Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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सुनीथा
प्राचीन चरित्रकोश
सुपर्ण
में इसने तपस्या में निमम हुए सुशंख नामक गंधर्व को | कारण ब्रह्मा ने इन्हें अनेकानेक वर प्रदान किये, जिनमें त्रस्त किया, जिससे क्रुद्ध हो कर उसने इसे एक 'कुलपांसन' मायावी विद्या, अतुल बल, इच्छारूपधारित्व, आदि वरों पुत्र को जन्म देने का शाप दिया (पद्म. सु. ८; भू.३०- के साथ, अपने भाई के अतिरिक्त किसी अन्य मानव ३६)।
से अवध्यत्व, यह वर प्रमुख था । सुनेत्र--(सो. कुरु.) एक राजा, जो जनमेजयपुत्र उपर्युक्त वरप्राप्ति के कारण, ये दोनों अत्यंत उन्मत्त हो धृतराष्ट्र के बारह पुत्रों में से एक था (म. आ. ८९२*)। | गये, एवं पृथ्वी पर अनन्वित अत्याचार करने लगे। ये २. गरुड का एक पुत्र ।
ऋषियों के यज्ञयागों में बाधा डालने लगे, जिस कारण ३. रौच्य मनु के पुत्रों में से एक।
इस संसार के सारे यज्ञयाग बंद हो गये। ४. किष्किंधा का एक वानर (वा. रा. कि. ३३)। मृत्यु--अंत में ब्रह्मा ने इन दोनों में कलह निर्माण सुनेत्रा-कश्यप ऋषि की पत्नियों में से एक। कर के इन दोनों का विनाश करने का निश्चय किया। इस
सुंद--एक असुर, जो सुंद एवं उपसुंद नामक सुविख्यात | हेतु उसने विश्वकर्मन् के द्वारा एक अप्रतिम लावण्यवती असुरद्वय में से एक था ( सुंदोपसुंद देखिये)। अप्सरा का निर्माण करवाया, जिसका नाम तिलोत्तमा
२. एक असुर, जिसकी पत्नी का नाम ताटका था। था। पश्चात् ब्रह्मा की आज्ञानुसार तिलोत्तमा इन दोनों इसके सुबाहु एवं मारीच नामक दो पुत्र थे। इसके पिता राक्षसों के सामने नृत्य करने लगी। उसे देख कर ये दोनों का नाम जंभासुर था।
आपसी भ्रातृभाव की भावना को बिलकुल भूल बैठे, एवं सुंदर-एक गंधर्व, जो वीरबाहु गंधर्व का पिता था। तिलोत्तमा की प्राप्ति के आपस में झगड़ने लगे। एक वसिष्ठ के शाप के कारण, इसे राक्षसयोनि प्राप्त हुई, | दूसरे के हाथ से गदायुद्ध में इनकी मृत्यु हो गयी। . किन्तु आगे चल कर श्रीविष्णु ने इसे राक्षसयोनि से मुक्त | सुन्वत्--एक आचार्य, जो सुमन्तु नामक आचार्य . किया (स्कंद. २.१.२४)।
का शिष्य था । व्यास शिष्य जैमिनि ने इसे सामवेद की सुंदर शातकर्णि--(आंध्र, भविष्य.) एक आंध्र- एक संहिता सिखायी थी (भा. १२.६.७५)। . वंशीय राजा, जो विष्णु के अनुसार पुलिंदसेन राजा का सुपक्ष--अजित देवों में से एक । पुत्र, एवं शातकणि राजा का पिता था (विष्णु. ४.२४. सुपथ--एक दानव, जो कश्यप एवं दनु के पुत्रों में ४७)।
| से एक था (वायु. ९८.११)। सुंरर शांतिकर्ण--(आंध्र. भविष्य.) एक राजा, सुपर्ण--एक ऋषि (तै. सं. ४.३.३.२; का. सं. जो मत्स्य के अनुसार सोम राजा का पुत्र था (मत्स्य. ३९.७)। . २७३)।
२. एक ऋषि, जिसने इंद्रियसंयम, एवं मनोनिग्रह के सुंदरा--केकय देश की सुनंदा नामक राजकुमारी | साथ तपश्चर्या की थी। उस तपस्या के कारण इसे स्वयं का नामान्तर (सुनंदा. ३. देखिये),
भगवान् पुरुषोत्तम ने सात्वत धर्म का ज्ञान सिखाया, जो सुंदरी--नर्मदा नामक गंधर्वी की कन्या, जो माल्य- इसने आगे चल कर वायुदेव को प्रदान किया (म. शां. वत् राक्षस की पत्नी थी।
३३६.१८-२१)। २. एक अत्यंज स्त्री, जो शिवमंदिर की सफाई करने त्रिसौपर्ण धर्म-महाभारत के अनुसार, भगवान् के कारण स्वर्गलोक को प्राप्त हुई (स्कंद. १.१.७)। पुरुषोत्तम से उपर्युक्त धर्मज्ञान की प्राप्ति इसे ब्रह्मा के
सुंदोपसुंद--एक अतिभयंकर राक्षसद्वय, जो निकुंभ तीसरे 'वाचिक-युगांतर' में हुई थी। स्वयं को प्राप्त हुए दैत्य के पुत्र थे। ये दोनों भाई आपस में मिल जुल कर धर्म का यह तीन बार पठन करता था, जिस कारण उस अत्यंत स्नेहभाव से रहते थे। दो भाईयों के आपसी धर्म को 'त्रिसौपर्ण' नाम प्राप्त हुआ। दिन में तीन बार भ्रातृभाव का सब से बड़ा शत्रु स्त्री ही होती है, इस तथ्य धर्मज्ञान का पठन करने के इसी व्रत का निर्देश ऋग्वेद का कथन करने के लिए नारद के द्वारा इनकी कथा | में 'चतुष्कपर्दा युवतिः ' आदि ऋचाओं में किया गया है युधिष्ठिर को सुनाई गयी (म. आ. २००-२०४)। (ऋ. १०.११४.२-३)।
ब्रह्मा से वरप्राप्ति-त्रिभुवन पर विजय पाने के लिए ३. पक्षिराज गरुड़ का नामांतर । वैदिक एवं पौराणिक इन दोनों ने अत्यंत उग्र तपस्या की। इस तपस्या के | साहित्य में सर्वत्र सुपर्ण एवं गरुड के द्वारा क्रमशः सोम
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