Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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युधिष्ठिर
प्राचीन चरित्रकोश
युधिष्ठिर
शकुनि (म. उ. १५२.१२८-१२९)। भारतीय युद्ध के खेलने के लिए मजबूर करे, और समस्त पाण्डवों को फिर अठरह दिनों में कौरवपक्ष के निम्नलिखित सेनापति हुये थे:- वनवास भेज कर चैन की बन्सी बजाओं। पहले १० दिन-भीष्म ११-१५ दिन-द्रोण; १६-१७ __ युधिष्ठिर ने जब द्रोण की प्रतिज्ञा सुनी, इसने तब अर्जुन दिन-कर्ण; १८ वें दिन का प्रथमाध-शल्य; द्वितायाधं- | को अपने पास ही रहने के लिए कहा (म. द्रो १३. दुर्योधन ।
७४२)। द्रोणाचार्य द्वारा निर्मित 'गरुडव्यूह' को देख युद्ध का प्रारंभ-मार्गशीर्ष शुद्ध त्रयोदशी के दिन | कर यह अत्यधिक भयभीत हुआ था ( म. द्रो १९.२१भारतीय युद्ध का प्रारंभ हुआ एवं पौष अमावस्या | २४)। अभिमन्यु के मृत्यु के बाद इसने बहुत करुण विलाप के दिन वह समाप्त हुआ। इस तरह यह युद्ध अठारह | किया था, तथा व्यासजी से मृत्यु की उत्पत्ति आदि के दिन अविरत चलता रहा। युद्ध के पहले दिन पाण्डवों | विषय में प्रश्न किया था। व्यास के द्वारा अत्यधिक समझाये का सैन्य उत्तर की ओर आगे बढा, एवं कुरुक्षेत्र की प्रश्चिम | जाने पर यह शोकरहित हुआ था (म. द्रो. परि. १.८)। में आ कर युद्ध के लिए सिद्ध हुआ। इस पर कौरव सैन्य
__इसने युद्ध में दुर्योधन एवं द्रोणाचार्य को मूर्छित कर कुरुक्षेत्र की पश्चिम में प्रविष्ट हुआ, एवं उसी मैदान
परास्त किया था (म. द्रो. १३७.४२)। किन्तु इसी युद्ध में भारतीय युद्ध शुरू हुआ।
में कृतवर्मन् ने इसे परास्त किया था, एवं कर्ण से यह ___ युद्ध के प्रारंभ में युधिष्ठिर अपना कवच एवं शस्त्र उतार घबरा उठा था। अभिमन्यु की भाँति भीमपुत्र घटोत्कच कर पैदल ही कौरव सेना की ओर निकला। इसका अनु- | की मृत्यु से भी यह अत्यधिक शोकविव्हल हो उठा था। करण करते हुए इसके चारो भाई भी चल पड़े। अपने | पश्चात द्रोण ने अपने अत्यधिक पराक्रम के बल से गुरु भीष्म, द्रोण एवं कृपाचार्य से वंदन कर इसने युद्ध इसे विरथ कर दिया, एवं डर कर यह युद्धभूमि से भाग. करने की अनुज्ञा माँगी, एवं कहा, 'इस युद्ध में हमें गया (म. द्रो. ८२.४६) । अन्त मेंजय प्राप्त हो, ऐसा आशीर्वाद आप दे दिजिए'। गुरुजनों का आशीर्वाद मिलने के बाद, इसने अपने सेनापति ___ 'अश्वत्थामा हतो ब्रह्मन्निवर्तस्वाहवादितिः । को युद्ध प्रारंभ करने की आज्ञा दी (म. भी. ४१.३२- कह कर यह द्रोण की मृत्यु का कारण बन गया (द्रोण ३४)।
देखिये; म. द्रो. १६४.१०२-१०६)। द्रोणवध के समय प्रारंभ में प्रथम दिन के युद्ध में इसका शल्य के | इसने 'नरो वा कुञ्जरो वा' कह कर द्रोणाचार्य से मिथ्या साथ युद्ध हुआ था। भीष्म के पराक्रम को देखकर इसे | भाषण किया, जिस कारण पृथ्वी पर निराधार अवस्था में बड़ी चिन्ता हुई थी, एवं उसके युद्ध से भयभीत हो कर
चलनेवाला इसका रथ भूमि पर चलने लगा (म. द्रो इसने धनुष्य बाण तक फेंक दिया था (म. भी. ८१. १६४.१०७)। २९)। इसने भीष्म के साथ युद्ध भी किया, किन्तु पराजित | द्रोणाचार्य के सैनापत्य के काल में कौरव एवं पाण्डवों रहा। भीष्म का विध्वंसकारी युद्ध देखकर इसने बड़े | के सैन्य का अत्यधिक संहार हुआ, जिस कारण उन दोनों करुणपूर्ण शब्दों में भीष्मवध के लिए पाण्डवों की सलाह | का केवल दो दो अक्षौहिणी सैन्य बाकी रहा। ली थी, तथा कृष्ण से कहा था, 'आप ही भीष्म से
कर्णवध-द्रोण के उपरांत कर्ण सेनापति बना, जिसने पूछे कि, उनकी मृत्यु किस प्रकार हो सकती है (म. भी.
| इसका पराभव कर इसकी काफी निर्भर्त्सना की ( म. क. १०३.७०-८२)।
४९. ३४-४०)। पराजित अवस्था में, इसका वध न कर भीष्म के बाद द्रोण-दुर्योधन ने भीष्म के बाद द्रोणाचार्य | कर्ण ने इसे जीवित छोड़ दिया। इस अपमानित एवं को सेनापति बनाया। द्रोण द्वारा वर माँगने के लिए कहा। घायल अवस्था में लज्जित हो कर यह शिबिर में लौट जाने पर, दुर्योधन ने उससे यह इच्छा प्रकट की थी | आया । इतने में इसे ढूँढने के लिए गये कृष्ण एवं अर्जुन कि, वह उसके सम्मुख युधिष्ठिर को जिंदा पकड़ लाये। भी वापस आये। उन्हे देख कर यह समझा कि, वे कर्ण तब द्रोण ने कहा था, 'अर्जुन की अनुपस्थिति में ही | का वध कर के लौट आ रहे है । अतएव इसने उनका यह हो सकता है। दुर्योधन युधिष्ठिर को जीवित | बड़ा स्वागत किया, किन्तु अर्जुन के द्वारा सत्यस्थिति • पकड़कर इस लिए लाना चाहता था कि, उसे फिर द्यूत | जानने पर, यह अत्यंत शांत प्रकृति का धर्मात्मा क्रोध से
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