Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
View full book text
________________
सुगति
प्राचीन चरित्रकोश
सुग्रीव
२. हंसध्वज राजा का प्रधान ।
से बाहर निकाल दिया। पश्चात् यह विजनवासी बन कर सुगंध-एक राक्षस, जो हिरण्याक्ष एवं देवों के संग्राम इधर उधर घूमने लगा। इस समय इसने समस्त भूमंडल में अग्नि के द्वारा दग्ध किये गये सात राक्षसों में से एक का भ्रमण किया, एवं अंत में यह ऋष्यमूक पर्वत पर आ था (पझ. स. ७५)।
कर रहने लगा, जो स्थान वालि के लिए अगम्य था २. एक यक्ष, जो मणिवर एवं देवजनी के पुत्रों में से | (वा. रा. कि. ४६; वालिन् देखिये)। एक था।
राम से मैत्री--आगे चल कर ऋष्यमूक पर्वत पर, सुगंधा--एक अप्सरा, जिसने अर्जुन के जन्मोत्सव सीता की खोज के लिए आये हुए रामलक्ष्मण से इसकी के समय नृत्य किया था (म. आ. ११४.५२)। भेंट हुई । वहाँ अग्नि को साक्ष रख कर इन्होंने आपस में २. कृतवीर्य राजा की पत्नी।
मित्रता प्रस्थापित की, जिसके अनुसार इसने सीताशोध सुगणा-स्कंद की अनुचरी एक मातृका (म. श. | के काय में राम की सहायता करने का, एवं राम ने वालिन् ४५.२६ )।
का वध कर इसे किष्किंधा का राजा बनाने का आश्वासन सुगंधी- वसुदेव की तेरह पत्नियों में से एक जिसके | दिया। पुत्र का नाम पुण्ड्र था (वायु..९६.१६१)। | वालिन् वध--पश्चात् अपने आश्वासन के अनुसार,
सुगवि--(सू. इ.) इक्ष्वाकुवंशीय संधि राजा का राम ने वालिन् का वध किया एवं इसे किष्किंधा के नामान्तर ।
| राजगद्दी पर बिठाया। पश्चात् इसे अपनी पत्नी रुमा एवं सुगोप्ता-एक प्राचीन विश्वेदेव (म. अनु. ९१.३७)। वालिन् की पत्नी तारा ये दोनों पत्नियों के रूप में पुनः सुगृधि--कश्यप एवं ताम्रा की कन्याओं में से एक । प्राप्त हुई (वा. रा. कि. २६; वालिन् एवं राम दाशरथि
सुग्रीव--किष्किंधा नगरी का एक सुविख्यात वानर | देखिये )। इसी समय वालिन् के पुत्र अंगद को किष्किंधा राजा, जो महेंद्र एवं ऋक्षकन्या विरना का पुत्र था | का यौवराज्याभिषेक किया गया। (ब्रह्मांड. ३.७.२१४-२४८; भा. ९.१०.१२ )। यह ___ लक्ष्मण का क्रोध--इसके राज्याभिषेक के पश्चात् राम वालिन् का छोटा भाई था। वाल्मीकिरामायण के प्रक्षिप्त
एवं लक्ष्मण चार महीनों तक प्रस्त्रवण पर्वत पर रहे। इस काण्ड में इसे ऋक्षरजस् नामक वानर का पुत्र कहा गया समय, यह विषयसुखों में इतना निमग्न रहा कि, एक बार है, जिसकी ग्रीवा (गर्दन) से उत्पन्न होने के कारण इसे | भी रामलक्ष्मण को मिलने न गया (वा. रा. कि. ३१.२३; • 'सुग्रीव' नाम प्राप्त हुआ था (वा. रा. उ. प्रक्षिप्त. ६)।
३९, ३३.४३, ४८,५४,५५)। इस कारण लक्ष्मण ने स्वयं इस ग्रंथ में लन्यत्र इसे सूर्य का पुत्र अंशावतार कहा | किष्किंधा नगरी में जा कर इसकी अत्यंत कटु आलोचना गया है । इसके अमात्य का नाम द्विविद था (भा. १०.
की, एवं वह उसका वध करने के लिए प्रवृत्त हुआ । इस ६७.२)।
| समय तारा ने लक्ष्मण को प्रार्थना कि, वह इसे क्षमा करे। इसके एवं इसकी वानरसेना की सहायता के कारण स्वयं सुग्रीव भी हाथ जोड़ कर खड़ा हुआ, एवं इसने अपने ही, गम दाशरथि लंकाधिपति रावण जैसे बलाढ्य राक्षस
अकृतज्ञता के लिए लक्ष्मण से बार बार क्षमा माँगी। पर विजय पा सका। इस कारण समस्त रामकथाओं में
पश्चात्ताप-पश्चात् यह स्वयं सीता की खोज करने यह अमर हो चुका है।
जाने के लिए प्रवृत्त हुआ, किंतु हनुमत् ने इसे परावृत्त वालिन् से शत्रुत्व-यह वालिन् का छोटा भाई था, किया, एवं चारों दिशाओं में सीता को ढूंढने के लिए जिस कारण वालिन् के सभी पराक्रमों में एवं साहसों में वानरदूत भेज दिये, जिनमें दक्षिण दिशा के वानरों का यह उसकी सहायता करता था। आगे चल कर मायाविन् । नेतृत्व उसने स्वयं स्वीकृत किया। राक्षस के युद्ध में वालिन् एक वर्ष तक किष्किंधा नगरी इसी समय हनुमत् ने इसे उपदेश दिया कि, यह में वापस न आया । इस कारण उसे मृत समझ कर, यह अपने वचनों का ख्याल कर राम के उपकारों का बदला किष्किंधा नगरी का राजा बन गया, एवं वालिन्पत्नी तारा | योग्य प्रकार से चुकाये । हनुमत् का यह उपदेश सुन कर, को इसने पत्नी के रूप में स्वीकार किया।
इसे अपने कृतकर्म का पश्चात्ताप हुआ, एवं सीता की ___एक वर्ष के पश्चात् वालिन् किष्किंधा नगरी लौट आया, | मुक्तता करने के लिए अपनी सारी सेना सुसज्ज रखने एवं इसे भ्रातृद्रोही शत्रु मान कर उसने इसे किष्किंधा राज्य | की आज्ञा इसने अपने सेनापति नील को दी। प्रा. च. १३२]
१०४९