Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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नेमिनाथ
जैन व्यक्ति
भद्रबाहु
भी उपलब्ध है। कई अभ्यासकों के अनुसार, पौराणिक यह संवाद श्रावस्ती में तिंदुक उद्यान में हुआ था, साहित्य में निर्दिष्ट अरिष्टनेमि राजा संभवतः यही होगा। जिसमें भिक्षुओं के लिए ब्रह्मचर्यपालन की, एवं श्वेतवस्त्रों
पकुध काच्चायन--एक आचार्य, जो 'अशाश्वत | की आवश्यकता पुनरुच्चारित की गयी थी। इस संवाद में वाद' नामक सिद्धांत का आद्य जनक माना जाता है । वर्धमान | महावीर शिष्य गौतम ने कहा था, 'प्रारंभ में भिक्ष सीधेसाधे महावीर के सात प्रमुख विरोधकों में से यह एक था। एवं विरक्त प्रकृति के थे। आगे चल कर वे अधिक चंचल प्रश्नोपनिषद् में निर्दिष्ट ककुद कात्यायन संभवतः यही | प्रकृति के हो गये, एवं धर्माचरण की ओर उनकी प्रवृत्ति होगा। श्वेत दिगंबर सांप्रदाय के 'सूयगड' नामक सूत्रग्रंथ कम होने लगी। इसी कारण नये नियमों का निर्माण 'में इसका निर्देश प्राप्त है (सूय, ३.१.१ -१६)। महावीर को करना पड़ा। पार्श्वनाथ - जैनों का तेइसवाँ तीर्थकर, जिसका काल
पूरण कस्सप-एक आचार्य, जो महावीर के सात ७५० इ. पू. माना जाता है। जैन धर्म की तात्त्विक
विरोधकों में से एक था। इसका तत्त्वज्ञान ' अक्रियावाद' विचारप्रणाली निर्माण करने का श्रेय इसे दिया जाता है,
नाम से सुविख्यात है, जिसके अनुसार पाप एवं पुण्य की जिसका परिवर्धन एवं प्रचार करने का काम आगे चल
सारी कल्पनाएँ अनृत एवं कल्पनारम्य मानी गयी थीं। कर जैनों का चोवीसवाँ तीर्थ कर वर्धमान महावीर एवं
इसके तत्त्वज्ञान के अनुसार, खून चोरी व्यभिचार आदि उसके शिष्यों ने किया (महावीर वर्धमान देखिये )।
से मनुष्यप्राणी को पाप नहीं लगता था, एवं गंगालान
दानधर्म आदि से पुण्यप्राप्ति नहीं होती थी। इस प्रकार : बनारस का राजा अश्वसेन का यह पुत्र था, एवं इसकी
इसका तत्त्वज्ञान चार्वाक के तत्त्वज्ञान से काफी मिलता माता का नाम वामा था। यद्यपि यह राजा का पुत्र था,
जुलता प्रतीत होता है (संयुत्त. २.३.१०)। फिर भी इस ने अपनी सौ वर्ष की आयु में से सत्तर वर्ष
भद्रबाहु-एक सुविख्यात जैन आचार्य, जो दक्षिण धार्मिक तत्त्वांचंतन में, एवं निर्वाण प्राप्ति के हेतु तपस्या में
| भारत में श्रवण वेलगोल ग्राम में प्रसृत हुए 'श्वतांबर जैन व्यतीत किये । इसने साधकों के लिए एक चतु:सूत्री
| सांप्रदाय' का आद्य जनक माना जाता है। इसकी जीवन युक्त आचरण संहिता का प्रणयन किया था। इस
| विषयक सारी सामग्री ‘भद्रबाहुचरित्र' नामक ग्रंथ में आचरण संहिता का अनुगमन करनेवाले इसके अनेक
प्राप्त हैं। अनुयायी उत्पन्न हुए, जिनमें महावीर के माता पिता
बारह वर्षों का अकाल--अवन्ति देश के संप्रति चंद्रगुप्त सिद्धार्थ एवं त्रिशला प्रमुख थे। इनके अनुयायियों
राजा का यह राजपुरोहित था, एवं इसने उसे जैनधर्म में मगध देश के लोग प्रमुख थे।
की दीक्षा दी थी । एकबार एक वणिक् के घर यह धर्मोकशस्थली नगरी के प्रसेनजित् राजा की प्रभावती पदेशार्थ गया था, जहाँ उस वणिक् के साठ दिन के नामक कन्या से इसका विवाह हुआ था, जिसे इसने एक छोटे शिशु ने इसे 'चले जाओ' कहा । यह दुःश्चिन्ह कलिंग देश के यवन राजा से छुड़ाया था।
समझ कर, यह अपने पाँचसौ. शिष्यों को साथ लेकर, इसकी राजप्रतिमा परस्पर सटे हुए दो नागशिरों से अवन्ति देश छोड़ कर दक्षिण देश चला गया। पश्चात् बनी थी, जो इसकी हरएक प्रतिमा एवं इसके द्वारा खोदी अवन्ति देश में लगातार बारह वर्षों तक अकाल उत्पन्न गयी हरएक गुफा पर पायी जाती है।
हुआ, जिससे देशांतर के कारण यह एवं इसके शिष्य केशी-गोतमसंवाद-इसके द्वारा साधकों के लिए निर्माण | बच गये। किये गये आचारसंहिता में इसके पश्चात् २५० वर्षों के श्रवण बेलगोल में--श्रवण वेलगोल में पहुँचते ही इसने बाद उत्पन्न हुए महावीर ने पयोप्त परिवर्तन किये, एवं 'श्वेतांबर जैन' सांप्रदाय की स्थापना की। इसके साथ इसके द्वारा विरचित आचरण के बहुतसारे नियम अधिक- ही 'संप्रति मौर्य' दक्षिण में आया था, एवं इसकी सेवा तर कठोर बनाये । कौन सी सामाजिक परिस्थिति के कारण | करता रहा। महावीर को ये परिवर्तन अवश्यक प्रतीत हुए, इसका वृद्धकाल आते ही इसने अपना सारा शिष्यपरिवार विवरण करनेवाला एक संवाद 'उत्तराध्ययन सूत्र' में प्राप्त अपने प्रमुख शिष्य विशाखाचार्य को सौंप दिया, एवं है, जो पार्श्वनाथशिष्य केशिन् , एवं महावीरशिष्य गौतम | यह अपनी मृत्यु की राह देखने लगा। इसकी मृत्यु के बीच हुए संबाद के रूप में वर्णित है ।
| के पश्चात् इसके प्रिय शिष्य संप्रति मौर्य राजा ने १११८