Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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भद्रबाहु .
प्राचीन चरित्रकोश
महावीर
'संलेखना' (प्रायोपवेशन ) की । इसका निर्वाणकाल २९७ (बंधनरहित ) एवं 'महावीर ' ( परम पराक्रमी पुरुष) ई. पू. माना जाता है।
| कहा गया है। जैन वाङ्गमय में इसे 'वीर,'' अतिवीर,' जैन साहित्य में प्राप्त परंपरा के अनुसार, सम्प्रति 'सन्मतिवीर' आदि उपाधियाँ भी प्रदान की गयी हैं। मौर्य को ही चंद्रगुप्त मौर्य माना गया है। किंतु वह इसी 'जिन' के अनुयायी होने के कारण, इस धर्म के असंभव प्रतीत होता है।
अनुयायी आगे चल कर जैन' नाम से सुविख्यात हुए। ग्रंथ-इसके नाम पर निम्नलिखित ग्रंथ उपलब्ध है.- बुद्ध का समकालीन-गौतम बुद्ध के ज्येष्ठ समवर्ती १. श्रीमंडलप्रकरणवृत्ति (ज्योतिष); २. चतुर्विशाति- तत्त्वज्ञ के नाते महावीर का निर्देश ' दीघनिकाय' आदि प्रबन्धः ३. दशकालिका नियुक्ति; ४. आवश्यकसूत्रनियुक्ति; | बौद्ध ग्रंथों में प्राप्त है । मगध देश के अजातशत्र राजा ५. उत्तराध्यायनसूत्रनियुक्ति; ६. आचारांगसूत्रनियुक्ति; से मिलने आये छः श्रेष्ठ धार्मिक तत्त्वज्ञों में महावीर एक ७. सूत्रकृतांगसूत्रनियुक्ति; ८. दशश्रुतस्कंधसूत्र; ९. था, जिसका निर्देश बौद्ध ग्रंथों में 'निगंठ नातपुत्त' नाम कल्पसूत्र; १०: व्यवहारसूत्र; ११. सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्र; १२. | से किया गया है। अजातशत्रु राजा से मिलने आये अन्य श्रीभाषितसूत्र ।
पाँच धार्मिक तत्वज्ञों के नाम निम्नप्रकार थें:- १. मक्खली महावीर वर्धमान--जैन धर्म का अंतिम एवं गोसार, जो सर्वप्रथम महावीर का ही शिष्य था, किन्तु चोबीसवाँ तीर्थकर, जो उस धर्म का सर्वश्रेष्ठ संवर्धक | उसने आगे चल कर आजीवक नामक स्वतंत्र सांप्रदाय की माना जाता है। अपने से २५० साल पहले उत्पन्न हुए | स्थापना की; २. पूरण कस्सप, जो 'आक्रियावाद' नामक पार्श्वनाथ नामक तत्त्वज्ञ के धर्मविषयक तत्वज्ञान का परि- तत्वज्ञान का जनक था; ३. अजित केशि कंबलिन्, जो वर्धन कर, महावीर ने अपने धर्मविषयक तत्वज्ञान का 'उच्छेदवाद' नामक तत्त्वज्ञान का जनक माना जाता है. निर्माण किया । इसीसे आगेचल कर जैनधर्मियों के | ४. पकुध काच्यायन, जो 'अशाश्वत ज्ञान' नामक तत्त्वज्ञान प्रातःस्मरणीय माने गये तेइस तीर्थकरों की कल्पना का | का जनक माना जाता है, ५. संजय बेलट्टीपुत्त, जिसका 'विकास हुआ, जिसमें पार्श्वनाथ एवं वर्धमान क्रमशः तत्त्वज्ञान — विक्षेपवाद' नाम से प्रसिद्ध है। तेईसवाँ एवं चोबीसवाँ तीर्थकर माने गये हैं।
जन्म--वृजि नामक संघराज्य में वैशालि नगरी के - जैन साहित्य में हर एक तीर्थकर का विशिष्ट शरिरिक समीप स्थित कुण्डग्राम में इसका जन्म हुआ। ५९९ ई. चिन्ह (लांछन) वर्णन किया गया है, जहाँ वर्धमान | पू. इसका जन्मवर्ष माना जाता है। यह ज्ञातृक वंश में •का लांछन 'सिंह' बताया गया है। इसका एक और | उत्पन्न हुआ था, एवं इसके पिता का नाम सिद्धार्थ था. जों
भी मंगलचिन्ह प्रचलित है, जो 'वर्धमानक्य' नाम से | 'वृजिगण' में से एक छोटा राजा था। इसकी सुविख्यात है।
माता का नाम त्रिशला, एवं जन्मनाम वर्धमान था।आधनिक विश्व के धार्मिक इतिहास में महावीर एक ऐसी |
| कालीन बिहार राज्य में मुज़फ्फरपुर जिले में स्थित बसाढ असामान्य विभूति है, जिसने राजाश्रय अथवा किसी भी | ग्राम ही प्राचीन कुण्डग्राम माना जाता है। प्रमुख आधिभौतिक शक्ति का आश्रय न ले कर, केवल इसकी माता त्रिशला वैशालि के लिच्छवी राजा चेटक अपनी श्रद्धा के बल से जैनधर्म की पुनः- की बहन थी। इसी कारण पिता की ओर से इसे स्थापना की। अपनी सारा आयुष्य एक सामान्य मनुष्य | 'ज्ञातृकपुत्र', 'नातपुत्त', 'काश्यप आदि पैतृक नाम, एवं के समान व्यतीत कर, इसने तीर्थकरों के द्वारा प्रतिपादित माता की ओर से इसे 'लिच्छविक' एवं 'वेसालिय'
आत्मकल्याण का मार्ग शुद्धतम एवं श्रेष्ठतम रूप में अंगीकृत | नाम प्राप्त हुए थे। किया, एवं अपने सारे आयुष्य में उसी मार्ग का प्रतिपादन | समकालीन नृप--वैशालि के चेटक नामक राजा के किया।
परिवार की सविस्तृत जानकारी जैन साहित्य में प्राप्त है, अपने इसी द्रष्टेपन के कारण यह जैन धर्म के पच्चीस- | जिससे महावीर के समकालीन राजाओं की पर्याप्त जानकारी सौ वर्षों के इतिहास में उस धर्म की प्रेरक शक्ति बन कर | प्राप्त होती है । चेटक राजा के कुल दस पुत्र, एवं सात रह गया। इस धर्म के विद्यमान व्यापक स्वरूप एवं कन्याएँ थी, जिनमें से ज्येष्ठ पुत्र सिंह अथवा सिंहभद्र तत्त्वज्ञान का सारा श्रेय इसीको दिया जाता है। इसी | वृजिराज्य का ही सेनापति था। चेटक की सात कन्याओं कारण इसे 'अर्हत् ' (पूज्य,)'जिन' (जेता,) निग्रंथ' में से चंदना एवं ज्येष्ठा 'ब्रह्मचारिणी' महावीर की
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