Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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सत्राजित्
प्राचीन चरित्रकोश
सनक
एवं वह स्वयं विदेह देश भाग गया। वहाँ मिथिला- | का निर्देश 'सत्वत्' और ' सत्वन्' (ऐ. बा. ८.१४; नगरी के समीप स्थित जंगल में श्रीकृष्ण ने उसका वध २.२५) नाम से किया गया है। किया, किंतु फिर भी स्यमंतक मणि की प्राप्ति न होने के कौषीतकि उपनिषद में भी इन लोगों का निर्देश मत्स्य कारण, निराश हो कर वह द्वारका-नगरी पहुँच गया। लोगों के साथ प्राप्त है (को. उ. ४.१)। किन्तु वहाँ पश्चात् मणि अकर के पास ही है, एवं उससे वह प्राप्त इनके नाम का मूल पाठ 'वसत् ' है। करना मुश्किल है. यह जान कर कृष्ण ने उससे संधि की, सत्वत-यादववंशीय सात्वत राजा का नामांतर एवं सारे निकटवर्ती लोगों को इकठा कर वह मणि अपर (सात्वत देखिये)। को दे दिया।
। सत्वदंत--एक यादव राजकुमार, जो वसुदेव एवं
भद्रा के पुत्रों में से एक था (वायु. ९६.१७१)। निरुका में--न्यमंतक मणि से संबधित उपर्युक्त कथा |
सद-एक देव, जो अंगिरा एवं सुरूषा के पुत्रों में से का निर्देश यस्क के निरुक्त में प्राप्त है, जहाँ अक्रूर मणि |
एक था (मत्स्य. १९६.२)। धारण करता है (अऋो ददने मणिम् ), इस वाक्य
२. (सो. कुरु.) धृतराष्ट्र के शत पुत्रों में से एक । प्रयोग का निर्देश एक कहावत के नाते दिया गया है
सदश्व--सत्यदेवों में से एक। (नि..२.११)। इस निर्देश से स्यमंतक मणि के
२. (सो. पूरु.) एक राजा, जो विष्णु, वायु, एवं मत्स्य संबंधित उपर्यवत कथा की प्राचीनता एवं ऐतिहासिकता
के अनुसार समर राजा का पुत्र था (मत्स्य. ४९.५४)। स्पष्टरूप ने प्रतीत होती है। कई अभ्यासकों के अनुसार, मुगल राज्य में सुविख्यात कोहिनूर ही प्राचीन स्यमंतक
३. यमसभा में उपस्थित एक राजा (म. स.८.१२)। मणि है।
सदसस्पति--कश्यप एवं सुरभि का एक पुत्र ।
२. ग्यारह रुद्रों में से एक (वायु. ६६.६९)। परिवार--इसकी कुल दस पत्नियाँ थी, जो कैकयराज
सदस्यवत् अथवा सदस्यमत्--अंगिराकुलोत्पन्न की कन्याएँ थी। इनमें से वीरवती (द्वारवती) इसकी एक गोत्रकार, एवं मंत्रकार। पटरानी थी (ब्रांड. ३.७१.५६; मत्स्य. ४५.१७-१९)।
। सदस्यु--आंगिरस कुलांतर्गत कुत्स गोत्री · लोगों का इसके कुल एक सौ एक पुत्र थे, जिनमें से प्रमुख पुत्रों
एक प्रवर। की नामावलि विभिन्न पुराणों में विभिन्न दी गयी है :
। सदस्योर्मि-यमसभा में उपस्थित एक राजा । पाठभेद १. ब्रह्मांड में-भङ्गकार, वातपति, एवं तपस्वी नामक तीन (भांडारकर संहिता)-सदश्वोमि । पुत्र, एवं सत्यभामा, तिनी एवं दृढव्रता नामक तीन मटाटक राजा जो वाय के अनमार कन्याएँ (ब्रह्मांड. ३.७१.५४-५७); २. वायु में-भङ्गकार, नगरी में राज्य करता था। ब्रह्मांड में इसे विदिशा-नगरी 'तपति, एवं तपस्वांत (वायु. ३४.५३); ३. ब्रह्म में- का नागवंशीय राजा कहा गया है। वसुमेध, भङ्गकार एवं वातपति (ब्रह्म. १६.४६)। सदापण आत्रेय--एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. ५.
सत्राजिती--कृष्णपत्नी सत्यभामा का नामांतर ४५)। ऋग्वेद के कई मंत्रों में भी इसका निर्देश प्राप्त (विष्णु. ५.२८.५)।
है (ऋ. ५.४४.५२)। सत्रायण--बृहद्भानु नामक इंद्रसावर्णि मन्वंतर के
सद्योजात--शिव के अवतारों में से एक। अवतार का पिता । इसकी पत्नी का नाम विताना था। सध्रि काण्व--एक ऋषि (ऋ. ५.४४.१०)। सत्व--रैवत मनु का एक पुत्र (मत्स्य. ९.२१)।
सध्रि वैरूप--एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. १०. २. (मो. कुरु.) धृतराष्ट्र के शतपुत्रों में से एक। | ११४)।
३. (सो. कोधु.) एक यादव राजा, जो पुरुबह राजा सध्वंस काण्व-एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (इ. ८.८)। का पुत्र, एवं सात्वत राजा का पिता था (वायु. ९५.४७)। सनक--ब्रह्मा के चार मानसपुत्रों में से एक, जो
सत्वत्-एक जातिविशेष, जो भारतवर्ष के दक्षिण साक्षात् विष्णु का अवतार माना जाता है। इसके साथ विभाग में बसी हुई थी। भरत ने इन राजाओं को परास्त उत्पन्न हुए ब्रह्मा के अन्य तीन मानसपुत्रों के नाम सनकिया, एवं इनका अश्वमेधीय अश्व भी छीन लिया था। कुमार, सनंद, एवं सनातन थे (भा. २.७.५: सनत्कुमार (श. ब्रा. १३.५.४.२१)। ऐतरेय ब्राह्मण में इन लोगों | देखिये)।
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