक एक उपशाखा का का त्याग कर ब्राह्मण धर्म स्वीकार लिया होगा। इस निर्देश पाया जाता है, किन्तु वे लोग आद्य नरिष्यंत शाखा वर्णान्तर के कारण उनका राजकीय महत्त्व कम होता गया, से बिलकुल विभिन्न थे। जिसके ही परिणाम स्वरूप पौराणिक राजवंशों में से उनके | नृग वंश (सू. नृग.)-मनु के इस पुत्र के वंश का नाम हटा दिये गये होंगे।
निर्देश भागवत में पाया जाता है, जिसमें सुमति, वसु, नभग वंश--(सू. नभग.) मनु के पुत्र नभग के द्वारा ओघवत् नामक राजा प्रमुख थे (भा. ९.२.१७-१८)। प्रस्थापित किये गये वंश का निर्देश पुराणों में अनेक स्थान - शर्याति वंश (सू. शर्याति)-मनु के शांति नामक पर प्राप्त है ( ब्रह्मांड. ३.६३.५-६; भा. ९.४-६; ब्रह्म. | पुत्र ने गुजरात देश में आकार इस स्वतंत्र राजवंश की ७.२४; वायु. ८८.५-७)। इनका राज्य गंगानदी के स्थापना की । शयाति राजा के पुत्र का नाम आनत था, . दोआब में कहीं बसा हुआ था । इस वंश में नाभाग, जिसके ही कारण,प्राचीन गुजरात देश को आनत नाम प्राप्त अंबरीष, विरूप, पृषदश्व, रथीतर आदि राजा उत्पन्न हुआ था। गुजरात में स्थित हैहय राजवंशीय राजाओं से हुए । किन्तु आगे चल कर सोमवंशीय ऐल राजाओं के इन लोगों का अत्यंत घनिष्ठ संबंध था। आक्रमण के कारण इनका राज्य आदि सारा वैभव चला शर्याति राजवंश की जानकारी विभिन्न पुराणों में प्राप्त गया, एवं ये लोग वर्णान्तर कर के अंगिरस्गोत्रीय रथीतर है ( भा. ९.३; ह. वं. १.१०.३१-३३: वायु. ८६,२३ब्राह्मण बन गये।
३०; ब्रह्मांड. ३.६१.१८-२०६३.१; ४, ब्रह्म. ७.२७नरिष्यन्त वंश--(सू. नरि.) मनु के पुत्र नरिष्यन्त २९)। इस वंश में निम्नलिखित राजा उत्पन्न हुए थे.के द्वारा प्रस्थापित किये गये इस वंश का निर्देश पुराणों १. आनर्त; २. रोचमान रेवत; ३. ककुमत् । इन में से में अनेक स्थान पर प्राप्त है (भा. ९.२.१९-२२; वायु. ककुमत् राजा की कन्या रेवती बलराम को विवाह में दी ८६.१२-२१)। इस वंश में उत्पन्न राजाओं में निम्न- गयी थी। इनकी राजधानी कुशस्थली (द्वारका) नगरी में थी। लिखित राजा प्रमुख थे:-१. चित्रसेन; २. दक्ष; इस वंश के आद्य संस्थापक शांति राजा की कन्या - ३. मीट्वस; ४. कूर्च; ५. इंद्रसेन; ६. वीतिहोत्र ७.सत्य- का नाम सुकन्या था, जिसका विवाह च्यवन ऋषि से श्रवसः ८. उरुश्रवम्; १. देवदत्त; १०. कालीन जातुकय; हुआ था। शातिकन्या सुकन्या एवं च्यवन ऋषि की ११. अग्निवेश्य ।
कथा वैदिक साहित्य में प्राप्त है।
(२) सोमवंश (सो.) सोमवंश का महत्त्व-पौराणिक साहित्य में निर्दिष्ट बहुत- उत्तरभारत,एवं उत्तरीपश्चिम दक्षिणी भारत पर सोमवंशीय सारा राजकीय इतिहास सोमवंश में उत्पन्न हुए राजाओं राजाओं का ही राज्य था, जिनकी संक्षिप्त जानकारी का, एवं उनके वंशजों का इतिहास कहा जा सकता है। निम्नलिखित है:यद्यपि प्राचीन इतिहास के प्रारंभ में सूर्यवंश में उत्पन्न हुए राजाओं का भारतवर्ष में काफी प्राबल्य था, फिर भी
(१) पौरव शाखा-इनका राज्य काशी एवं शूरसेन उत्तरकालीन इतिहास में उनकी राजसत्ता अयोध्या, विदेह।
देश छोड़कर गंगा एवं यमुनानदियों के समस्त समतल एवं वैशालि राज्यों से ही मर्यादित रही। उक्त उत्तर
प्रदेश में स्थित था। इस वंश के राज्यों में हस्तिनापुर, कालीन इतिहास में मांधातृ एवं सगर ये केवल दो ही
पांचाल, चेदि, वत्स, करूप, मगध एवं मत्स्य आदि राज्य सूर्यवंशीय राजा ऐसे थे, जिन्होंने समस्त उत्तरभारत
प्रमुख थे। वर्ष पर अपना स्वामित्व प्रस्थापित किया था। .
(२) यादव शाखा--इन लोगों का राज्य पश्चिम में उत्तरकालीन भारतीय इतिहास में अयोध्या, विदेह राजपुताना मरुभूमि से लेकर उत्तर में यमुना नदी तक एवं वैशालि इन तीन देशों को छोड़ कर बाकी सारे फैला हुआ था।
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