Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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विश्रवस्
प्राचीन चरित्रकोश
विश्वकर्मन
अलंबुषा की कन्या थी (ब्रह्मांड. ३.७.३९-४२)। वायु विश्व--एक राजा, जो मयूर नामक असुर के अंश में इसकी माता का नाम द्रविडा दिया गया है (वायु. | से उत्पन्न हुआ था। भारतीय युद्ध में, यह कौरवों के पक्ष ८६.१६ )। इलविला एवं द्रविडा इसकी माता का नाम में शामिल था (म. आ. ६१.३३)। था, या पत्नी का, इस संबंध में पुराण में एकवाक्यता २. एक गंधर्व, जो तपस्य' (फाल्गुन) माह के सूर्य नहीं है।
के साथ भ्रमण करता है (भा. १२.११.४०)। परिवार--इसकी निम्नलिखित पत्नियाँ थी :--१. ३. सत्य देवों में से एक। इडविडा (इलविला, इडविला ); २. केशिनी ( केकसी); विश्वक कार्पिण (कृष्णिय)-एक वैदिक सूक्तद्रष्टा ३. पुष्पोत्कटा: ४.राका (वाका);५. बलाका; ६. चेडविडा; (ऋ.८.२६)। यह अश्विनों के कृपात्र व्यक्तियों में से ७. देववर्णिनी: ८. मंदाकिनी ( पन. पा. ६); ९. मालिनी एक था, जिन्होने विष्णापु नामक इसका खोया हुआ पुत्र (म. व. २५९.६०)।
इसे पुनः प्रदान किया था (ऋ. १.११६.२३, ११७.७; अपनी उपर्युक्त पत्नियों से इसे निम्नलिखित पुत्र ८.८६.११०.६५.१२)। कृष्ण आंगिरस नामक वैदिक उत्पन्न हुए :---
| सूक्तद्रष्टा का पुत्र होने के कारण, इसे 'काणि' अथवा (१) इडविडापुत्र--कुबेर वैश्रवण !
'कृष्णिय ' पैतृक नाम प्राप्त हुआ होगा (कृष्ण ३. (२) केशिनी पुत्र--रावण, कुंभकर्ण, विभीषण नामक देखिये)। पुत्र एवं शूर्पणखा नामक कन्या ।
विश्वकर्मन्-एक शिल्पशास्त्रज्ञ,जो स्वायंभुव मन्वन्तर (३) पुष्पोत्कटापुत्र-महोदर, प्रहस्त, महापांशु एवं | का 'शिल्पप्रजापति' माना जाता है । महाभारत एवं. खर नामक पुत्र, एवं कुंभीनसी नामक कन्या । पुराणों में निर्दिष्ट देवों का सुविख्यात शिल्पी त्वष्ट इसी
(४) राकापुत्र-त्रिशिरस् , दूषण, विद्युज्जिह्व नामक | का ही प्रतिरूप माना जाता है (त्वष्ट देखिये)। .. पुत्र, एवं असलिका नामक कन्या (वायु. ७०.३२-३५, वैदिक साहित्य में एक देवता के रूप में विश्वकर्मन् . ४१, ४९-५०)।
का निर्देश ऋग्वेद में अनेक बार प्राप्त है (ऋ. १०.८१महाभारत के अनुसार, इसकी पनियों में से पुष्पो- ८२) वैदिक साहित्य में इसे 'सर्वद्रष्टा' प्रजापति कहा त्कटा, राका एवं मालिनी ये तीनों राक्षसकन्याएँ थी, जो गया है (वा. सं. १२.६१)। कुवेर ने अपने पिता की सेवा के लिए नियुक्त की थी। स्वरूपवर्णन-यह सर्वद्रष्टा है, एवं इसके शरीर के
महाभारत में विभीषण को मालिनी का, कुंभकर्ण एवं चार ही ओर नेत्र, मुख, भुजा एवं पैर हैं । इसे पंख भी रावण को पुष्पोत्कटा का, एवं खर एवं शूर्पणखा को राका | हैं । विश्वकर्मन् का यह स्वरूवर्णन पौराणिक साहित्य : की संतान बतायी गयी है (म. व. २५९.७-८)। में निर्दिष्ट चतुर्मुख ब्रह्मा से काफी मिलता जुलता है।
आश्रम-विश्रवस् ऋषि का आश्रम आनर्त देश की गुणवर्णन-प्रारंभ में विश्वकर्मन शब्द 'सौर देवता' की सीमा में स्थित था। इसी आश्रम में कुवेर का जन्म हुआ | उपाधि के रूप में प्रयुक्त किया जाया जाता था। किन्तु था।
बाद में यह समस्त प्राणिसृष्टि का जनक माना जाने २. (सू. दिष्ट.) एक राजा, जो तृणबिन्दु का पुत्र था। लगा। ब्राह्मण ग्रंथों में विश्वकर्मन् को · विधातृ' प्रजापति
३. एक राजा, जो द्रविड राजा का पौत्र, एवं विशाल के साथ स्पष्टरूप से समीकृत किया गया है ( श. बा. राजा का पुत्र था (वायु. ८६.१६)।
८.२.१.३), एवं वैदिकोत्तर साहित्य में इसे देवों का शिल्पी विश्रुत-एक यादव राजकुमार, जो भागवत के | कहा गया है। अनुसार वसुदेव एवं सहदेवी के पुत्रों में से एक था। ऋग्वेद में इसे द्रष्टा, परोहित एवं समस्त प्राणिसृष्टि का २. अमिताभ देवों में से एक।
पिता कहा है। यह 'धातृ ' एवं ' विधातृ ' है। इसने३. पारावत देवों में से एक।
पृथ्वी को उत्पन्न किया, एवं आकाश को अनावरण किया। विश्रतवत-एक राजा, जो वायु के अनुसार सरस्वत् इसीने ही सब देवों का नामकरण किया (ऋ. १०.८२. राजा का पुत्र, एवं बृहद्वल राजा का पिता था (वायु | ३)। इसी कारण, एक देवता मान कर इसकी पूजा की ८८.२१२)।
जाने लगी (ऋ. १०.८२.४ )।