Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
View full book text
________________
सत्यकर्मन्
प्राचीन चरित्रकोश
सत्यकाम जाबाल
सत्यकर्मन त्रैगर्त--त्रिगर्तराज सुशर्मन् का एक भाई, मद्गु नामक जलचर प्राणि का रूप धारण करनेवाले प्राण जो एक 'संशप्तक' योद्धा था (म. द्रो. १६.१७-२०)। ने प्रदान किये। अर्जुन ने इसका वध किया (म. श. २६.३७)। इस प्रकार संपूर्ण ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर यह गौतम ऋषि
सत्यकाम जाबाल-एक सुविख्यात तत्त्वज्ञ, जो के आश्रम में लौट आया। तत्पश्चात् इसका मुखावलोकन जबाला नामक स्त्री का पुत्र था। मन को ही परब्रह्म मानने कर, गौतम ऋषि ने इससे कहा, 'संपूर्ण ब्रह्मज्ञान तुझे हो वाला यह आचार्य याज्ञवल्क्य वाजसनेय ऋषि का सम- चुका है । जो ज्ञान तुझे हुआ है, उससे बढ़ कर अधिक कालीन था (बृ. उ. ४.१.६ काण्व.)।
| ज्ञान इस संसार में कहीं भी प्राप्त होना असंभव है'
(छां. उ. ४.४-९)। जन्म-जबाला नामक दासी से किसी अज्ञात पुरुष से यह उत्पन्न हुआ था। इसके जन्म से संबंधित एक
___ तत्त्वज्ञान-आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए सुयोग्य गुरु सविस्तृत कथा छांदोग्य उपनिषद में प्राप्त है, जहाँ उच्च
के उपदेश की अत्यधिक आवश्यकता है, ऐसा इसका कुल में जन्म होने की अपेक्षा श्रद्धा एवं तप अधिक श्रेष्ठ ।
मत था । परमार्थ की साधना के लिए नैतिक सद्गुणों है, यह तत्त्व प्रतिपादित किया गया है।
की अत्यधिक आवश्यकता रहती है। किन्तु इस सदा- यह अपनी माता से उस पुरुष के द्वारा उत्पन्न हुआ,
चरण के कारण परमार्थ ज्ञान की केवल पूर्वतैयारी मात्र
होती है, इस ज्ञान का उपदेश केवल सुयोग्य गुरु ही कर जिसका नाम उसे ज्ञात न था । लज्जा के कारण, उसने
सकता है, ऐसा इसका अभिमत था ( छां. उ. ४.१.९)। कभी भी उसका नाम न पूछा था। इसके जन्म के
इसका यह अभिमत समस्त औपनिषदिक वाङ्मय में पुनः पश्चात् थोडे ही दिनों में इसका पिता मृत हो गया, जिस
पुनः पाया जाता है। कारण इसे अपने पिता का नाम सदैव अज्ञात ही रहा।
___ अंतिम सत्य की व्याख्या औपनिषदिक साहित्य में आगे चल कर यह गौतम हारिद्रुमत नामक आचार्य
अनेक प्रकार से की गयी है। इस अंतिम तत्त्व का के पास शिक्षा पाने के लिए गया। वहाँ गौतम ऋषि के द्वारा
साक्षात्कार मानवी इंद्रियों के द्वारा नहीं, बल्कि मानवी मन इसका गोत्र आदि पूछे जाने पर इसने उसे अपनी सारी |
से होता है, ऐसे कथन करनेवाले आचार्यों में सत्यकाम हकीकत कह सुनायी, एवं कहा, 'मेरा जन्म ऐसे पिता से
जाबाल प्रमुख माना जाता है। इसके इसी अभिमत का हुआ है, जिसका नाम मुझसे अज्ञात है। मेरी माता का।
विकास आगे चल कर याज्ञवल्क्य वाजसनेय ने किया, जबाला नाम ही केवल मुझे ज्ञात है।
जिसने संसार के अंतिम तत्त्व का साक्षात्कार केवल इस के सत्यभाषण के कारण गौतम ऋषि अत्यधिक
आत्मा के द्वारा हो सकता है, यह तत्त्व प्रस्थापित किया प्रसन्न हुए, एवं उसने इसका उपनयन कर इसे ब्रह्मचर्य
(याज्ञवल्क्य वाजसनेय देखिये )। व्रत की दीक्षा दी।
सृष्टि का आद्य अधिष्ठान-सृष्टि का मूल कारण सूर्य, शिक्षा--तदुपरान्त यह गौतम ऋषि के आश्रम चंद्र, विद्युत् आदि पंचमहाभूत न हो कर, आँखों से में ही रह कर अध्ययन करने लगा। इसी कार्य में यह प्रतीत होनेवाले आद्य पुरुष के दर्शन से ही सृष्टि के अनेक वर्षों तक अरण्य में रहा। छांदोग्य-उपनिषद में प्राप्त
मूल कारण का ज्ञान हो सकता है, ऐसा इसका अभिमत रूपकात्मक निर्देश से प्रतीत होता है कि, यह चारसौगायें | था । औपनिषदिक तत्त्वज्ञान की उत्क्रान्ति के इतिहास में ले कर अरण्य में गया, एवं उनकी संख्या एक सहस्र होने पंचमहाभूतों को सृष्टि का आधार मानने की शुरु में के काल तक यह अरण्य में रहा।
प्रवृत्ति थी । इस प्रवृत्ति को हटा कर पंचेंद्रियों को सृष्टि ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति--इसे ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति किस | का आद्य अधिष्ठान माननेवाले कई आचार्यों की परंपरा प्रकार हुई, इसकी सविस्तृत जानकारी छांदोग्य-उपनिषद | आगे चल कर उत्पन्न हुई, जिसमें सत्यकाम जाबाल प्रमुख में प्राप्त है। वायु देवता के अंश से उत्पन्न हुए एक वृषभ था। इसी कल्पना का विकास आगे चल कर याज्ञवल्क्य ने इसे ब्रहाज्ञान का चौथा हिस्सा सिखाया। आगे चल वाजसनेय ने किया, जिसने सृष्टि के आद्य अधिष्ठान के कर गौतम ऋषि के आश्रम में स्थित अग्नि ने इसे ब्रह्मज्ञान | रूप में मानवी आमा को दृढ रूप से प्रतिष्ठापित किया। का अन्य चौथा हिस्सा सिखाया। ब्रह्मज्ञान के बाकी दो सत्यकाम-उपकोसल संवाद--सत्यकाम के इसी तत्त्वहिसे इसे हंस का रूप धारण करनेवाले आदित्य ने, एवं ज्ञान का रूपकात्मक चित्रण करनेवाली एक कथा छांदोग्य
१००७