Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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सोमक
प्राचीन चरित्रकोश
सोमधेय
एवं नारद ऋषि इसके पुरोहित थे (ऐं. ब्रा. ७.३४.९)। भूरिश्रवस् एवं शल नामक तीन पुत्र थे, जिनमें से यह वामदेव ऋषि का आश्रयदाता था, एवं इसने उसे | भूरिश्रवस् इसे रुद्र की कृपा से प्राप्त हुआ था। अपने अनेकानेक अश्व प्रदान किये थे (ऋ. ४.१५८.८)। इन पुत्रों के साथ यह द्रौपदीस्वयंवर में उपस्थित था
पौराणिक साहित्य में-इस साहित्य में इसे पांचाल | (म. आ. १७७.९, १४)। देश का राजा कहा गया है, एवं इसके पिता का नाम शिनि यादव से शत्रुत्व--देवकी के स्वयंवर के समय सहदेव बताया गया है (भा. ९.२२; ह. वं.१.३२; ब्रह्म. शिनि नामक यादव ने अपने मित्र वसुदेव के लिए देवकी १३. वायु. ३७)। इसके द्वारा अपने पुत्र का नरमेध का हरण किया। उस समय इसके शिनि से विरोध किये जाने की कथा महाभारत एवं विभिन्न पुराणों में प्राप्त करते ही उसने इसे भूमि पर पटक कर एक लात मार दी, है (म. व. १२७-१२८)।
एवं इसकी चुटियाँ पकड़ कर इसे खूब पीटा। शिनि के पुत्र का नरमेध- इसकी कुल सौ पत्नियाँ थी। किन्तु
द्वारा छोड़ दिये जाने पर, अपने इस अपमान का बदला
लेने के लिए इसने रुद्र कि घोर तपस्या की, एवं शिनि जंतु ( जह्न) नामक केवल एक ही पुत्र था। एक बार चिंटी
का वध करनेवाला एक पुत्र उससे माँग लिया । रुद्र के ने जंतु को काट लिया, जिस कारण इसके अंतःपुर की
प्रसाद से प्राप्त हुआ इसका पुत्र आगे चल कर भूरिश्रयम् सभी पत्नियाँ रोने लगी। इस प्रसंग को देख कर इसे मन ही
नाम से सुविख्यात हुआ। मन अत्यंत दुःख हुआ, एवं इसने सोचा कि, राजा के
__ भारतीय युद्ध में- भारतीय युद्ध में यह कौरवपक्ष में लिए केवल एक ही पुत्र रहना दुःख का मूल हो सकता है।
| शामिल था। इस युद्ध में इसके पुत्र भूरिश्रवस ने शिनिपश्चात् अधिक पुत्र प्राप्त होने के उद्देश्य से एक नरमेध
यादव के पुत्र युयुधान सात्यकि की ठीक वही अवस्था करने की, एवं उसमें इसके जन्तु नामक इकलौते पुत्र का
की, जो शिनि राजा ने देवकी स्वयंवर के समय इसकी की हवन करने की कल्पना इसके पुरोहित ने इसे दी। तद
थी। इस प्रकार भरिश्रवस ने अपने पिता के अपमान का नुसार इसने अपने पुत्र जन्तु को बलि दे कर एक नरमेध
बदला ले ही लिया। किया, जिससे उत्पन्न हुए धुएँ से इसे पृषत् आदि सौ
इसी समय सात्यकि का रक्षण करने के लिए उपस्थित पुत्र उत्पन्न हुए।
हुए अर्जुन ने भूरिश्रवस् का अत्यंत निधण वध किया (भूरिमृत्यु के पश्चात्--अपनी मृत्यु के पश्चात् यह स्वग-श्रवस् देखिये) आगे चल कर सात्यकि ने ही इसका वध लोक को प्राप्त हआ, किन्तु इसको नरमेध की सलाह | किया (भा.९.२२.१८; म. द्रो. ११९१.३१, १३७)। देनेवाले इसके पुरोहित को नर्क प्राप्त हुआ। अपने २. एक ब्रह्मराक्षस, जिसने कल्माषपाद राजा से तत्वपुरोहित को छोड़ कर स्वयं स्वर्गोपभोग लेने को इसने ज्ञान पर संवाद किया था (कल्माषपाद देखिये)। इन्कार किया, एवं यह स्वयं नर्क में रहने के लिए गया।
३. (सू. दिष्ट.) एक राजा, जो विष्णु एवं भागवत के इसकी यह पुरोहितनिष्ठा देख कर यमधर्म अत्यंत प्रसन्न
अनुसार कृशाश्व राजा का पुत्र, एवं सुमति नामक राजा हुआ, एवं उसने इन दोनों को स्वर्ग में स्थान दिया।
का पिता था (म. ९.२.१.३५)। इसने सौ अश्वमेध यज्ञ सोमकान्त-सुराष्ट्र देश का एक गणेशभक्त राजा, | कर उत्तम गति प्राप्त की थी। जो कुष्ट रोग से पीडित था । भृगु ऋषि के द्वारा 'गणेश- ४. (सो. नील.) नीलवंशीय सुदास राजा का नामांतर पुराण' का श्रवण किये जाने पर इसका कुष्ट नष्ट हुआ, I (सदास देखिये)। एवं यह पूर्ववत् आरोग्यसंपन्न रहा (गणेश. १.१९)। सोमदत्ति सावर्णि--एक आचार्य, जो व्यास की
सोमकीर्ति--(सो. कुरु.) धृतराष्ट्र का एक पुत्र पुराण शिष्यपरंपरा में से रोमहर्षण नामक आचार्य का (म. आ. १०८.८)।
शिष्य था! - सोमतन्वी-अंगिरस कुलोत्पन्न एक गोत्रकार । पाठभेद- सोमदा-ऊर्मिला नामक गंधर्व की कन्या, जिसे सोम' एवं 'तन्वी'।
चली नामक ऋषि से ब्रह्मदत्त नामक पुत्र उत्पन्न हुआ सोमदक्ष कौश्रेय-एक आचार्य (क. सं. २०.८ था । यही ब्रह्मादत्त आगे चल कर राजा बन गया। २१.९; मै. सं. ३.२.७)।
। सोमधेय--पूर्व भारतीय लोकसमूह, जिसे भीमसेन सोमदत्त--(सो. कुरु.) एक कुरुवंशीय राजा, जो | ने अपने पूर्व दिग्विजय में परास्त किया था ( म. स. २७. प्रतीप राजा का पौत्र, एवं बाह्रीक राजा का पुत्र था। इसके | ९)। पाठभेद- सोपदेश'।
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