Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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सनक
प्राचीन चरित्रकोश
सनत्कुमार
ब्रह्मा के ये चारों ही पुत्र, कुमार के रूप में उत्पन्न सनत्कुमार-एक सुविख्यात तत्त्ववेत्ता आचार्य, जो हुए थे, एवं बालक के समान दिखते थे, जिस कारण | साक्षात् विष्णु का अवतार माना जाता है। इसे 'सनत्कुमार', इन्हें कुमार कहा जाता था।
'कुमार' आदि नामांतर भी प्राप्त है । सनत्कुमार का
| शब्दशः अर्थ 'जीवन्मुक्त' होता है (म. शां. ३२६. पौराणिक साहित्य में--विष्णु के एक अवतार के
३५)। यह एवं इसके भाई कुमारावस्था में ही उत्पन्न नाते इनका निर्देश विभिन्न पुराणों में प्राप्त है । यह एवं
हुए थे, जिस कारण, ये 'कुमार' सामूहिक नाम से इसके भाई जन्म से अत्यधिक विरक्त थे, एवं ब्रह्मा
प्रसिद्ध थे। के मानसपुत्र होते हुए भी इन्होंने कभी भी प्रजोत्पादन
_ब्रह्ममानसपुत्र-विष्णु के अवतार माने गये ब्रह्ममानसनहीं किया (पद्म. सु. ३.)। एक बार यह अपने
पुत्रों की नामावलि महाभारत एवं पुराणों में प्राप्त है :बंधुओं के साथ वैकुंठ गया, जहाँ जय एवं विजय नामक |
(१) महाभारत में-इस ग्रंथ में इनकी संख्या सात द्वारपालों ने इसे अंदर जाने से मना किया। इस कारण
बतायी गयी है, एवं इनके नाम निम्न दिये गये है :इसने इस दोनों द्वारपालों को शाप दिया (भा. ७.१.
१. सन;२. सनत्सुजात; ३. सनक; ४. सनंदन, ४. सन३५)। गंगा नदी के सीता नामक नदी के तट पर
कुमार; ६. कपिल; ७. सनातन (म. शां. ३२७.६४इसका नारद के साथ तत्त्वज्ञान पर संवाद हुआ था ६६)। महाभारत में अन्यत्र 'ऋभु' को भी इनके साथ (नारद. १.१-२)।
निर्दिष्ट किया गया है (म. उ. ४१.२-५)। .. पारस्कर गृह्यसूत्रों के तर्पण में इसका एवं सनत्कुमार
(२) हरिवंश में--इस ग्रंथ में इनकी संख्या सात को छोड़ कर इसके अन्य दो भाइयों का निर्देश प्राप्त हैं,
बतायी गयी है :--१. सनक; २. सनंदन; ३. सनातन; एवं ये कंक नामक शिवावतार के शिष्य बताये गये हैं।
४. सनत्कुमार; ५. स्कंद; ६. नारद एवं ७. रुद्र ( ह. वं... निंबार्क के द्वारा प्रणीत कृष्ण एवं राधा के उपासना
१.१.३४-३७)। सांप्रदाय, 'सनक सांप्रदाय' नाम से सुविख्यात है, जहाँ
(३) भागवत में--इस ग्रंथ में इनकी संख्या चार सनक के रूप में ही कृष्ण की पूजा की जाती है (राधा
बतायी गयी है:-१. सनक; २. सनंदन; ३. सनत्कुमार; देखिये )। इसके नाम पर 'सनकसंहिता' नामक एक ग्रंथ
एवं ४. सनातन (भा. २.७.५, ३.१२.४; ४.८.१ )। भी उपलब्ध है, जिसमें इसे भृगुकुलोत्पन्न कहा गया है |
गुणवर्णन--ये ब्रह्मज्ञानी, निवृत्तिमार्गी, गेगवेत्ता, (C.C.)। इससे प्रतीत होता है कि, इस ग्रंथ की रचना
सांख्याज्ञान विशारद, धर्मशास्त्रज्ञ, एवं मोक्षधर्म-प्रवर्तक करनेवाला आचार्य स्वयं यह न हो कर, इसकी उपासना
थे (म. शां. ३२७.६६)। ये विरक्त, ज्ञानी, एवं करनेवाला अन्य कोई ऋषि था। .
क्रियारहित (निष्क्रिय) थे (भा. २.७.५)। ये निरपेक्ष, २. एक असुर गण, जो वृत्र का अनुयायी था (ऋ.१.
वीतराग, एवं निरिच्छ थे (वायु. ६.७१)। ये सर्व३३.४)।
गामी, चिरंजीव, एवं इच्छानुगामी थे.(ह. बं. १.१.३४सनक काप्य-एक आचार्य, जो काप्य नामक आचार्य | ३७)। अत्यधिक विरक्त होने के कारण, इन्होंने प्रजा द्वयों में से एक था। इसके साथी दूसरे आचार्य का नाम | निर्माण से इन्कार किया था (विष्णु. १.७.६)। नवक था। इन दोनों ने विभिन्दुकियों के यज्ञ में भाग लिया निवासस्थान--इनका निवास हिमगिरि पर था, जहाँ था (जै. ब्रा. ३.२३३ )। लुडविग के अनुसार, ऋग्वेद | विभांडक ऋषि इनसे मिलने गये थे । अपने इसी निवासमें भी एक यज्ञकर्ता आचार्यद्वय के रूप में इनका निर्देश | स्थान से इन्होंने विभांडक को ज्ञानोपदेश किया था (म. प्राप्त है (ऋ. १.३३.४)। किन्तु इस संबंध में निश्चित- | शां. परि. १.२०)।। रूप से कहना कठिन है।
____ उपदेशप्रदान-इसने निम्नलिखित साधकों को ज्ञान, सनग-एक आचार्य, जो परमेष्ठिन् नामक आचार्य वैराग्य, एवं आत्मज्ञान का उपदेश किया था :--१. का शिष्य, एवं सनातन नामक आचार्य का गुरु था (बृ.
नारद-आत्मज्ञान (छां. उ..७.१.१.२६); एवं भागवत उ. २.६.३, ४.६.३ काण्व; श. बा.४१.७.३.२८)। । का महत्त्व (पद्म. उ. १९३-१९८); २. सांख्यायन--
सनति-(सो. द्विमीढ.) एक राजा, जो वायु के | भागवत (भा. ३.८.७), ३. वृत्रासुर-विष्णुमाहात्म्य अनुसार सन्ततिमत् राजा का पुत्र था (वायु. ९९.१८९)।। (म. शां. २७१); ४. रुद्र-तत्त्वसृष्टि (म. अनु. १६५.
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