Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
View full book text
________________
स्कंद
प्राचीन चरित्रकोश
स्कंद
समाविष्ट हुई । पश्चात् उसे ही सप्तर्षिपत्नियाँ समझ कर मस्य. १६०)। महाभारत में इसके द्वारा तारकासुर के अग्नि ने उससे संभोग किया । स्वाहा ने अग्नि से प्राप्त | साथ, महिषासुर का भी वध करने का निर्देश प्राप्त है (म. उसका सारा वीर्य एक कुण्ड में रख दिया, जिससे आगे | श. ४५.६४, अनु. १३३.१९; व. २२१.६६)। चल कर स्कंद का जन्म हुआ (म. व. २२३-२१४)। इसका जन्म अमावास्या के दिन हुआ, एवं शुक्ल छः ऋषिपत्नियों के गर्भ से उत्पन्न होने के कारण, इसे : षष्ठी के दिन इसने तारकासुर का वध किया। तारकासुर छः मुख प्राप्त हुए थे। अमावस्या के दिन इसका जन्म का वध करने के पूर्व शुक्ल पंचमी के दिन देवों ने इसे हुआ था।
क्रौंच पर्वत पर (ब्रह्मांड. उ. ३.१०); स्थाणुतीर्थ में - यही कथा महाभारत एवं विभिन्न पुराणों में कुछ फर्क (म. श. ४१.७); अथवा वारुणितीर्थ में (पन. स्व. २७) से दी गयी है (म. व. २२०.९-१२, पन. सू. ४४ |
सेनापत्य का अभिषेक किया। उसी दिन से यह देवों स्कंद. १.१.२७; मत्स्य, १५८.२७-२८; वा. रा. बा.| का सेनापति माना गया । शुक्ल पंचमी का इसका अभिषेक ३६)। ।
दिन, एवं शुक्ल षष्ठी का तारकासुर के वध का दिन कार्तिकेय नामान्तर--महाभारत में इसके विभिन्न नामान्तर
की उपासना करनेवाले लोग विशेष पवित्र मानते हैं। निम्न प्रकार दिये गये हैं :-१. स्कंद; जो नाम इसे ___अन्य पराक्रम--तारक एवं महिषासुर के अतिरिक्त 'स्कन्न' वीर्य से उत्पन्न होने के कारण, अथवा इसने त्रिपाद, हृदोदर, बाणासुर आदि राक्षसों का वध किया दानवों का स्कंदन करने के कारण प्राप्त हुआ था; २. | था (म. श.४५.६५-८१)। इसने क्रौंचपर्वत का अपने बाण पाण्मातुर, जो नाम इसे छः ऋषिपत्नियों के गर्भ से उत्पन्न से विदरण किया था, एवं अपने 'शक्ति' से हिमालय पर्वत होने के कारण प्राप्त हुआ था; ३. कार्तिकेय, जो नाम इसे | उखाड देने की प्रतिज्ञा की थी (म. शां. ३१४.८-१०)।
छः कृत्तिकाओं के गर्भ से उत्पन्न होने के कारण प्राप्त हुआ | ब्रह्मचर्यव्रत-तारकासुर के वध के पश्चात् पार्वती के • था; ४. विशाख, जो नाम इसे अनेक शाखा (हाथ) अत्यधिक लाड प्यार से यह समस्त देवस्त्रियों पर अपनी होने के कारण प्राप्त हुआ था; ५. षष्मुख, जो नाम इसे पापवासना का जाल बिछाने लगा, एवं बलात्कार करने इसके छः मुख होने के कारण प्राप्त हुआ था; ६. सेनानी लगा। इसके स्वैराचार की शिकायत देवस्त्रियों ने पार्वती अथवा देव सेनापति, जो नाम इसे देवों का सेनापति के पास की । इस पर पार्वती ने इसे सन्मार्ग पर लाने के होने के कारण प्राप्त हुआ था; ७. स्वाहेय, जो नाम | हेतु, सृष्टि की हर एक स्त्री में अपना ही रूप दिखाना इसे अमिपत्नी स्वाहा का पुत्र होने के कारण प्राप्त हुआ | प्रारंभ किया। उन्हें देखते ही इसे कृतकर्मों का अत्यधिक था (म. व. परि. १.२२); ८. सनत्कुमार--(ह. वं. १. | पश्चात्ताप हुआ, एवं इसने पार्वती के पास जा कर प्रतिज्ञा .३; म. व. २१९)।
की, 'आज से संसार की सारी स्त्रियाँ मुझे माता के समान __. अस्त्रप्राप्ति--इसका जन्म होते ही विभिन्न देवताओं ने ही हैं' (ब्रह्म. ८१)। - इसे निम्नलिखित अस्त्र प्रदान किये :--१. विष्णु--गरुड, स्त्रियों के प्रति इसकी अत्यधिक विरक्त वृत्ति के कारण मयूर एवं कुक्कुट आदि वाहन; २. वायु-पताका; ३. | आगे चल कर इसका दर्शन भी उनके लिए अयोग्य सरस्वती--वीणा; ४. ब्रह्मा-अज; ५. शंभु-मेंढक; | माना जाने लगा। आज भी स्कंद का दर्शन स्त्रियाँ नहीं ६. भदैत्य--अपराजिता नामक शक्ति, जो इस दैत्य | लेती है, एवं इसकी प्रतिमा के दर्शन से स्त्री को सात के मुख से उत्पन्न हुई थी (ब्रह्मांड. ३.१०.४५-४८)। जन्म तक वैधव्य प्राप्त होता है, ऐसी जनश्रुति है। इस इसका उपनयन संस्कार विश्वामित्र ऋषि ने किया (म. | जनश्रुति के लिए पौराणिक साहित्य में कहीं भी आधार व. २१५.९)।
प्राप्त नहीं हैकेवल मराठी 'शिवलीलामृत' ग्रंथ में यह तारकासुर वध-तारकासुर का वध करने के लिए स्कंद ने | कथा प्राप्त है (शिवलीला. १३)। अवतार लिया था । ब्रह्मा ने तारकासुर को अवध्यत्व का परिवार--इसकी पत्नी का नाम देवसेना था, जिससे वर देते हु कहा था कि, इस सृष्टि में केवल सात दिन | इसे शाख, विशाख, एवं नैगमेय नामक पुत्र प्राप्त हुए का अर्भक ही केवल उसका वध कर सकता है । इसी | थे। पौराणिक साहित्य में शाख, विशाख, एवं नैगमेय को कारण जन्म के पश्चात् सात दिनों की अवधि में ही इसने | स्कंद के पुत्र नहीं, बल्कि भाई बताये गये हैं, एवं वे तारकासुर से युद्ध कर, उसका वध किया (पद्म. सृ. ४४; | अनल नामक वसु एवं शांडिल्या के पुत्र बताये गये हैं
१०९१