Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna

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Page 1147
________________ गौतम बुद्ध बौद्ध व्यक्ति गौतम बुद्ध 'मध्यम प्रतिपदा' (मध्यम मार्ग) को स्वीकरणीय माना | इसी काल में बुद्ध के विरोधकों की संख्या भी है, जो विचारप्रणाली आँखे खोल देनेवाली एवं ज्ञान बढ़ती गयी, जो इसे पाखंडी मान कर अपने वंध्यत्व, प्राप्त करनेवाली है। आदि आपत्तियों के लिए इसे जिम्मेदार मानने लंग। मध्यम मार्ग का प्रतिपादन करनेवाला बुद्ध का यह | किन्तु इसने इन आक्षेपों को तर्कशुद्ध एवं सप्रमाण उत्तर पहला प्रवचन 'धर्मचक्रप्रवर्तन सूत्र' नाम से सुविख्यात दे कर स्वयं को निरपराध साबित किया (विनय १.) है। जिस प्रकार राजा लोग चक्रवर्ती बनने के लिए अपने | कपिलवस्तु में-इसका यश अब कपिलवस्तु तक रथ का चक्र चलाते है, वैसे ही इसने धर्म का चक्र पहुँच गया, एवं इसके पिता शुद्धोपन ने इसे खास निमंत्रण प्रवर्तित किया। वे चातस्य के दिन जिसमें संन्यासियों दिया । पश्चात् फाल्गुन पौर्णिमा के दिन, यह अपने बीस के लिए यात्रा निषिद्ध मानी गयी है। इसी कारण चार हज़ार भिक्षुओं के साथ कपिलवस्तु की ओर निकल पड़ा महिनों तक यह सारनाथ में ही रहा। इसी काल में (थेरगाथा ५२७.३६)। कपिलबस्तु में यह न्यग्रोधाराम इसने 'अन्तलावण सूत्र' नामक अन्य एक प्रवचन किया, मे रहने लगा, एवं वहीं इसने 'वेशान्तर जातक का प्रणयन एवं इसके शिष्यों में साठ भिक्षु एवं बहुत से उपासक किया। दूसरे दिन इसने अन्य भिक्षत्रों के साथ कपिलवस्तु (गृहस्थ अनुयायी) शामिल हो गये। में भिक्षा माँगते हुए भ्रमण किया । पश्चात इसका पिता शुद्धोदन अन्य अन्य भिक्षुओं के साथ इसे अपने बुद्धसंघ की स्थापना--अपने उपयुक्त भिक्षुओं को | महल में ले गया, जहाँ इसकी पत्नी यशोधरा के इसने 'संघ' (प्रजातंत्र) के रूप में संघटित किया, | अतिरिक्त सभी स्त्री पुरुषों में इसका उपदेश श्रवण किया। जहाँ किसी एक व्यक्ति की हुकूमत न हो कर, संघ की | पश्चात् यह सारोपुत्त एवं मौद्गलायन इन दो शिष्यों - ही सत्ता चलती थी । चातुर्मास्य समाप्त होते ही इसने | के साथ यशोधरा के महल में गया, एवं उसे अपने संघ के भिक्षुओं आज्ञा दी, 'अब तुम जनता के | 'चण्डकिन्नर जातक' सुनाया। इसे देखते ही यशोधरा हित के लिए घूमना प्रारंभ करो। मेरी यही इच्छा है गिर पड़ी एवं रोने लगी। किन्तु पश्चात् उसने अपने कि, कोई भी दो भिक्षु एक साथ न जाये, किन्तु अलग आप को सम्हाला, एवं इसका उपदेश स्वीकार लिया। स्थान पर जा कर धर्मोपदेश करता रहे। | पश्चात् इसके पुत्र राहुल के द्वारा 'पितृदाय' की माँग गयाशीर्ष' में--चातुर्मात्य के पश्चात् यह सेनानी- किये जाने पर इसने उसे भी प्रत्रज्या (संन्यास) का ग्राम एवं उरुवेला से होता हुआ गया पहुँच गया। वहाँ दान किया। 'आदिन्त परियाय' नामक सुविख्यात प्रवचन दिया, यह सुन कर शुद्धोदन को अत्यधिक दुःख हुआ, जिस कारण इसे अनेकानेक नये शिष्य प्राप्त हुए। जिससे द्रवित हो कर इसने यह नियम बनाया कि, उनमें तीन काश्यप बन्धु भी थे, जो बड़े विद्वान् कर्मकाण्डी अपनी मातापिताओं की संमति के विना किसी भी थे, एवं जिनके एक सहस्त्र शिष्य थे । इसका प्रवचन सुन बालक को भिक्षु न बना दिया जाय। कर उन्होंने यज्ञों की सभी सामग्री निरंजना नदी में बहा इसकी इस कपिलवस्तु की भेट में ८० हजार शाक्य दी, एवं वे इसके शिष्य बन कर इसके साथ निकल पड़े। लोग भिक्षु बन गये, जिनमें आनंद एवं उपलि प्रमुख कश्यप बन्धुओं के इस वर्तन का काफी प्रभाव मगध की: | थे। आगे चल कर आनंद इस का 'अस्थावक' (खीय जनता पर पड़ा। सहायक) बन गया, एवं उपालि इस के पश्चात् बौद्ध संघ राजगृह में- पश्चात् यह अपने शिष्यों के साथ का प्रमुख बन गया। राजगृह के श्रेणिक बिंबिसार राजा के निमंत्रण पर उस पुनश्च राजगृह में-एक वर्ष के भ्रमण के पश्चात् यह नगरी में गया । वहाँ राजा ने इसका उचित आदरसत्कार पुनः एक बार राजगृह में लौट आया, जहाँ श्रावस्ती का किया, एवं राजगृह में स्थित वेदवन बुद्धसंघ को भेंट में | करोड़पति सुदत्त अनाथपिंडक इसे निमंत्रण देने आया। दे दिया। इसी नगर में रहनेवाले सारिपुत्त एवं मौद्गलायन | इस निमंत्रण का स्वीकार कर यह वैशाली नगरी होता नामक दो सुवेख्यात ब्राह्मण बुद्ध के अनुयायी बन गये, | हुआ श्रावस्ती पहुँच गया। वहाँ सुदत्त ने राजकुमार जो आगे चल कर ' अग्रश्रावक' (प्रमुख शिष्य ) कहलाये जेत से 'जेतवन' नामक एक बगीचा खरीट कर, उसे जाने लगे (विनय. १-२३)। | बुद्ध एवं उसके अनुयायियों के निवास के लिए दान में दे ११२६

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