Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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सत्यभामा
प्राचीन चरित्रकोश
सत्यरथ
विवाह के समय, सत्राजित् ने स्यमंतक मणि भी वरदक्षिणा वह इसे बताये। उस समय इसका मज़ाक उड़ाने के हेतु के रूप में देना चाहा, किंतु कृष्ण ने उसे लौटा दिया। नारद ने इसे कहा कि, पारिजात वृक्ष का एवं स्वयं श्रीकृष्ण
इसे सत्या नामान्तर भी प्राप्त था। यह अत्यंत का दान उसे कर देने से उसकी यह इच्छा पूरी हो सकती स्वरूपसुंदर थी, एवं अक्रूर आदि अनेक यादव राजा है। नारद की यह सलाह सच मान कर इसने इन दोनों का इससे विवाह करना चाहते थे। किन्तु उन्हें टाल कर दान नारद को कर दिया। पश्चात् अपनी भूल ज्ञात होने सत्राजित् ने इसका विवाह कृष्ण से कर दिया। पर इसने नारद से क्षमा माँगी, एवं उसे विपुल दक्षिणा
प्रासाद--श्रीकृष्ण के द्वारा द्वारका नगरी में इसके प्रदान कर कृष्ण एवं पारिजात उससे पुनः प्राप्त किये। लिए एक भव्य प्रासाद बनवाया गया था, जिसका नाम कृष्णनिर्वाण के पश्चात्--कृष्ण का निर्वाण होने के शीतवत् था (म. स. परि. १.२१.१२४१)। पश्चात् , यह स्वर्गलोक की प्राप्ति करने के हेतु तपस्या करने
सत्राजित् का वध-आगे चल कर कृष्ण जब बलराम के लिए वन में चली गयी (म. मौ. ८.७२)। के साथ पाण्डवा से मिलन हास्तनापुर गया था, वहा परिवार-इसकी संतान की नामावलि विभिन्न पुराणों सअवसर समझ कर यादवराजा शतधन्वन् ने इसके पिता में प्राप्त है, जो निम्न प्रकार है:-१. विष्ण --भानु एवं सत्राजित का वध किया। अपने पिता की मृत्यु के पश्चात् भैमरिक (विष्णु, ५.३२.१);२. भागवत में-भानु, मुभानु, इसने उसका शरार तल आदि द्रन्या म सुराक्षत रखा, स्वर्भानु, प्रभानु वृहद्भानु, भानुमत् , चंद्रभानु, अतिभानु एवं यह श्रीकृष्ण को बुलाने के लिए हस्तिनापुर गयी।
| श्रीभानु एवं प्रतिभानु (भा. १०.६१.१०);३. ब्रह्मांड पश्चात् इसीके द्वारा प्रार्थना किये जाने पर श्रीकृष्ण ने
एवं वायु में-सानु, भानु, अक्ष, रोहित, मंत्रय, जरांधक, शतधन्वन का वध किया (सत्राजित् देखिये)।
ताभ्रवक्ष, भौभरि, जाधम नामक पुत्र; एवं भानु, भौमरिका, पारिजात वृक्ष की प्राप्ति-नरकासुर के युद्ध के समय, एवं ताम्रपर्णी, जरंधमा नामक कन्याएँ (ब्रांड. ३.७१, ण कइद्रलाक गमन क समय, यह उसके साथ उपस्थित २४७; वायु. ९६.२४०)। थी। स्वर्ग की इसी यात्रा में इसने पारिजात वृक्ष को सत्ययन पौलषि प्राचीनयोग्य--एक आचार्य, दाखा । आग चल कर नारद क द्वारा लाय गय पारिजात पुष्प, जो पुटप एवं प्राचीनयोग नामक आचार्यों का वंशज था कृष्ण ने इसे न दे कर, अपनी रुक्मिणी आदि अन्य रानियों
य रानिया (श. ब्रा. १०.६.१.१; छां. उ. ५.११.१)। कई अन्य को दे दिया। इस कारण क्रुद्ध हो कर इसने कृष्ण से ग्रंथों में. इसे 'पुलुप प्राचीनयोग्य' भी कहा गया है प्राथना का कि. वह दद्र स युद्ध कर उसस पारजात-वृक्ष । / मासा प्राप्त करे। तदनुसार कृष्ण ने पारिजात वृक्ष की प्राप्ति कर ली (भा. १०.५९; ह. वं २.६४-७३; विष्णु.
सत्ययज्ञ पौलुषित--एक आचार्य (जै. उ. बा. १.
सत्यरता--एक केकय राजकन्या, जिसका विवाह. द्वौपड़ी से उपदेश-पाण्डवों के वनवास काल में यह
अयोध्या के सत्यव्रत त्रिशंकु से हुआ था (वायु. ८८. श्रीकृष्ण के साथ उनसे मिलने गयी थी। उस समय इसने द्रौपदी से पूछा था कि, अपने पति को वश करने के लिए स्त्री को क्या करना चाहिए। उस समय द्रौपदी ने सत्यस्थ--(सू. निमि.) विदेह देश का एक राजा, इसे सलाह दी. 'अहंकार छोड़ कर निर्दोष वृत्ति से पति जो भागवत के अनुसार समरथ राजा का, एवं विष्णु के की सेवा करना ही पति की प्रीति प्राप्त करने का अनुसार मीनरथ राजा का पुत्र था। इसके पुत्र का नाम उत्कृष्ट साधन है। मैं ने स्वयं ही यही मार्ग अनुसरण उपगुरु था (भा. ९.१३.२४)। किया है।
२. (सो. अनु.) एक राजा, जो मत्स्य के अनुसार __ भोलापन-इसका भोलापन एवं कृष्ण की प्रीति प्राप्त | चित्ररथ राजा का पुत्र था (मत्स्य. ४८.९४)। करने के लिए इसके विभिन्न प्रयत्न आदि की अनेक ३. (सू. इ.) एक राजा, जो मत्स्य के अनुसार सत्यत्रत रोचक कथाएँ पौराणिक साहित्य में प्राप्त हैं। एक बार राजा का पुत्र था (मत्स्य. १२.३७)। इसने नारद से प्रार्थना की कि, पति के रूप में श्रीकृष्ण ४. विदर्भ देश का एक राजा, जिसे सत्यसंध नामांतर उसे अगले जन्म में प्राप्त होने के लिए कोई न कोई व्रत भी प्राप्त था (स्कंद. ३.३.६ )। शिवपूजा का माहात्म्य
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