Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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सायकायन
प्राचीन चरित्रकोश
सारस्वत
सायकायन--श्यापर्ण नामक आचार्य का पैतृक नाम | के शोधार्थ इधर उधर घूमने लगे। केवल एक सारस्वत (श. बा. १०.३.६.१०। ५.२.१)।
मात्र सरस्वती नदी के किनारे वेदाभ्यास करता हुआ रह '२. एक आचार्य, जो कौशिकाय नि नामक आचार्य गया। इस प्रकार देश के बाकी सारे ऋषियों ने वेदाभ्यास का शिष्य, एवं काशायण नामक आचार्य का गुरु था | छोड़ कर मुसाफिर जीवन अपनाया था, उस समय (बृ. उ. ४.६.३ काण्व.)।
इसने वेदाभ्यास की परंपरा जीवित रखी। अकाल के सायकायनि--अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। . बारह वर्षों में यह नदी में प्राप्त मछलियों पर निर्वाह सायम्-एक राजा, जो पुष्पार्ण एवं प्रभा का पुत्र था। | करता था। २. एक आदित्य, जो धातृ आदित्य एवं कुह का पुत्र अकाल समाप्त होने पर सारे ऋषियों के मन में था (भा. ६.१८.३)।
वेदाध्ययन करने की इच्छा उत्पन्न हुई। उस समय केवल सारंग-एक गोप, जिसकी कन्या का नाम रंगवेणी था।
सारस्वत के ही वेदविद्या पारंगत होने के कारण, समस्त सारण--(सो. वसु.) एक सुविख्यात योद्धा, जो
ऋषिसमुदाय शिष्य के नाते इसके आश्रम में उपस्थित वसुदेव एवं रोहिणी के पुत्रों में से एक था। इसके निम्न
हुआ। इस प्रकार साठ हज़ार ऋषियों को इसने वेदविद्या लिखित पुत्र थे:-- १. मार्टि; २. मार्टिमत् ; ३. शिशु;
सिखायी (म. श. ५०)। . ४. सत्यधृति (विष्णु. ४.१५.१४)।
सारस्वत तीर्थ--आगे चल कर इस के आश्रम का
स्थान 'सारस्वत तीर्थ' नाम से प्रसिद्ध हुआ। उस स्थान २. रावण का एक अमात्य एवं गुप्तचर (वा. रा. यु. ५; म. व. २६७.५२; शुक देखिये )।
को तुंगकारण्य नामान्तर भी प्राप्त था (म. व.८३.४३.५०)। ३. एक यक्ष, जो मणिवर एवं देवजनी के पुत्रों में से
| सारस्वतपाठ-तैत्तिरीय संहिता की दो अध्ययन एक था।
पद्धति प्राचीनकाल में प्रचलित थी, जो 'काण्डानुक्रमसारमेय-(सो. वृष्णि.) एक यादव राजा, जो
पाठ' एवं 'सारस्वतपाठ' नाम से सुविख्यात थी। श्वफ़ल्क एवं गांदिनी के पुत्रों में से एक था (भा. ९. २४.
| उनमें से 'काण्डानुक्रमपद्धति' का आज लोप हो चुका है
एवं सारस्वत ऋषि के द्वारा प्राप्त 'सारस्वतपाठ' २. सरमा नामक कुतिया के वंशजों का सामूहिक नाम
ही आज सर्वत्र प्रचलित है। • (ब्रह्मांड. ३.७.३१३; सरमा देखिये)।
सारस्वतपाठ की स्फूर्ति इसे किस प्रकार हुई इस • सारवाह-अगस्त्यकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। संबंध में एक आख्यायिका 'संस्काररत्नमाला' में प्राप्त है।
सारस-गरुड की प्रमुख संतानों में से एक (ब्रह्मांड. एक बार दुवास ऋषि के द्वारा दिये गये शाप के कारण ..३.७.४५६)।
सरस्वती नदी लुप्त हुई,एवं तत्पश्चात् मानवीय रूप धारण २. (सो. यदु.) यदु राजा का एक पुत्र, जिसने दक्षिण | कर, आत्रयवशीय एक ब्राह्मण के घर अवतीर्ण हुई। भारत में वेणा नदी के तट पर स्थित कोचपूर नामक नगरी | पश्चात् उसी ब्राह्मण से सरस्वती नदी को सारस्वत नामक की स्थापना की। आगे चल कर यही क्रौंचपूर 'वनवासी' | पुत्र उत्पन्न हुआ। नाम से प्रसिद्ध हुआ (ह. वं. २.३८.२७)।
पश्चात् सरस्वती नदी ने इसे संपूर्ण वेदविद्या सिखायी, सारस्वत-एक ऋषि, जो दधीचि ऋषि का पुत्र था। | एवं इसे कुरुक्षेत्र में तप करने के लिए कहा। इसी दधीचि ऋषि की तपस्या को भंग करने के लिए इंद्र ने | तपस्या में तैत्तिरीय संहिता का एक स्वतंत्र क्रमपाठ इसे अलंबुषा नामक अप्सरा को भेज दिया। उसे देख कर | प्राप्त हुआ, जो आगे चल कर इसने अपने सारे शिष्यों को दधीचि ऋषि का वीर्य सरस्वती नदी के किनारे स्खलित | सिखाया। पश्चात् इस के इस पाठ को शास्त्रमान्यता एवं हुआ। आगे चल कर उसी वीर्य से सरस्वती नदी को लोकमान्यता भी प्राप्त हुई (संस्काररत्नमाला पृ. ३०२) । एक पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसे सरस्वती नदी का पुत्र होने के
। २. जैगीषव्य नामक शिवावतार का एक शिष्य (वाय. कारण 'सारस्वत' नाम प्राप्त हुआ।
| २३.१३९)। दधीचि ऋषि के आत्मसमर्पण के पश्चात लगातार | ३. भार्गवकुलोत्पन्न एक मंत्रकार एवं गोत्रकार । बारह वर्षों तक भारतवर्ष में अकाल पड़ा। इस समय ४. स्वायंभुव मन्वन्तर का एक व्यास | यह ब्रह्मा का सरस्वती नदी के तट पर रहनेवाले बहुत सारे ऋषि अन्न । पौत्र एवं सरस्वती नदी का पुत्र था। इसे 'अपांतरतम',
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