Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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शूर्पणखा
प्राचीन चरित्रकोश
फजिहत करने के हेतु इसे लक्ष्मण से विवाह करने के शृंग-एक शिवपापट, जो वेताल एवं कामधेनु का लिए कहा।
पुत्र था। इसकी शिवभक्ति से प्रसन्न होकर शिव ने इसे लक्ष्मण ने इसकी और भी मजाक उड़ायी, जिस कारण | अपना पार्षद बनाया। ऋद्ध हो कर यह सीता को मारने के लिए दौड़ी। उसी क्षण | यह सृष्टि के समस्त गो-संतति का पिता माना जाता लक्ष्मण ने इसके नाक एवं कान काट कर इसे विरूप है, जो इसे वरुण के घर में रहनेवाली सुरभि-कन्याओं बनाया।
से उत्पन्न हुई थी। राम एवं लक्ष्मण की शिकायत ले कर यह अपने भाई । २. ऋश्यशृंग ऋषि का नामान्तर । खर के पास दौड़ी। अपने बहन के अपमान का बदला |
शृंगवत्--गालव ऋषि की पुत्र, जिसने एक रात्रि के लेने के लिए, खर ने राम पर आक्रमण किया, जिसमें खर | लिए वृद्धकन्या नामक तपस्विनी को अपनी पत्नी बनाया स्वयं मारा गया (वा. रा. अर. १७-१९; खर १. | था (म. श. ५१.१४; वृद्धकन्या देखिये)। वृद्धकन्या देखिये)।
के चले जाने पर उसकी स्मृति से यह अत्यंत दुःखी रावण की राजसभा में-पश्चात् , यह पुनः एक बार हुआ, एवं देहत्याग कर स्वर्गलोक चला गया। लंका में गयी, एवं इसने रामलक्ष्मण के द्वारा दण्डकारण्य शंगवृष-कुंडयिन् ऋषि के कुल में उत्पन्न एक में किये गये सारे अत्याचारों की कहानी रावण से बतायी ऋषिक । इसके उदर से इंद्र ने जन्म लिया था (ऋ. ८.. (वा. रा. अर. ३३-३४; म. व. २६१.४५-५१)। उसी | १७.१३)। लुडविग के अनुसार, यह पृटाकुसानु नामई . समय इसने सीता के सौंदर्य की प्रशंसा रावण को सुनायी, ऋषि का पिता था (लुडविग, ऋग्वेद अनुवाद ३. एवं राम से बदला लेने के लिए सीताहरण की मंत्रणा | १६१)। उसे दी।
शृंगवेग--कौरवकुलोत्पन्न एक नाग, जो जनमेज्य - रावण के द्वारा सीत हरण किये जाने पर, इसने उसे के सर्पसत्र में दग्य हुआ था (म. आ.५७. १३)। . रावण की श्रेष्ठता बता कर उसका वरण करने के लिए शंगिन्-एक ऋषि, जो अंगिरस कुलोत्पन्न शमीक बार-बार आग्रह किया था (वा. रा. सु. २४; ४३)। ऋषि का पुत्र था। इसे गवि जात नामान्तर भी प्राप्त था:
शलिन--एक शिवावतार, जो वैवस्वत मन्वन्तर के (दे. भा. २.८; मत्स्य.. १४५.९५-९९)। यह महान् चौबीसवें युगचक्र में उत्पन्न हुआ था। यह अवतार तपस्वी, एवं अत्यंत क्रोधी था। कलियुग में नैमिषारण्य में अवतीर्ण हुआ था। इसके एक बार यह अपने गुरु की सेवा करके घर वापस निम्नलिखित चार शिष्य थे:--१. शालिहोत्र; २. आ रहा था, जब कृश नामक इसके मित्र ने परिक्षित अग्निवेश; ३. युवनाश्व; ४. शरद्वसु ।
राजा के द्वारा की गयी इसके पिता की विटंबना की शुष वार्ष्णेय --एक आचार्य, जिसे आदित्य ने दुर्वार्ता इससे कह सुनायी। इससे क्रोधित होकर इसने 'सवित्राग्नि' का उपदेश दिया था (ते. वा. ३.१०; परिक्षित् राजा को तक्षकवंश से मृत होने का शाप दिया।
बाद में इसके पिता ने इसे काफी समझाया, किन्तु शूष वा य भारद्वाज--एक आचार्य, जो अराल इसने अपना शाप वापस नहीं लिया (म. आ. ३६.२१दातेय शौनक नामक आचार्य का शिष्य था (वं. ब्रा. २)। २५, ४६.२ परिक्षित् १. देखिये)।
शृगाल--स्त्रीराज्य का अधिपति, जो कलिंगराज शंगीपुत्र-एक आचार्य, जो वायु के अनुसार व्यास चित्रांगद की कन्या के स्वयंवर में उपस्थित था (म. शां. की सामशिष्यपरंपरा में कुथुमि नामक आचार्य का ४.७; पाट-सृगाल)।
शिष्य था। शृगाल वासुदेव-करवीरपुर का एक राजा, जो शेणिन--अंगिरस् कुलोत्पन्न एक मंत्रकार। कृष्ण से अत्यधिक द्वेष करता था। इसकी पत्नी का शेरभ एवं शेरभक--अथर्ववेद में निर्दिष्ट एक सपद्वय नाम पद्मावती, एवं पुत्र का नाम शक्रदेव था । परशुराम अथवा राक्षसद्वय (अ. वे. २.२४.१)। की आज्ञा से कृष्ण ने इसका वध किया, एवं करवीरपुर शेष--एक आचार्य, जो यजुर्वेदीय वेदांगज्योतिष का की राजगद्दी पर इसके पुत्र शक्रदेव को बिठाया (ह. वं. कर्ता माना जाता है। इसके द्वाग विरचित 'यजुर्वेदीय- . २. ४४)।
| वेदांगज्योतिष' में कुल ४३ श्लोक हैं, जिनमें से ३० ९८२