Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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सात्यकि
२.
भारतीय युद्ध में इस युद्ध के पहले दस दिनों में इसने निम्नलिखित योद्धाओं के साथ युद्ध पर अत्यधिक पराक्रम दिखाया था :-- १. शकुनि ( म. भी. ५४.८९); २. भूरिश्रवस् एवं अलंबुस ( म. भी. ५९-६० ); भीमदुर्योधन, भगदत्त एवं अवत्थामन् द्रोण के सैनापत्यकाल में — भारतीय युद्ध के बारहवें दिन इसने द्रोण के साथ घनघोर युद्ध किया था, एवं उसके एक भी एक धनुषों को खण्डित कर ध्वस्त कर दिया। इसके युद्धकौशल्य से प्रसन्न हो कर, द्रोण ने इसे स्वयंस्फूर्ति से परशुराम, कार्तवीर्य अर्जुन एवं भीम के समान श्रेष्ठ धनुर्धर नाते संबोधित किया
प्राचीन चरित्रकोश
रामे कार्तवीर्ये धनंजये। भीमे च पुरुषादित्वरे ॥ ( म. द्रो. ७३.३७ ) ।
पश्चात् युधिष्ठिर के आदेश से, यह द्रोण से युद्ध छोड़ कर अर्जुन की सहायता के लिए चला गया ( म. द्रो. ८५.३९-६८)। जयद्रथवध के दिन युधिष्ठिर की रक्षा का भार इस पर सीग गया था किन्तु अर्जुन को संकट में देख कर इसने भीम को युधिष्ठिर की रक्षा करने के लिए कहा, एवं यह अर्जुन की सहायता के लिए दौड़ा। उस दिन इसका निम्नलिखित योद्धाओं के साथ युद्ध हुआ :- १. कृतवर्मन् ( म. द्रो. ८६.८८ ); २. दुःशासन; ३. भूरिश्रवस् ( म. द्रो. ११७९ १६९.२४ ) ४. दुर्योधन ( म. द्रो. १६४.२८ ); ५. कर्ण ( म. द्रो. ३१.६७ ) । उपर्युक्त युद्धों में से बहुत सारे युद्धों में यह अजेय रहा। केवल भूरिश्रवस् ने इसे पराजित किया, एवं इसके बालों को पकड़ कर वह इसका वध करने के लिए प्रवृत्त हुआ। उस समय अर्जुन ने पीछे से आ कर उसके दोनों हाथ तोड़ दिये। बाद में भूरिश्रवस् आमरण अनशन सनेमात इसने उसका वध किया। इस प्रकार अपने पुत्रों का वध करनेवाले भूरिश्रवसे इसने बदला ले
कर्म के सैनापत्यकाल में इस काल में इसने निम्र लिखित योद्धाओं से युद्ध कर काफी पराक्रम दिखायाः १. राजकुमार बिंद एवं अनुविंद ( म. प. ९२०) २. कर्ण (म. क. २१.२४ ); ३. वृषसेन ( म. क. ३२. ४९) ४. शकुनि (म. . ४१.३१-४५) ५. कर्णपुत्र प्रसेन (म. क. ६०.४) ।
भारतीय युद्ध के अठारहवें दिन युद्ध के अंतिम दिन इसने मपूर्ति एवं मच्छराज शास्त्र का वध किया (म. प्र.च. १२० ]
सात्यकि
श २०.८-२५) । संजय को जीवित पकड़ कर यह उसे मारने के लिए उद्यत हुआ, किंतु श्रीव्यास की भाजा से इसने उसे छोड़ दिया ( म. श. २८.३८ ) ।
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पराक्रम - भारतीय युद्ध में कृष्ण एवं अर्जुन के बाद सब से अधिक पराक्रम सात्यकि ने ही दिखाया। इसी कारण संजय ने धृतराष्ट्र से कहा था, 'कृष्ण एवं अर्जुन के अतिरिक्त, सात्यकि के समान अन्य कोई भी धनुर्धर पाण्डवसेना में नहीं है (म. बो. १२२.७३) ।
जयद्रथवध के पश्चात् कृष्ण ने भी इसकी अत्यधिक प्रशंसा की थी, वहीं उसने कहा था, 'सात्यकि के खजान कोई भी योद्धा पाण्डव एवं कौरवसेना में नहीं है (यस्य नास्ति समो योधः कौरयेषु कथंचन) (म. प्रो. ११६.११. २५)।
भारतीय युद्ध के पश्चात् - युद्ध के उपरान्त यह कृष्ण के साथ द्वारका गया, एवं रैवतक पर्वत पर होनेवाले महोत्सव में सम्मिलित हुआ (म. आश्व. ५८.४ ) | युधिष्ठिर के द्वारा किये गये अश्वमेधीय यज्ञ में भी यह उपस्थित
था।
मृत्यु -- भारतीय युद्ध में पाण्डव पक्ष के जो थोडे वीर बचे थे, उन में यह एक था । इस युद्ध के पश्चात् यह कई साल तक जीवित रहा।
कृतवर्मन् के वध के उपरांत इसने अन्य यादवों का वध करना प्रारंभ किया । कृष्ण ने इसे बहुत रोका, किन्तु इसने उसकी एक न सुनी। इसे सभी यादवों को मारते देख कर उन्होंने इस पर सामूहिक हमला किया, एवं अन्य कोई शस्त्र प्राप्त न होने पर जड़े बर्तनों से ही इसे मारना शुरु किया। इसे इस प्रकार फँसा हुआ देख कर कृष्णपौत्र प्रद्युम्न इसे बचाने के लिए बीच में कूद पड़ा, एवं ये दोनों यादवों के द्वारा मारे गये (म. मौ. ४.३४ ) ।
परिवार -- महाभारत में इसके पुत्र का नाम यौयुधानि दिया गया है। इसकी मृत्यु के पश्चात् अर्जुन ने उसे
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प्रभास क्षेत्र में हुए यादवी युद्ध के समय, अन्य यादवों के समान इसने भी 'मैरेयक' नामक मद्य का सेवन किया, एवं आपस में लड़ना झगड़ना इसने शुरू किया। उस समय इसका पुरातन शत्रु कृतवर्मन् इससे वाद-विवाद करने लगा उस समय कृतवर्मन् ने कृष्ण के द्वारा किये गये स्यमंतक मणि के अपहरण की चर्चा प्रारंभ की। कृतवर्मन की ये बाते सुन कर सत्यभामा रोने लगी। उसे रोती देख कर यह अत्यधिक क्रुद्ध हुआ, एवं इसने कृतवर्मन् का शिरच्छेद किया (म. मौ. ४.२७) ।
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