Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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सिंधु
सिंधु -- इक्ष्वाकुवंशीय सिंधुद्वीप राजा का नामान्तर (ब्रह्म. १६९.१९) ।
प्राचीन चरित्रकोश
२. एक असुर, जो श्रीगणेश के द्वारा मारा गया ( गणेश. २.७३ - १२६ ) ।
३. एक लोकसमूह, जिसका निर्देश प्राचीन साहित्य में सीवीर लोगों के साथ प्राप्त है। ये दोनों लोकसमूह सिंधुनद के तट पर निवास करते थे ।
बौधायन धर्मसूत्र में इन्हें म्लेच्छ जाति का, एवं अपवित्र माना गया है। भारतीय युद्ध के समय, अपने राजा जयद्रथ के साथ ये लोग कौरवपक्ष में शामिल थे (म. भी. १८.१३-१४) ।
सतीत्व की साकार प्रतिमा जिस काल में बहुपत्नी काय रूक्षत्रिय समाज में प्रतिष्ठित कत्व थी, उस समय एकपत्नीकत्व का नया आदर्श राम दाशरथि राजा के रूप में
वाल्मीकि ने अपने 'वाल्मीकि रामायण' के द्वारा प्रस्थापित किया (राम दाशरथि देखिये ) । उसके साथ ही साथ एकपत्नीकत्व के अत का आचरण करनेवाले क्षत्रिय के फनी को किस प्रकार वर्तन करना चाहिए, इसका आदर्श बा ने सीता के रूप में चित्रित किया। इसी कारण राम दाशरथि के साथ सौता भारतीय स्त्री जाति के सतीद एकनिष्ठा एवं पवित्रता की ज्वलंत एवं साकार प्रतिमा बन कर अमर हो गयी है।
सिंधुक - (आंध्र भविष्य . ) आंध्रवंशीय शिप्रक राजा का नामान्तर । वायु एवं ब्रह्मांड में इसे आंध्रवंश का सर्वप्रथम राजा कहा गया है।
सिंधुक्षित-एक राजा, जो दुर्भाग्य के कारण राज्यअ हुआ था। आगे चल कर एक साम के पटन से इसे अपना विगत राज्य पुनः प्राप्त हुआ (पं. ब्र. १२. १२.६)।
सिंधुक्षित प्रमद -- एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. १०.७५) ।
१६९.४)।
३. एक ऋषि, जिसने वेदनाथ नामक ब्राह्मण का उद्धार
किया था (स्कंद, १.२.१४ ) ।
सीता
सिंधुसेन - एक राक्षस, जिसने संसार के समस्त मंत्रों का हरण कर उन्हें रसातल में छिपा दिया। इस कारण संसार के सारे यश चन्द पड़ गये। आगे चलकर विष्णु ने वराह का रूप धारण कर इसका नाश किया, एवं यज्ञमंत्रों को रसातल से वापस लाया ।
सीता वैदेही -- विदेह देश के सीरध्वज जनक राजा की कन्या, जो इक्ष्वाकुवंशीय राम दाशरथि राजा की पत्नी थी ।
सिंधुद्वीप - (सो. अमा. ) एक राजा, जो जह्नु राजा का पुत्र एवं बलका राजा का पिता था। जन्म से यह क्षत्रिय था, किन्तु आगे चल कर 'पृथूदक तीर्थ में स्नान करने के कारण यह ब्राह्मण बन गया ( म. श. ३९.१०; अनु. ७.४ ) ।
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२. एक ऋषि जो ऋषि का भाई था (ब्रहा संबंध में स्वयं रावण कहता है-
सिंधुद्वीप - (सु.) एक राजा, जो विष्णु, वायु, एवं मत्स्य के अनुसार अंबरीष राजा का पुत्र एवं अयुतायु राजा का पिता था। भागवत एवं हरिवंश में इसे नाम राजा का पुत्र कहा गया है।
सिंधुद्वीप ओवरीष नामक एक वैदिक सूक्तद्रथा का निर्देश ऋग्वेद में प्राप्त है (ऋग्वेद १०.९), जो संभवतः यही होगा।
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सिंधुवीर्यमद्रदेश का एक राजा, जिसकी कन्या का नाम केकयी था। अपनी इस कन्या का विवाह इसने मरुत आविक्षित राजा से किया था।
स्वरूप वर्णन - वाल्मीकि रामायण में सीता के स्वरूप का अत्यंत काव्यमय वर्णन प्राप्त है, जहाँ इसे पूर्णचंद्रवदना, अपनी प्रभा से सभी दिशाओं को प्रकाशित करनेवाली (वा. रा. मुं. १५.२० ३९ ) कोमलांगिनी, शुद्धस्वर्णवर्णी (बा. रा अर. ४३.१-२ ) समी एवं ); लक्ष्मी रति की प्रतिरूपा, नखशिख सौंदर्यमयी ( वा. रा. अर, ४६.१६ २२ ) कहा गया है। इसके अप्रतीम सौंदर्य के
(बा. रा. अर. ४६.२३) । ( सीता के समान सौंदर्यवती स्त्री मैं ने इस धरती पर देव, गंधर्व, यक्ष, किन्नर आदि में कहीं भी नहीं देखी है।)
भूमिजा सीता पर वह सीराज जनक की कन्या मानी जाती है, फिर भी यह उसकी अपनी कन्या न थी । वाल्मीकि रामायण में इसका जन्म भूमि से बताया गया है, एवं इसके जन्म के संबंधी निम्नलिखित कथा वहाँ दी गयी है। एक दिन जनक राजा यज्ञममि तैयार करने के लिए हल चला रहा था, उस समय एक छोटीसी कया मिट्टी से निकली। उसने इसे पुत्री के रूप में ग्रहण किया, एवं उसका नाम सीता रखा ( वा. रा. बा. ६६.१३
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नैव देवी नवीन यक्षी न किसरी । नैवंरूपा मया नारी दृष्टपूर्वा महीतले ॥