Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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हिरण्यहस्त .
प्राचीन चरित्रकोश
हृत्स्वाशय
२. एक प्राचीन ऋषि, जिसे मदिराश्व राजा ने अपनी | हीक-एक पिशाच, जो विपाशा नदी के तट पर सुमध्यमा नामक कन्या विवाह में दी थी (म. अनु. ५३. निवास करता था। इसके साथी का नाम बही था (म. २३,१३७.२४; शां. २२६.३५)।
क. ३०.४४; वाहीक एवं बालीक देखिये)। पाठभेद हिरण्याक्ष-एक दैत्य, जो कश्यप एवं दिति का एक (भांडारकर संहिता)-'बाहीक। पुत्र, तथा हिरण्यकशिपु का भाई था। यह स्वायंभुव हीन-(सो. क्षत्र.) एक राजा, जो भागवत के मन्वन्तर में उत्पन्न हुआ था (लिंग. १.९४)। | अनुसार सहदेव राजा का पुत्र, एवं जयसेन राजा का
विष्णु से युद्ध-यह अत्यधिक पराक्रमी था, एवं देवों | पिता था (भा. ९.१७.१७)। को काफी त्रस्त करता था । अन्त में इसके भय से सारे हुंड-एक राक्षस, जो विप्रचित्ति दानव का पुत्र था। देवगण भाग गये। पश्चात् विष्णु ने इसके साथ युद्ध | इसके पुत्र का नाम विहुंड था। पार्वती की कन्या अशोकप्रारंभ किया। इस युद्ध में प्रारंभ से ही विष्णु की विजय | सुंदरी पर इसका प्रेम था। किन्तु विवाह के प्रस्ताव होने लगी। यह देख कर यह पृथ्वी ले कर भागने लगा। को उसने नकार दिया । पश्चात् इसने स्त्री रूप धारण कर किन्तु विष्णु ने इसका पीछा किया एवं वराह रूप धारण उसका हरण किया, उस समय उसने इसे शाप दिया, कर इसका वध किया (पन. सृ. ७५)। | 'मेरा भावी पति नहुष तुम्हारा वध करेगा। ' भागवत के अनुसार यह पृथ्वी ले कर समुद्र में भाग नहुष से होनेवाले संभाव्य वध की आशंका से गया। वराहरूपी विष्णु ने पानी से पृथ्वी बाहर निकाली। इसने उसका वध करना चाहा, किन्तु इसके सारे प्रयत्न इस समय वराह के पाँव के नीचे दब कर यह मारा असफल हुए । अन्त में उसने इसका वध किया (पन. गया (भा. ३.२८)
भू. ११३-११८)। ____ इसके वध के पश्चात् इसके भाई ‘हिरण्यकशिपु ने हुत-अंगिरस्कुलोत्पन्न एक गोत्रकार । इसके वध का बदला देवों से लेना चाहा। किन्तु अन्त । २. सुख देवों में से एक । में वह भी नृसिंह अवतार के द्वारा मारा गया | हुतहव्यवह--धर नामक वसु के दो पुत्रों में से (हिरण्यकशिपु देखिये)।
| एक । दूसरे वसु का नाम द्रविण था (म. आ. . परिवार इसकी पत्नी का नाम रुषाभानु था, जिससें | ६०.२०)। इसे निम्नलिखित पुत्र उत्पन्न हुए थे:-१. उत्कुर (शंबर)। हुण--एक लोकसमूह, जो मध्य एशिया से आये हुए २. शकुनि, ३. कालनाभः ४. महानाभ; ५. विक्रान्त | विदेशीय जातिसमूह में से एक था। नकुल ने अपने (सुविक्रान्त.); ६. भूतसंतापन (मृतसंतापन) (वायु. पश्चिम दिग्विजय में इन लोगों को जीता धा (म. स.२९. ६७.६७-६८; ब्रह्मांड. ३.५.३०-३२)। विष्णु एवं | ११)। भागवत में इसके पुत्रों की नामावलि में झर्जर, धृत, वृक हह--एक गंधर्व, जो कश्यप एवं प्राधा के पुत्रों में से एवं हरिश्मश्रु ये पुत्र अधिक दिये गये हैं (विष्णु. १. एक था । यह कुबेर की सभा का, एवं इंद्र की सभा का २०.३; भा. ७.२.१५)। इसके ये सारे पुत्र- सदस्य था (म. स. परि. १.३.२; व. ४४.१४) । अर्जुन पौत्रादि परिवार के साथ तारकासुरयुद्ध में विनष्ट हुए। के जन्मोत्सव में भी यह उपस्थित था (म. आ. ११४. . २. एक यक्ष, जो मणिभद्र एवं पुण्यजनी के पुत्रों में ४८)। से एक था।
देवल ऋषि के शाप से इसे नक्रयोनि प्राप्त हुई थी। ३. एक असुर, जो वैश्वानरकन्या का पति था (भा. किन्तु आगे चल कर गजेंद्र के साथ इसे भी मुक्ति प्राप्त ६.६.३४)। मत्स्य में इसे मयासुरकन्या उपदानवी का पति हुई (भा. ८.४.३; आ. रा. सार. ९)। यह आषाढ माह कहा गया है।
के सूर्य के साथ भ्रमण करता है (भा. १२.११.३६)। ४. विश्वामित्र का एक पुत्र ।
हत्स्वाशय आलकेय माहावृष राजन्-एक आचार्य, ५. वसुदेव के श्याम नामक एक भाई का पुत्र । इसकी | जो सोमशुष्म सात्ययज्ञि प्राचीनयोगी का शिष्य, एवं माता का नाम शरभू अथषा शूरभूमि था (भा. ९. | जनश्रुत काण्ड्विय नामक आचार्य का गुरु था (जै. उ. ब्रा. २४.४२)।
३.४०.२)। प्रा. च. १४०]
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