Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
View full book text
________________
षष्टी
प्राचीन चरित्रकोश
पटीस्कंपनी देवसेना का नामांतर इसीके ही कारण स्कंद को 'पठीप्रिय' कहते है (म.व. परि. १. २२.११ ) । यह ब्रह्मा की सभा में उपस्थित रह कर उसकी उपासना करती थी (म. स. ११.१३२, पंक्ति ३ ) । इसके ही कृपा के कारण, प्रियव्रत राजा का 'सुव्रत' नामक पुत्र पुनः जीवित हुआ था ।
स
संयम- विश्वंशीय संजय राजा का नामांतर वायु मैं इसे धूम्राक्ष राजा का पुत्र कहा गया है ( संजय ६. देखिये ) ।
२. एक राक्षस, जो शतांग राक्षस का पुत्र था । अंबरीष के सेनापति सुदेव के द्वारा यह मारा गया ( म. शां. परि १.११.५.२० ) ।
संवरण
षोडश-राजकीय- सोलह प्राचीन भारतीय राजाओं का एक समूह, जिनके जीवनचरित्र महाभारत के 'पोडश राजकीय' नामक उपाख्यान में प्राप्त है, जो नारद के द्वारा संजय राजा को सुनायें गये थे ( म. द्रो. परि. १.८. ३२५-८७२; नारद देखिये) । येही जीवनचरित्र आगे चल कर कृष्ण ने युधिष्ठिर को सुनाये थे ( म. शां. २९ )
२. (सो. पुरूरवस् . ) एक राजा, जो नहुष राजा का पुत्र था ( भा. ९.१८.१ ) । मुनिधर्म को स्वीकार कर यह वन में चला गया ।
राज्य से पदच्युति-- एक बार इसके राज्य में महान् संयमन - दुर्योधन के पक्ष के शव राजा का नामांतर अकाल पड़ा, जिस कारण सारे लोग अत्यंत दुर्बल हो 'इसके पुत्र को 'सांयमनि' कहते थे ।
।
गये। इसी दुर्बलता का फायदा उठा कर, पांचाल देश के नृप ने दस अक्षौहिणी सेना के साथ इस पर आक्रमण किया, एवं इसे राज्यभ्रष्ट कर अयोध्या से भाग जाने पर विवश किया ।
|
२. काशिदेश का एक राजा, जो शुरु से ही अत्यंत विरक्त एवं धर्मप्रवण था 'पंचशिख' नामक आचार्य से सांख्ययोग का ज्ञान प्राप्त करने के लिए, यह राज्य छेड़कर वन में चला गया। वहाँ इसकी इच्छा के अनुसार पंचशिव ने इसे सांख्ययोग का शान प्रदान किया (म.श. परि. १.२९ ) !
संयमन प्रातर्दन -- एक आचार्य ( कौ. उ. २.५ ) । संयाति- - कश्यपकुलोत्पन्न एक गोत्रकार ।
संवरण - ( सो. अज. ) अयोध्या का सुविख्यात राजा, जो अजमीढ राजा का पौत्र, एवं ऋक्ष राजा का पुत्र था महाभारत में इसे 'बंशकर', 'पुण्यश्लोक एवं ' सायंप्रातः स्मरणीय ' राजा कहा गया है (म. अनु. १६५. ५४ ) |
9
।
संयुप--(सो. को.) एक यादव राजा, जो मत्स्य के अनुसार घर राजा का पुत्र था।
पहुँच गया, जहाँ यह छिर कर रहने लगा। यहाँ बलिष्ठ भागते भागते यह सिंधुनद के किनारे एक दुर्ग तक सुवर्चस से इसकी भेंट हुई, जिसने इसका राज्य पुनः प्राप्त कराया। पश्चात् वसिष्ठ की ही सहायता से इसने सारी पृथ्वी जीत कर, यह चक्रवर्ति राजा बन गया. (म. आ. ८९.२७-४३) ।
तपती से विवाह - - वसिष्ठ की ही कृपा से, सूर्यकन्या तपती से इसका विवाह हुआ। तपती के सहबाससुख में मग्न रहने के वारण, इसके राज्य में पुनः एक बार भयंकर अकाल पड़ा, जो लगातार बारह संयोधकंटक -- एक यक्ष, जो कुबेर का अनुचर था वर्षों तक चलता रहा। इस अकाल के कारण, इसके ( वा. रा. उ. १४.२१ )।
पुनः एक बार राज्यभ्रष्ट होने का धोखा निर्माण हुआ
था, किंतु उस समय भी वसिष्ठ ने
ही राष्ट्र की रक्षा की
संवनन आंगिरस -- एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. १०. १९१) ।
( म. आ. १६०-१६५ )।
९९९