Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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सुरोचना
प्राचीन चरित्रकोश
सुवर्चला
सुरोचना-कंद की अनुचरी एक मातृका (म. श. आयी हूँ, ऐसे मामूली प्रश्नों के उत्तर भी नहीं जानते। ४५.२८)।
यदि सचमुच ही मुक्त रहते, तो ऐसी अनभिज्ञता दर्शानेसोचि-वसिष्ठ एवं अरुन्धति का एक पुत्र (भा. वाले प्रश्न तुम नहीं पूछते। जो व्यक्ति मुक्त है, उसे मनुष्य४.१.४१)।
| प्राणि कहाँ से आया, एवं कहाँ जानेवाला है इसका ज्ञान सरोमन्--तक्षककुलोत्पन्न एक नाग, जो जनमेजय अवश्य ही होना चाहिए। के सर्पसत्र में दग्ध हुआ था (म. आ. ५२.९)। पाठभेद
इस प्रकार अपने तत्त्वपूर्ण संभाषण के द्वारा इसने (भांडारकर संहिता)--' सुमना ।
जनक राजा का आत्मज्ञान के संबंध का सारा गर्व चूर सुलक्षण--एक राजा, जिसने माण्डव्य ऋषि को
कर दिया। अश्व चुराने के इल्जाम में शूली पर चढ़ाया था (पद्म.
सुलभा मैत्रेयी--एक तपस्विनी, जो कुणि गर्ग ऋषि उ. १२१)।
की कन्या थी। आश्वलायन गृह्यसूत्र के ब्रहायज्ञांगतर्पण सुलभा--एक संन्यासिनी कुमारी, जो प्रधान नामक
में इसका निर्देश प्राप्त है, जिससे प्रतीत होती हैं, कि राजा की कन्या थी। यह स्वयं संन्यासमार्ग एवं योग
यह कोई सुविख्यात ऋग्वेदी तत्त्ववादिनी स्त्री होगी। मार्ग की पुरस्कर्ती थी, जिसने कर्मयोग एवं गृहस्थाश्रम की प्रशंसा करनेवाले मिथिला नरेश जनक राजा से तत्त्व
याज्ञवल्क्य ऋषि की पत्नी मैत्रेयी, एवं जनक राजा के ज्ञान पर वादविवाद की थी। यही संवाद महाभारत में
कभी यदी वाट महाभारत में साथ चर्चा करनेवाली सुलभा, इन दोनों ब्रह्मवादिनी स्त्रियों 'सुलभा-जनक संवाद' नाम से प्रसिद्ध है (म. शां. ३०८)। से यह सर्वथा भिन्न स्त्री होगी।
सुलभा-जनक संवाद--कर्मयोग एवं गृहस्थाश्रम की सुलोचन--(सो. कुरु.) धृतराष्ट्र का एक पुत्र, जो प्रशंसा करते हुए जनक ने इसे कहा, 'मैं स्वयं गृहस्थाश्रमी भारतीय युद्ध में भीमसेन के द्वारा मारा गया (म. भी.. हैं, फिर भी मेरा मन विषयोपभोग की इच्छा से संपूर्णतया ६०.३२)। अलिप्त है। जिस प्रकार भूमि से बाहर रहा बीज अंकुरित सुलोचना-रावणपुत्र इंद्रजित् की पत्नी, जो अपनी नहीं होता है, उसी प्रकार मेरे मुक्त मन में विषयों की पति के मृत्यु के पश्चात् सती हो गयी। उत्पत्ति नहीं होती है।
२. प्लक्षद्वीप के गुणाकर राजा की कन्या। इसका विवाह इतना कह कर जनक ने कहा कि, उपर्युक्त तत्वज्ञान इसे
तालध्वज नगरी के विक्रम राजा के माधव नामक पुत्रं से पंचशिख नामक आचार्य के द्वारा प्राप्त हुआ है। आगे
हुआ था (पन. क्रि. ५-६; गुणाकर १. एवं माधव चल कर जनक राजा ने अनेकानेग व्यंग्य वचन कह कर | देखिये)। इसका तिरस्कार किया, एवं इसके नाम आदि के संबंध
३. हरिस्वामिन् नामक एक ब्राह्मण की कन्या, जिसकी में पृच्छा कर इसे कोई अगण्य एवं अनधिकारी स्त्री
कथा काशीक्षेत्र में स्थित ज्ञानवापी का माहात्म्य कथन साबित करने का प्रयत्न किया।
करने के लिए स्कंद में प्राप्त है ( स्कंद. ४.१.३३)। जनक राजा के उपर्युक्त अपमानजनक संभाषण से
सुलोमन्--एक व्याध, जो अमावस्या के दिन नदी यह जरा भी विचलित न हुई। इसने अत्यंत शान्ति
| में स्नान करने के कारण मुक्त हुआ (पम. भ. ३०)। से अपनी गुरुपरंपरा का परिचय दिला कर, अपने संन्यास | एवं योगशास्त्र विषयक तत्त्वज्ञान का अत्यंत सुस्पष्ट निवेदन
| सुवंश-(सो. वसु.) वसुदेव एवं श्रीदेवा का एक किया, 'जिस प्रकार जनुकाष्ठ एवं जलबिंदुओं का संबंध | पुन ( मा. १.४.११)। तत्कालिक रहता है, एवं इन दोनों की मिलावट असंभव
२. (सो. भज.) एक राजा, जो पद्म के अनुसार है, उसी तरह आत्मा एवं इंद्रियोपभोग का एक साथ | समौजम् राजा का पुत्र था। रहना असंभव है। इसी कारण मेरा यह कहना है कि,
सुवक्त्र--स्कंद का एक सैनिक ( म. श. ४४ )। राजा का कर्तव्य निभानेवाले व्यक्ति को मोक्षज्ञान
सुवचोतथ्य-अंगिरसकुलोत्पन्न एक प्रवर । असंभव है । यद्यपि वह उसे प्राप्त भी हो जाये, तो| सुवर्चला--देवल ऋषि की ब्रह्मचारी कन्या। अपने, टिकना असंभव है।
पिता के द्वारा आयोजित किये गये स्वयंवर में, इसने सुलभा ने आगे कहा, 'तुम स्वयं को मोक्षधर्म के | श्वेतकेतु औद्दालकि का वरण किया। इस स्वयंवर के समय ज्ञानी कहते हो, फिर भी मैं कौन हूँ, मैं कहाँ से | इसका श्वेतकेतु के साथ किया तत्त्वज्ञान पर संवाद, महा
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