Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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साध्य ,
प्राचीन चरित्रकोश
सांब
देवता-समूहों का निर्देश प्राप्त है, वहाँ इनका निर्देश सानुप्रस्थ--रामसेना का एक वानर । वसु, रुद्र, आदित्य, एवं मरुतों के साथ किया गया है सांदीपनि (सांदीपन) अवंती में रहनेवाला (छां. उ. ३.६-१०)। वहाँ इनकी अधिष्ठात्री देवता ब्रह्मा | एक कश्यपकुलोत्पन्न ब्राह्मण, जो कृष्ण एवं बलराम का गुरु बताया गया है। ऋग्वेद में भी इन देवताओं का अस्पष्ट था। यह अवंती नगरी में रहता था, एवं इसके आश्रम निर्देश प्राप्त है (ऋ. १०.९०.१६)।
का नाम 'अंकपाद' था (भा. ३.३.२; १०.४५.३१; पौराणिक साहित्य में-इस साहित्य में इनकी उत्पत्ति | पद्म. उ. २४६ ) । ब्रह्मा के मुख से बतायी गयी है। विभिन्न मन्वंतरों में | कृष्ण एवं बलराम का उपनयन होने के पश्चात् वे दोनों इनके विभिन्न अवतार दिये गये हैं। जो निम्नप्रकार | इसके आश्रम में विद्यार्जन के लिए रहने लगे। इसने उन्हें हैं:-१. स्वायंभुव मन्वंतर-जित देव; २. तामस मन्वंतर- वेद, उपनिषद,धनुर्वेद, राजनीति, चित्रकला, गणित, गांधर्वहरि देवः ३. रेवत मन्वंतर- वैकुंठ देव; ४. स्वारोचिष | वेद, गजशिक्षा, अश्वशिक्षा आदि ६४ कलाएँ सिखायी। मन्वंतर- तुषित देवः ५. उत्तम मन्वंतर- सत्य देव; यह धनर्वेद का श्रेष्ठ आचार्य था। इसने श्रीकृष्ण एवं ६. चाक्षुष मन्वंतर-छांदज देव; ७. वैवस्वत मन्वंतर
बलराम को दस अंगों से युक्त धनुर्वेद का ज्ञान प्राप्त साध्य देव । वैवस्वत मन्वंतर में उत्पन्न हुए आदित्य भी
कराया। कृष्ण एवं बलराम का विद्यार्जन समाप्त होने पर इन्हींके ही अवतार माने गये हैं (ब्रह्मांड. ३.३.८-१२)।
इसने उन्हें गुरुदक्षिणा के रूप में समुद्र में डूबे हुए अपने वसु नामक सुविख्यात देवगण इनके भाई हैं, एवं ये
मृत पुत्र को पुनः जीवित कर देने की माँग की । तदनुसार स्वयं भुवर्लोक में रह कर गौ देवता की उपासना करते हैं
कृष्ण ने इसका मृतपुत्र पुनः जीवित कराया (म. स. परि. (मत्स्य. १५.१५ )। इनका प्रमुख अधिष्ठात्री देवता
१.२१.८५७-८७९; विष्णु. ५.१)। नारायण है।
साप्य--नमी नामक आचार्य का पैतृक नाम (ऋ. ६. • नामावलि--चाक्षष एवं वैवस्वत मन्वंतरों में उत्पन्न
२०.६)। हुए साध्य-देवों की नामावलि पौराणिक साहित्य में निम्न
सामलोमकि--अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार प्रकार दी गयी है:- १. मनस् २. अनुमन्तु, ३. प्राण; - ४. नर; ५. नारायण; ६. वृत्ति (वीति); ७. तपस
सामश्रवस--याज्ञवल्क्य वाजसनेय का एक शिष्य
(बृ. उ. ३.१.२)। (अपान); ८. हय; ९. हंस; १०. विभु; ११. प्रभु;
याज्ञवल्क्य ने इसे अपनी 'स्मृति' की शिक्षा प्रदान १२. धर्म (नय )(मत्स्य. २०३.११; सांब. १८)।
की थी। मॅक्स म्यूलर इसे स्वयं याज्ञवल्क्य की उपाधि महाभारत में इस ग्रंथ में इन्हें यज्ञ एवं शुभ कार्यों
मानते है, किन्तु इसके याज्ञवल्क्य का शिष्य ही होने की से संबंधित देवतागण माना गया है, एवं निम्नलिखित
संभावना अधिक है। प्रसंगों पर इनके उपस्थिति का निर्देश वहाँ प्राप्त है :१. नैमिषारण्य द्वादशवर्षीय सत्र; २. मरुत्त आविक्षित
सामश्रवस-कुशीतक नामक आचार्य का पैतृक नाम राजा का यज्ञ; ३. अर्जुन एवं स्कंद के जन्मोत्सव; ४. अमृत
| (श. ब्रा. १७.४.३)। के लिए गरुड एवं देवताओं का युद्ध; ५. अर्जुन के द्वारा
सामकि--यामुनि नामक कश्यपकुलोत्पन्न गोत्रकार का किया गया खांडववनदाह-युद्ध; ६. स्कंद-तारकासुरयुद्ध | नामान्तर ७. कणाजुन युद्ध ।
सांब-एक सुविख्यात यादव राजकुमार, जो कृष्ण २. चाक्षुष मनु के पुत्रों में से एक (भा. ६.६.१५)। एवं जांबवती के पुत्रों में से एक था (म. आ. १७७. ३. एक रुद्रगण, जिसमें ८४ करोड़ रुद्रोपासक समाविष्ट | १६; स. ४.२९; भा. १०.६१.११)। विष्णु में इसे कृष्ण थे। रुद्र के ये सारे उपासक तीन नेत्रोंवाले (त्रिनेत्र ) थे | एवं रुक्मिणी का पुत्र कहा गया है, किन्तु यह असं(मत्स्य. ५.३१)।
भव प्रतीत होता है । यह अत्यंत स्वरूपसुंदर, एवं ४. शततेजस् नामक शिवावतार.का एक शिष्य । स्वैराचरणी था।
साध्या--दक्ष प्रजापति की कन्या, जो धर्मऋषि की दस | जन्म--उपमन्यु ऋषि के आदेशानुसार कृष्ण ने पुत्रपत्नियों में से एक थी। साध्यगणों के देव इसीके ही पुत्र प्राप्ति के लिए शिव की उपासना की थी, जिससे आगे माने जाते हैं (भा. ६.६.४-७)। .
चल कर इसका जन्म हुआ। इस कारण इसे 'सांब' नाम १०३५