Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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हनुमत्
प्राचीन चरित्रकोश
हनुमत्
(भृत्यकार्य हनुमता सुग्रीवस्य कृतं महत् ) ( वा. रा. जिसके फलस्वरूप सीता ने इसे अपना हार इसे भंट में यु. १.६)।
दिया था। राम-रावण युद्ध में-इस युद्ध में समस्त वानरसेना का ब्रह्मचर्य-प्राचीन वाङ्मय में इसे सर्वत्र 'ब्रह्मचरिन्। एकमात्र आधार, सेनाप्रमुख एवं नेता एक हनुमत् ही 'जितेंद्रिय' ऊर्ध्वरेतम् ' आदि ' उपाधियों से भूपित था । इस युद्ध में इसने अत्यधिक पराक्रम दिखा कर किया गया है। राम के अश्वमेधीय यज्ञ के समय हुए युद्ध निम्नलिखित राक्षसों का वध कियाः-१. जंबुमालिन् में शत्रघ्न आहत हुआ, उस समय इसने अपने ब्रह्मचय (वा. रा. यु. ४३); २ धूम्राक्ष ( वा. रा. यु. ५१-५२; के बल से उसे पुनः जीवित किया था (पन. पा. म. व. २७०.१४); ३. अकंपन (वा. रा यु.५५-५६), ४५.३१)। ४. देवान्तक एवं त्रिशिरस् (वा. रा. यु. ६९-७१); चिरंजीवित्व--प्राचीन साहित्य में इसे सर्वत्र चिरंजीव ५. वज्रवेग (म. व. २७१.२४)।
माना गया है। इसके चिरंजीवत्व के संबंध में एक कथा पद्म रामरावण युद्ध के छठवे दिन रावण के ब्रह्मास्त्र के द्वारा में दी है । युद्ध के पश्चात् राम की सेवा करने के हेतु, यह मूच्छित हुए लक्ष्मण को हनुमत् ने ही राम के पास लाया। उसके साथ ही अयोध्या में रहने लगा। इसकी सेवावृत्ति पश्चात् इसके स्कंध पर आरूढ हो कर राम ने रावण को से प्रसन्न हो कर राम ने इसे ब्रह्मविद्या प्रदान की, एवं आहत किया (वा. रा. यु. ५९; राम दाशरथि देखिये )। वर प्रदान दिया, 'जब तक रामकथा जीवित रहेगी तब
इंद्रजित के द्वारा किये गये अदृश्ययुद्ध में जब वानरसेना तक तुम अमर रहोंगे' (पद्म. उ. ४०)। . का निर्धण संहार हुआ, तब इसने ही हिमाचल के वृष किंतु पद्म में अन्यत्र राम-रावणयुद्ध के पश्चात , इसका शिखर पर जा कर वहाँ से संजीवनी, विशल्यकरिणी, सुग्रीव के साथ किष्किंधा में निवास करने का निर्देश प्राप्त सुवर्णकरिणी,एवं संधानी नामक ओषधी वनस्पतियाँ ला कर है (पना, सू. ३८)। वानरसेना को जीवित किया (वा. रा. यु.७४)। पश्चात् महाभारत में इसे चिरंजीव कहा गया है, एवं इसका युद्ध के अंतिम दिन रावण के द्वारा लक्ष्मण मूर्छित होने पर | स्थान अर्जन के रथध्वज पर वर्णन किया गया है। यह पुनः एक बार हिमालय के ओषधि पर्वत गया था ।
(म. व. १४७.३७)। इसके द्वारा भीम का गर्वहरण काफ़ी ढूँढने पर वहाँ इसे वनस्पतियाँ न प्राप्त हुई । इस | करने का निर्देश महाभारत में प्राप्त है (म .व. १४६. कारण सारा शिखर यह अपने बायें हस्त पर उठा कर ले आया (वा. रा. यु. १०१)। वाल्मीकि रामायण के
पांडित्य--इसे ग्यारहवाँ व्याकरणकार कहा गया अनुसार, इसने दो बार द्रोणागिरि उठा कर लाया था |
है, एवं इसके द्वारा विरचित 'महानाटक' अथवा 'हनुम(वा. रा. यु. ७४; १०१)।
नाटक का निर्देश प्राप्त है। युद्ध में इसके दिखाये पराक्रम के कारण राम ने अत्यधिक प्रसन्न हो कर कहा थाः
परिवार-इसके ब्रह्मचारी होने के कारण इसका
अपना परिवार कोई न था। फिर भी इसके पसीने के न कालस्य, न शक्रस्य, न विष्णोर्वित्तपस्य च।
एक बूंट के द्वारा एक मछली से इसे मकरध्वज अथवा कर्माणि तानि श्रयन्ते यानि युद्धे हनूमतः ।।
मत्स्यराज नामक एक पुत्र उत्पन्न होने का निर्देश आनंद(वा. रा. उ. ३५.८)।
रामायण में प्राप्त है (आ. रा. ७.११; मकरध्वज (इस युद्ध में हनुमत् ने जो अत्यधिक पराक्रम | देखिये)। दिखाया है, वह इंद्र, विष्णु एवं कुवेर के द्वारा भी कभी | मानस में-तुलसी के मानस में चित्रित किया गया किसी युद्ध में नहीं दिखाया गया है)।
हनुमत् एक सेनानी नहीं, बल्कि अधिकतर रूप में राम का अयोध्या में युद्ध समाप्त होने पर अयोध्या के सभी परमभक्त हैं। यद्यपि मानस में इसके समुद्रोल्लंघन, लोगों का कुशल देख आने के लिए, एवं भरत को अपने अशोक वाटिकाविध्वंस, लंकादहन, मेघनादयुद्ध,कुंभकर्ण युद्ध आगमन की सूचना देने के लिए राम ने इसे भेजा था आदि पराक्रमों का निर्देश प्राप्त है, फिर भी इन सारे (वा. रा. यु. १२५-१२७; म. व.२६६)। राम के | पराक्रमों की सही पार्श्वभूमि इसकी राम के प्रति अनन्य राज्याभिषेक के समय इसने समुद्र का जल लाया था, भक्ति की है। इसी कारण तुलसी कहते है:
११०२
| ५९-७९)।