Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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सुवर्चला
प्राचीन चरित्रकोश
सुवर्ण
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भारत में 'श्वेतकेतु सुवर्चला संवाद' नाम से प्राप्त है (म. ये तीनों क्षत्रिय लोग अपने योगसामर्थ्य के कारण कलियुग शां.-३०४, २२८.२२९)।
के अंत तक क्षत्रिय राजा रहेंगे। यह संवाद महाभारत के केवल कुंभकोणम् संस्करण इनमें से ऐश्वाकव मरु को उन्नीसवें युगचक्र के प्रारंभ में भी प्राप्त है; भांडारकर संहिता में वह परिशिष्ट में | मैं वर्चस् नामक पुत्र उत्पन्न होनेवाला है, जो आगे चल कर दिया गया है।
समस्त क्षत्रियकुलों का उद्धार करेगा (ब्रह्मांड. ३.७४, २. परमेष्ठिन् राजा की पत्नी, जिसके पुत्र का नाम २५१)। अन्य पुराणों में देवापि के पुत्र का नाम सपौल प्रतीह था (भा. ५.१५.३)। ।
अथवा सत्य दिया गया है (वायु. ९९.४३८, मत्स्य, ३. परमेष्ठिन् पुत्र प्रतीह राजा की पत्नी । इसके | २७३.५६-५८)। प्रतिहत आदि तीन पुत्र थे (भा. ५.१५.५)।
९. एक ऋषि, जो भूति ऋषि का भाई था। एकबार ४. सूर्य की पत्नी (म. अनु. १४६.५: विष्णु.| इसने एक यज्ञ का आयोजन किया, जिसके लिए इसने बडे ३.८)।
सम्मान से भूति ऋषि को निमंत्रण दिया था (मार्क.९६)। सुवर्चस्-दधीचि ऋषि की पत्नी । इसके पति । १०. एक राजा, जो सुकेति राजा का पुत्र, एवं सुनामन् दधीचि ऋषि की अस्थियों को इंद्र ने इसे धोखा राजा का भाई था। अपने भाई एवं पिता के साथ यह दे कर प्राप्त की (दधीचि देखिये)। देवताओं का, द्रौपदीस्वयंवर में उपस्थित था (म. आ. १७७.९)। विशेषतः इंद्र का यह स्थार्थी कृत्य देख कर इसने उन्हें | ११. एक अग्नि, जो पांचजन्य नामक अग्नि का पुत्र था पशु बनने का एवं उनका निर्देश होने का शाप दिया। (म. व. २१०.१३)।
पश्चात् यह अपने पति के साथ सती होने के लिए १२. एक ऋषि, जिसने सत्यवान् एवं सावित्री के विरहप्रवृत्त हुई। उसी समय आकाशवाणी से इसे ज्ञात दुःख से व्याकुल हुए द्युमत्सेन राजा को सांत्वना प्रदान की • हुआ कि, यह गर्भवती है। यह सुन कर इसने पत्थर से | थी (म. व. २८२.१०)। अपना उदर विदीर्ण कर गर्भ बाहर निकाला, एवं उसे | १३. गरुड का एक पुत्र । एक पीपलवृक्ष के पास रख कर, यह पति के मृत देह के | १४. हिमवत् के द्वारा स्कंद को दिये गये दो पार्षदों में साथ सती हो गयी (प. उ. १५५, शिव. शत. २४-२५)। से एक। दूसरे पार्षद का नाम अतिवर्चस् था (म. ___ इसके गर्भ से उत्पन्न हुआ दधीचि ऋषि का पुत्र, श. ४५.४२)।
आगे चल कर पिप्पलाद नाम से सुविख्यात हुआ | सुवर्चस् वासिष्ठ--एक ऋषि, जो कुरुवंशीय सम्राट (पिप्पलाद १. देखिये)।
संवरण का पुरोहित था (म. आ. ७९.३६ )। २. (सू, निमि.) एक राजा, जो वायु के अनुसार सुवर्ण-एक तपस्वी ब्राह्मण, जिसकी कांति सुवर्ण के स्वागत राजा का पुत्र था।
समान थी । इसने मनु से पुष्प, धूप दीप आदि के दानविषय ३. (सू. दिष्ट.) दिष्टवंशीय करंधम राजा का नामान्तर में चर्चा की थी (म. अनु. १५५)। (करंधम २. देखिये)।
२. सावर्णि मनु का एक पुत्र । ४. (सो. कुरु.) धृतराष्ट्र का एक पुत्र, जो भारतीय ३. रुद्रसावर्णि मन्वंतर का एक देवगण । युद्ध में भीमसेन के द्वारा मारा गया (म. क. ६२.५)। ४. इक्ष्वाकुवंशीय सुतपस् राजा का नामांतर (सुतपस्
५. कौरवपक्ष का एक योद्धा, जो भारतीय युद्ध में | १५. देखिये)। अभिमन्यु के द्वारा मारा गया (म. द्रो. ४७. १५)। । ५. एक ऋषि, जो कुशध्वज ऋषि के दो पुत्रों में से ६. ब्रह्मसावर्णि मनु का एक पुत्र ।
एक था । इसने पैर के अंगुठे पर खड़े रह कर तीन ७. रुद्रसावर्णि मनु का एक पुत्र ।
अक्षरों के एक मंत्र का जाप किया, जिस पुण्य के बल से ८. एक राजा, जो ऐश्वाकव मरु नामक राजा का पुत्र | अगले जन्म में इसे सुवीर नामक गोप के घर एक गोपी माना गया है। पौराणिक साहित्य के अनुसार, कलियुग | का जन्म प्राप्त हुआ (पा. पा. ७२)। में पृथ्वी के समस्त क्षत्रिय लोग विनष्ट होनेवाले है, एवं ६. एक राजा, जिसकी कथा .'ॐ नमो नारायण' विद्यमान क्षत्रियकुलों में से पौरव, देवापि एवं ऐश्वाकव मरु मंत्र का माहात्म्य कथन करने के लिए पद्म में दी गयी है नामक केवल तीन ही वंश इस संहार से बचने वाले हैं। (पन.कि.१०)।
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