Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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संजय
अनुसार रणजय राजा का पुत्र था। इसके पुत्र का नाम शुद्धोद था ( वायु. ९९.२८८६ मत्स्य. २७१.११ ) ।
१०. एक व्यास, जो वाराह कल्पान्तर्गत वैवस्वत मन्वंतर के सोलहवें युगचक्र में उत्पन्न हुआ था ( बाबु, २३.१७१ ) ।
प्राचीन चरित्रकोश
संजय गावल्गणिधृतराष्ट्र राजा का सारथि एवं सलाहगार मंत्री, जो सूत जाति में उत्पन्न हुआ था, एवं गवल्गण । वगण नामक सूत का पुत्र था (म. आ. ५७.८२) गवगण का पुत्र होने के कारण, इसे 'गावल्गणि' पैतृक नाम प्राप्त हुआ था। यह उन चातिक व्यवसायी लोगों में से था, जो महाभारतकाल में वृत्तनिवेदन एवं वृत्तप्रसारण का काम करते थे ( वातिक देखिये) ।
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यह वेद व्यास का कृपापात्र व्यक्ति था, एवं अर्जुन एवं कृष्ण का बड़ा भक्त था । दुर्योधन के अत्याचारों का यह आजन्म ओर से प्रतिवाद करता रहा यह स्वामिभक्त, बुद्धिमान्, राजनीतिज्ञ एवं धर्मज्ञ था । यह धार्मिक विचार वाला स्वामिभक्त मंत्री था, जिसने सत्य का अनुसरण कर सदैव सत्य एवं सच्ची बातें धृतराष्ट्र से कथन की ।
धृतराष्ट्र का प्रतिनिधित्व -- धृतराष्ट्र के प्रतिनिधि के नाते, यह युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में उपस्थित था, जहाँ युधिष्ठिर ने इसे राजाओं की सेवा तथा सलार में नियुक्त किया था (म. स. ३२.५) । धृतराष्ट्र के आदेश से, काम्यकवन में गये विदुर को बुलाने के लिए यह गया था (म.व. ७ ) ।
भारतीय युद्ध के पूर्व धृतराष्ट्र के राजदूत के नाते यह उपखभ्य नगरी में पांडवों से मिलने गया था। उपप्लव्य नगरी में संजय के द्वारा किये गये दौत्यकर्म का सविस्तृत वृत्तांत महाभारत के 'संजययानपर्व' में प्राप्त है ( म.उ. २२-३२ ) ।
अपने इस दौत्य के समय केवल राजदूत के नाते ही नहीं, बल्कि पांडवों के सच्चे मित्र के नाते, इसने उन्हें शान्ति का उपदेश दिया। इसने उन्हें कहा, 'संधि ही शांति का सर्वोत्तम उपाय है । धृतराष्ट्र राजा भी शांति चाहते हैं, युद्ध नहीं'। युधिडिर ने संजय के उपदेश को स्वीकार तो किया, किन्तु यह शर्त रखी कि यदि धृतराष्ट्र शान्ति चाहते हैं, तो इंद्रप्रस्थ का राज्य पांडवों को लौटा दिया जाय ।
धृतराष्ट्र को उपदेश - हस्तिनापुर लौटते ही इसने सर्वप्रथम धृतराष्ट्र की एकांत में भेटली, एवं उसे युद्ध टालने के लिए पुनः एक बार उपदेश दिया। इसने
संजय
धृतराष्ट्र से कहा, 'आनेवाले युद्ध में केवल कुलकुला ही नहीं, बल्कि अपनी समस्त प्रजा का भी नाश होगा, यह निश्चित है। विनाशकाल समीप आने पर बुद्धि मलिन हो जाती है एवं अन्याय भी न्याय के समान दिखने लगता है । अपने पुत्रों की अन्धी ममता के कारण आज तुम युद्ध के समीप आ गये हो। युद्ध टालने का मौका अब हाथ से निकलता जा रहा है, तुम हर प्रय कर पांडवों से संधि करो।
दूसरे दिन, धृतराष्ट्र के खुली राजसभा में इसने युधिडिर का शान्तिसंदेश कथन किया एवं पांडव पक्ष के सैन्य आदि का आखों देखा हाल भी कथन किया । इस कथन में इसने अर्जुन एवं कृष्ण के स्नेहसंबंध पर विशेष जोर दिया, एवं कहा कि, कृष्ण की मैत्री पांडवों की सबसे बड़ी सामर्थ्य है ( म. उ. ६६ ) ।
श्रीकृष्ण का महिमा - पश्चात् यह पुनः एक बार धृतराष्ट्र के अंतःपुर गया, एवं वेदव्यास, गांधारी एवं विदुर की उपस्थिति में, इसने धृतराष्ट्र को श्रीकृष्ण का माहात्म्य विस्तृत रूप में कथन किया। इसने कहा, 'श्रीकृष्ण साक्षात् ईश्वर का अवतार है, एवं मेरे ज्ञानदृटि के कारण मैंने उसके इस रूप को पहचान लिया है। मैंने सारे आयुष्य में कभी भी कपट का आश्रय नहीं लिया, एवं किसी मिथ्या धर्म का आचरण भी नहीं किया। इस प्रकार ध्यानयोग के द्वारा मेरा अंतःकरण शुद्ध हो गया है, एवं उसी साधना के कारण, श्रीकृष्ण के सही स्वरूप का शान मुझे का ज्ञान मुझे हो पाया है ' ।
इसने आगे कहा, 'प्रमाद, हिंसा एवं भोग, इन तीनों के त्याग से परम पद की प्राप्ति, एवं श्रीकृष्ण का दर्शन शक्य है। इसी कारण तुम्हारा यही कर्तव्य है कि इसी ज्ञानमार्ग का आचरण कर तुम मुक्ति प्राप्त कर लो ( म. उ. ६७.६९) ।
दिव्यदृष्टि की प्राप्ति - भारतीय युद्ध के समय, युद्ध देखने के लिए स्वास ने धृतराष्ट्र को दिव्यदृष्टि देना चाहा, किन्तु धृतराष्ट्र ने उसे इन्कार किया; क्यों कि आपस में ही होनेवाले इस भयंकर संहार को नहीं देखना चाहता था। तदुपरांत व्यास ने संजय को दिया दिव्यदृष्टि का वरदान दिया, जिस कारण, युद्ध में घटित होनेवाली सारी घटनाओं का हाल यह धृतराष्ट्र से कथन करने में समर्थ हुआ।
इस दिव्यदृष्टि केसे सामने की अपक्ष परोक्ष की, दिन रात में होनेवाली तथा दोनों पक्षों
२००४