Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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श्रुतध्वज
प्राचीन चरित्रकोश
शुलसेन
श्रृतध्वज-- मत्स्यराज विराट का भाई, जो भारतीय श्रुतश्रवस-(मगध. भविष्य.) एक राजा, जो मन्त्य यद में पांडवों का रक्षक था (म. द्रो. १३३.३९)। एवं वायु के अनुसार सोमाधि राजा का, भागवत के अनुसार
श्रतबंधु गौपायन (लौपायन)--एक वैदिकसूक्त- मार्जारि राजा का, एवं ब्रह्मांड के अनुसार सोमावि राजा द्रष्टा (ऋ. ५.२४; १०.५७-६०)।
का पुत्र था। इसके पुत्र का नाम अयुतायु था। शतय---श्रोतन नामक कश्यपकुलोत्पन्न गोत्रकार का २. यमसभा में उपस्थित एक राजा (म.न. ८.८)। नामांतर।
। ३. एक ऋषि, जिसने तप से सिद्धी प्राप्त की थी श्रतरथ--एक तरुण गजा, जो कक्षीवत् नामक (म. शां.२८१.१६-१७) । इसके पुत्र का नाम सोमश्रवस आचार्य का, एवं उसके पज्र परिवार का आश्रयदाता था | था, जो इसे एक सर्पिणी से उत्पन्न हुआ था (म. आ. (ऋ. १.१२२.७) । प्रभुवसु अंगिरस ऋषि ने भी इसके | ३.१२)। दातृत्व की प्रशंसा की है (ऋ. ५.३६.६)।
जनमेयय के सर्पसत्र में--जनमेजय के द्वारा किये गये श्रतरय--अश्विनों की कृपापात्र एक व्यक्ति, जिसका
दीर्घसत्र में उसके पुरोहित देवशुनी ने उसे शाप दिया, उन्होंने संरक्षण किया था (ऋ. १.११२.९)।
एवं उसके पौरोहित्य का त्याग किया। पश्चात् जनमेजय
इससे मिलने आया, एवं उसने इस के पुत्र सोमश्रवस् को अतर्वा--धृतराष्ट्र के शतपुत्रों में से एक । भारतीय
अपना पुरोहित बनने की प्रार्थना की। इसने उसे मान्यता युद्ध में यह भीमसेन के द्वारा मारा गया (म. श.
दी, एवं इस प्रकार सोमश्रवस् जनमेजय के सर्पसत्र का २५.२७) ।
पुरोहित बन गया ( सोमश्रवस् देखिये)। श्रुतर्वन आक्ष--एक उदार राजा, जिसके दातृत्व की
यह स्वयं भी जनमेजय के सर्पसत्र का सदस्य था प्रशंसा ऋग्वेद में गोपवन नामक ऋषि के द्वारा की गयी
(म. आ. ४८.९)। है (७.७४.४-१३)। इसने मृगय पर विजय प्राप्त की
४. एक असुर, जो गरूड के द्वारा मारा गया था। थी (ऋ. १०.४९.५)। ऋक्ष का वंशज होने के कारण,
५. सूर्यपुत्र शनैश्चर का नामांतर (वायु. ८४.५१)। इसे 'आर्भ ' पैतृक नाम प्राप्त हुआ था।
६. सावर्णि मनु का नामांतर (वायु. ८४.५१)। महाभारत में ---इसके दातृत्व का वर्णन महाभारत में
श्रुतधवा--चेदिराज दमघोष की पत्नी, जो शूर राजा. भी प्राप्त है। एक बार अगस्य ऋषि इसके पास धन | की कन्या, वसुदेव की भगिनी, एवं कृष्ण की पितृष्वसा माँगने के लिए आये। इसके दातृत्व के कारण इसके खजाने (फफी ) थी। इसके पत्र का: में कुछ भी द्रव्य बाकी नहीं था। इसने धन देने के संबंध | देखिये )। में अपनी असमर्थता अगस्त्य ऋपि से निवेदित की, एवं
। श्रुतश्री--एक असुर, जो गरुड़ के द्वारा मारा गया अपने आयव्यय के सारे हिसाब भी उसे दिखाये। शा (म. उ १०
पश्चात यह अगत्य को साथ ले कर बध्नश्व आदि राजाओं तसेन-सहदेवपुत्र श्रुतकर्मन् का नामांतर । के पास गया, एवं उनसे इसने अगत्य ऋषि को विपुल धन | कृत्तिका नक्षत्र के अवसर पर इसका जन्म हुआ था, जिस दिलवाया (म. व. ९६.१-५)।
कारण इसे श्रुतसेन नाम प्राप्त हुआ था ( श्रुतकर्मन श्रुतवत्--(सो. मगध.) मगध देश का एक राजा, | देखिये)। . जो भविष्य एवं विष्णु के अनुसार सोमापि राजा का पुत्र २. (सो. कुरु.) एक राजा, जो परिक्षित राजा का था। अन्य पुराणों में इसे श्रुतश्रवस् कहा गया है । (भा. पुत्र था (म. आ. ३.१)। वैदिक साहित्य में इसे जनमे-- ९.२२.९)। इसके पुत्र का नाम अयुतायु था। जय राजा का भाई कहा गया है (श. बा. १३.५.८.३;
श्रुतवर्मन्--दुर्योधन के पक्ष का एक राजा (म. क. सां. श्री. १६.९.४)। ४.१०१)। यह संभवतः धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों में से एक ३. शत्रुघातिन् राजा का नामांतर । था। पाठभेद ( भांडारकर संहिता)-'श्रुतकर्मन् । ४. एक राजा, जो भारतीय युद्ध में कौरवपक्ष में
श्रतविद आत्रेय--एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. ५. शामिल था । अर्जुन ने इसका वध किया (म. क. १९.१५)। ६२)। उग्वेद में अन्यत्र भी इसका निर्देश प्राप्त हैं. ५. एक असुर, जो गरुड के मारा गया था ( म. उ. (ऋ. ५.४४.१२)।
१०३.१२)।