Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
View full book text
________________
माधव
प्राचीन चरित्रकोश
माधवी
अध्याय को सुनाया, जिससे उसका उद्धार हुआ (पन्न. काल अवधि समाप्त होते ही, गालव अपि इसे राजा उ. १८३)।
हर्यश्व से ले गया, एवं यह भी राजवैभव के मोह से माधवी नहुपकुलोत्पन्न राजा ययाति की कन्या । ऊब कर सहर्ष उसके साथ चलने को तैयार हो गयी। (म. उ. ११३.४५५४)। यह अल्पायु थी। एक ब्रहानिष्ठ प्राप्त हुए वर के अनुसार, यह पुनः कुमारी बन गयी। ने इसे वरदान दिया था कि, यह चाहे जितनी बार पुत्र दिवोदाल से विवाह--बाद में गालव माधवी को लेकर उत्पन्न करे, लेकिन इसका यौवन सदैव एक सा रहेगा, | का शिराज दिवोदास राजा के पास गया। दिवोदास ने एवं पुत्र उत्पन्न कर के भी यह चिरकुमारी रहेगी। गाल्व को उसी प्रकार के दो सौ अश्व दिये, तथा हर्यश्व गालव ऋषि को दान--एक बार गुरुदक्षिणा में
राजा के समान करार कर के, पुत्रोत्पन्न करने के लिए
माधवी को अपने पास रख दिया। कालान्तर में माधवी सहायता प्राप्त करने के लिए गालव ऋपि ययाति के पास
से दिवोदास को 'प्रतर्दन' नामक पुत्र हुआ (म. उ. आया। उस समय गालव ऋषि का सारा पैसा पुण्यकार्य में खर्च हो गया था, किंतु उसे अपने गुर विश्वामित्र
११५.१५) । करार की अवधि समाप्त होते ही, गालव ऋषि को दक्षिणा कही न कही से देनी ही थी । ययाति के पास
| दिवोदास के पास आया, तथा माधवी को वापस ले गया। धन की कमी न थी, किंतु गालव ऋषि को देने के लिए उशीनर से विवाह-अन्त में गुरुदक्षिणा की पूर्ति के उनके पास वैसे आठ सौ अश्वन थे, जैसे कि गालव लिए, गालव इसे भोज नगरी के उशीनर राजा के पास ले ऋप ने विश्वामित्र के लिये ययाति से माँगे थे। अतएव | गया । उपरलिखित प्रकार से करार कर के, गालव ने उशीनर उसने अपनी पुत्री गालय को दे कर कहा, 'तुम मेरी पुत्री से भी दो सौ अश्व प्राप्त किये, एवं पुत्र होने की अवधि को ले सकते हो, दूसरे राजा को इसे दे कर तुम उससे तक के लिए माधवी को राज के पास छोड़ दिया। धन ही नहीं, बल्कि राज्य भी प्राप्त कर सकते हो (म.. कालान्तर में उशीनर राजा को माधवी से 'शिबि' नामक उ. ११४)।
पुत्र हुआ (म. उ. ११६.२०)। . हर्यश्व से विवाह-यह कन्या अत्यन्त सुंदर तथा
| करार की अवधि समाप्त होने के बाद, जब गालय सुलक्षणी थी, अतएव इसे ले कर गालव ऋषि इक्ष्वाकु
माधवी को उशीनर से ले कर जा रहा था, तब मार्ग में कुलोत्पन्न राजा हर्यश्व के पास गया । हर्यश्व ने पुत्र
उसे गरुड़ मिला । उसने इसे बताया, 'इसके बाद आपको प्राप्ति के लिए अनेकानेक प्रयत्न किये थे, फिर भी वह
और ऐसे अश्व मिलना असम्भव है। इसलिए जो छ: सौ
आर एस निःसंतान था। वह माधवी को देखते ही उस पर मोहित |
अश्व मिले है, उन्हें लेकर आप अपने गुरु विश्वामित्र को . हो गया, किंतु गालव ऋपि की माँग के अनुसार, उसके
दे दें, तथा शेष दो सौ अश्वों के स्थान पर, माधवी को पास आठ सौ अश्व न थे, जो एक कान से कृष्ण तथा ही उसे प्रदान करे। चन्द्रप्रभायुक्त हों। इसलिए उसने गालव ऋषि के विश्वामित्र से विवाह-गालव को यह चीज़ पसन्द सामने शर्त रक्खी, 'इस समय मुझसे केवल दो सौ आयी, और उन्होंने ऐसा ही किया। विश्वामित्र ने भी अश्व ले ले, जो मेरे पास है, तथा मुझे माधवी दे दो। गालव की यह प्रार्थना मान ली । कालान्तर में विश्वामित्र जब मुझे माधवी से पुत्र प्राप्त हो जायेगा, तो मैं उसे को माधवी से अष्टक नामक पुत्र हुआ(म. उ. ११७.१८)। तुम्हे वापस कर दूंगा'। ऐसा कह कर, गालव ऋषि की अष्टक के जन्मोपरान्त, माधवी को गालव के हाथ सौंप कर
आज्ञा से राजा हर्यश्व ने माधवी को अपने पास रख विश्वामित्र तप के लिए चले गया । लिया।
विश्वामित्र को गुरुदक्षिणा देने में गालव सफल रहा, गालव ऋषि का कार्य पूर्ण करने के उद्देश्य से माधवी ने अतएव वह बड़ा प्रसन्न था। जिस कन्या के कारण, हर्यश्व से सारी वस्तुस्थिति बताकर कहा, 'मुझे अभी चार उसका यह संकट दूर हुआ, उस माधवी को ययाति राजा राजाओं को और दिया जायेगा। कालान्तर में इसने के यहाँ पहुँचाकर, गालव भी तपश्चर्या के लिए वन में अपने गर्भ से सुमत् (वसुमनस् ) नामक पुत्र को जन्म | चला गया। दिया, जो आगे चलकर अयोध्या का राजा हुआ (म. उ. स्वयंवर--राजा ययाति ने माधवी का स्वयंवर निश्चित ११४.१७)।
| करके, इसे रथ पर बैठा कर सारे देश में घुमाया। किन्तु