Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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सावित्री
. प्राचीन चरित्रकोश
सिंहसेन
त्रिराबवत-सत्यवत् की मृत्यु का दिन जब चार दिन | के स्थान पर 'सावित्र' (सूर्य का पुत्र) ऐसा निर्देश है। शेष रहा तब इसने तीन अहोरात्र खड़े रह कर तपस्या | इससे प्रतीत होता है कि, अपने दोनों कुंडल दान में प्रदान करने का 'त्रिरात्रव्रत' किया। इस व्रत के चौथे दिन यह | करनेवाले अंगराज कर्ण की ओर इस कथा में संकेत अपने व्रत की समाप्ति करना चाहती थी, इतने में सत्यवत् | किया है। के मृत्यु की घटिका आ पहुँची ।
सासिसाहरितायन--कश्यपकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । यम से आशीर्वाद प्राप्ति-पश्चात् यम ने अपने पाशों |
साश्व-यमसभा में उपस्थित एक प्राचीन राजा (म. के द्वारा सत्यवत् के शरीर में से अंगुष्ठमात्र आकार का | H ९३४)। प्राणपुरुष खींच लिया, एवं वह यमलोक लौट जाने
| साहजि--(सो. सह.) सहदेववंशीय संवर्त राजा का लगा। उस समय इसने यम का अत्यधिक अनुनय विनय
नामांतर । विष्णु में इसे कुंती राजा का पुत्र कहा गया किया, एवं अनेकानेक अध्यात्मविषयक प्रश्न पूछ कर उसे
है। भागवत एवं हरिवंश में इसे क्रमशः 'सोहं जि' एवं निरुत्तर किया। इस कारण यम ने सत्यवत् के प्राण इसे
'साहंज' कहा गया है ( ह. व. १.३३.४ )। इसने वापस दे दिये (म, व. २८१.२५-५३)।
'साहंजनि नगरी (सांची) की स्थापना की थी (ब्रह्म. इसके श्वशुर द्युमत्सेन का राज्य पुनः प्राप्त होने का,एव । १३.१५६।। उसकी खोयी हुई दृष्टि उसे पुनः प्राप्त होने का वर भी यम
यम साहदेव्य-सोमक नामक आचार्य की पैतृक नाम ने इसे प्रदान किया।
(ऐ. ब्रा. ७.३४.९)। पश्चात् यम के आशीर्वाद के अनुसार इसे सत्यवत् से | साहरि--अंगिराकलोत्पन्न एक गोत्रकार । सौ पुत्र उत्पन्न हुए, एवं द्युमत्सेन का राज्य भी उसे पुनः
साहुर-विश्वामित्रकुलीत्पन्न एक गोत्रकार। प्राप्त हुआ। द्युमत्सेन के पश्चात् सत्यवत् शाल्वदेश का राजा बन गया, जहाँ उसने चार सौ वर्षों तक राज्य किया | साय-एक मरुत् , जो मरुत्गणों में से चौथे मन्त (म. व. २७७-२८३; मत्स्य: २०७-२१३: दे.भा.९. गण में शामिल था। २६-३८; ब्रह्मवै. २.२३-२४)।
सिंह-कृष्ण एवं लक्ष्मणा के पुत्रों में से एक। . २. ब्रह्मा की पत्नी शतरूपा का नामान्तर (ब्रह्मन्
२. राम दाशरथि के सूज्ञ नामक मंत्रि का पुत्र (कुशलवदेखिये)।
| देखिये)। . ३. एक देवी, जो सूर्य एवं पृष्णि की कन्या मानी जाती सिंहकेतु-चेदि देश का एक राजकुमार, जो भारतीय है (भा.६.१८.१)। यह गायत्री मंत्र की अधिष्ठात्री युद्ध में पांडवों के पक्ष में शामिल था। कण ने इसका वध देवी मानी गयी है। इसके उपासकों में अश्वपति राजा किया (म. द्रो. ४०.५१)। प्रमुख था, जिसे इसने अग्निहोत्र से प्रकट हो कर प्रत्यक्ष सिंहचंद्र--पांचाल देश का एक राजा, जो युधिष्ठिर दर्शन दिया था (म. व. २७७.१०; मास्य. २०८-६)। त्रिपुर- का मित्र था। भारतीय युद्ध में वह पांडवपक्ष में शामिल दाह के समय शिव ने इसे अपने रथ के घोड़ों की बागडोर, | था ( म. दो. १३३.३७) । एवं संवत्सरमय धनुष्य की प्रत्यंचा बनाया था (म. द्रो.
सिंहल--एक म्लेच्छ जातीय लोकसमूह, जो भारतीय १४.५७) । विदर्भ देश में रहनेवाले सत्य नामक ब्राह्मण युद्ध में कौरवपक्ष में शामिल थे। ये लोग द्रोण के द्वारा के गायत्री जप से संतुष्ट हो कर, इसने उसे दर्शन दिया
निर्मित गरुड़व्यूह के ग्रीवाभाग में स्थित थे (म. दो. १९. था (म. शां. २६४.१०)।
७)। ४. शिवपत्नी उमा की एक सहचरी (म. व.२२१.२०)। सिंहलेन--पांचाल देश का एक योद्धा, जो भारतीय
५. एक धर्मपरायण राजपत्नी, जिसने दिव्य कुंडलों का युद्ध में पांडवपक्ष में शामिल था। द्रोण ने इसका वध दान कर उत्तम लोक की प्राप्ति की थी (म. शां. २२६. | किया ( म. द्रो. १५.३५. )। २४) । संभवतः इस कथा में सत्यवत् की पत्नी सावित्री की | २. पांचाल देश का एक योद्धा, जो गोपति पांचाल का ओर संकेत किया होगा।
पुत्र था। यह भारतीय युद्ध में कर्ण के द्वारा मारा गया महाभारत के अनुशासनपर्व में यही कथा पुनरुद्धृत (म. क. ४०.४८)। इसके रथ के अश्वश्वतरन वर्ण के की गयी है (म. अनु. २०९)। किन्तु वहाँ 'सावित्री' थे ( म. द्रो. २२.४३ )।
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