Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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रुद्र
प्राचीन चरित्रकोश
ब्रह्मा के क्रोध से उत्पन्न कहा गया है (पद्म. सु. ३, दाह का उपशम करने के लिए, इसने अपने जटासंभार में भा. ३.१२.१०) । अन्य पुराणों में, इसे ब्रह्मा के उसी समुद्रमंथन से निकला हुआ चंद्र धारण किया, जिस अभिमान से (ब्रह्मांड. २.९.४७); ललाट से (भवि. कारण इसे 'नीलकंठ,' एवं 'चंद्रशेखर' नाम प्राप्त ब्राझ ५७); मन से (मत्स्य. ४.२७); मस्तक से (स्कंद. | हुयें। ५.१.२) उत्पन्न कहा गया है।
ब्राह्मणों का नाश करने के हेतु, एक दैत्य हाथी का रूप विष्णु के अनुसार, प्रजोत्पादनार्थ चिंतन करने के | धारण कर काशीनगरी में प्रविष्ट हुआ था, जिसका इसने लिए बैठे हए ब्रा को एक पुत्र उत्पन्न हुआ, जो शुरु में | वध किया. एवं उसका चर्म का वस्त्र बनाया। इसी कारण रक्तवर्णीय था, किन्तु पश्चात् नीलवर्णीय बन गया । ब्रह्मा इसे 'कृत्तिवासस' (हाथी का चर्म धारण करनेवाला ) नाम का यही पुत्र रुद्र है। स्कंद में शंकर के आशीर्वाद से ही | प्राप्त हुआ (पा. स्व. ३४)। ब्रह्मा के रुद्र नामक पुत्र होने की कथा प्राप्त है।
देव असुरों के युद्ध में यह प्रायः देवों के पक्ष में ही अन्य पुराणों में रुद्रगणों को कश्यप एवं सुरभि के
शामिल रहता था, एवं देवसेना के सेनापति के नाते (ह. वं. १.३, ब्रह्म ३.४७-४८; शिव. रुद्र. १७);
इसने अपने पुत्र कार्तिकेय को अभिषेक भी किया था भूतकन्या सुरूपा के ( भा. ६.६. १७); तथा प्रभास एवं
(विष्णुधर्म. १.२३३)। फिर भी अपना श्रेष्ठत्व बृहस्पतिभगिनी के (विष्णु १. १५. २३) पुत्र कहा
प्रस्थापित करने के लिए इसने देवों से तीन बार, एवं गया है। महाभारत में कई स्थानों पर, रुद्र देवता के
नारायण तथा कृष्ण से एक एक बार युद्ध किया था स्थान पर एकादश रुद्रों का निर्देश किया गया है (म.
(म. शां. ३३०)। नारायण के साथ कियें युद्ध में, इसने आ. ६०.३; ११४. ५७--५८; शां. २०१.५४८; अनु.
उसके छाति पर शूल से प्रहार किया था, जो व्रण २५५.१३; स्कंद. ६.२७७; पन सृ. ४०)।
'श्रीवत्स-चिह्न' नाम से प्रसिद्ध है (न. शां ३३०. पराक्रम-इसके पराक्रम की विभिन्न कथाएँ पुराणों में | प्राप्त हैं । गंधमादन पर्वत पर अवतीर्ण होनेवाली गंगा
महाभारत में वर्णन किये गये शिव के पराक्रम में इसने अपने जटाओं में धारण की (पद्म. स्व. ३)। अपने श्वसुर दक्ष के द्वारा अपमान किये जाने पर, इसने उसके
दक्ष-यज्ञ का विध्वंस, एवं त्रिपुरासुर का वध (म. क. २४). यज्ञ का विध्वंस अपने वीरभद्र नामक पार्षद के द्वारा
इन दोनों को प्राधान्य दिया गया है (दक्ष प्रजापति एवं
त्रिपुर देखिये)। त्रिपुरासुर के वध के पहले इसने उसके कराया। ब्रह्मा के द्वारा अपमान होने पर, इसने उसका | पाँचवाँ सिर अपने दाहिने पाँव के अंगूठे के नाखुन से |
आकाश में तैरनेवाले त्रिपुर नामक तीन नगरों को जला काट डाला । ब्रह्मा का सिर काटने से इसे ब्रह्महत्त्या |
दिया। शिव के द्वारा किये गये त्रिपुरदाह का तात्त्विक का पातक लगा, जो इसने काशी क्षेत्र में निवास कर
अर्थ महाभारत में दिया गया है, जिसके अनुसार स्थूल, नष्ट किया (पद्म. सु. १४)। कई अन्य पुराणों में |
सूक्ष्म, एवं कारण नामक तीन देहरूप नगरों का शिव के ब्रह्मा का पाँचवा सिर इसने अपने भैरव नामक पार्षद |
द्वारा दाह किया गया। हर एक साधक को चाहिए की, के द्वारा कटवाने का निर्देश प्राप्त है (शिल. विद्या.
| वह भी शिव के समान इन तीन नगरों का नाश करे, जो
दुष्कर कार्य शिव की उपासना करने से ही सफल हो १.८)।
सकता है। ब्रह्मा के यज्ञ में यह हाथ में कपाल धारण कर गया, जिस कारण इसे यज्ञ के प्रवेशद्वार के पास ही रोका तामस-रूप-यह भूत पिशाचों का अधिपति था, एवं दिया गया। किन्तु आगे चलकर इसके तपःप्रभाव के | अमंगल वस्तु धारण कर इसने कंकाल, शैव, पाषंड, कारण, इसे यज्ञ में प्रवेश प्राप्त हुआ, एवं ब्रह्मा के उत्तर महादेव आदि अनेक तामस पंथों का निर्माण किया था। दिशा में बहुमान की जगह इसे प्रदान की गई (पद्म | विष्णु की आज्ञानुसार, इसने निम्नलिखित ऋषियों को सू. १७)।
| तामसी बनाया था :--कणाद, गौतम, शक्ति, उपमन्यु, समुद्रमंथन से निकला हलाहल-विष इसने | जैमिनि, कपिल, दुर्वास, मृकंडु, बृहस्पति, भार्गव एवं प्राशन किया जिस कारण, इसकी ग्रीवा नीली हो | जामदग्न्य । देवों के यज्ञ में हविर्भान प्राप्त न होने के गई, एवं इसके शरीर का अत्यधिक दाह होने लगा। उस | कारण, इसने क्रुद्ध हो कर भग एवं पूषन को क्रमशः
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