Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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शांतनव
प्राचीन चरित्रकोश
शांतनु
रचनाकाल-पतंजलि के व्याकरणमहाभाष्य में इन | पूर्ण विभाग माना जाता है। पाणिनीय व्याकरण सूत्रों के उद्धरण प्राप्त हैं (महा. ३.१.३; ६.१.९१; के 'शब्दप्रक्रिया' 'धातुज शब्दों का अध्ययन,' १२३)। इसके अतिरिक्त काशिका, कैय्यट, भट्टोजी | 'लिंगज्ञान ''गणों का अध्ययन,''शब्दों का उच्चारदीक्षित, नागेशभट्ट आदि के मान्यवर व्याकरणविषयक | शास्त्र' आदि प्रमुख विभाग हैं, जिनके अध्ययन ग्रंथों में भी इन सूत्रों का निर्देश प्राप्त है।
के लिए क्रमश; 'अष्टाध्यायी,' 'उणादिसूत्र' व्याकरणशास्त्रीय दृष्टि से पाणिनि एवं शांतनव 'लिंगानुशासन' 'गणपाठ''शिक्षा' आदि ग्रंथों की 'अव्युत्पत्ति पक्षवादी' माने जाते हैं, जो शाकटायन के सर्व रचना की गयी है । स्वरों के उच्चारणशास्त्र की चर्चा शब्द 'धातुज' हैं (सर्व धातुजं), इस सिद्धांत को मान्यता करनेवाला शांतनवकृत ' फिटसुत्र' पाणिनीय व्याकरणनहीं देते हैं (शाकटायन देखिये )। इसी कारण हर एक शास्त्र के इसी परंपरा का एक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ प्रतीत शब्दप्रकृति के स्वर नमूद करना वे आवश्यक समझते होता है। हैं। हर एक शब्द के 'प्रकृतिस्वर' गृहीत समझ कर
शांतनु-(सो. कुरु.) एक सुविख्यात कुरुवंशीय शांतनव ने अपने 'फिटसुत्रों' की रचना की है, एवं
| सम्राट् , जो प्रतीप राजा के तीन पुत्रों में से द्वितीय पुत्र शांतनव के द्वारा यह कार्य पूर्व में ही किये जाने के
था। इसकी माता का नाम सुनंदा था, एवं अन्य दो । कारण, पाणिनि ने अपने ग्रंथ में वह पुनः नहीं किया है।
भाइयों के नाम देवापि एवं बालीक थे । इसका मूल नाम इसी कारण शांतनव आचार्य पाणिनि के पूर्वकालीन महाभिषज' था । किन्तु शान्त त्वभाववाले प्रतीप राजा माना जाता है । इसकी परंपरा भी पाणिनि स स्वतत्र था, का पुत्र होने के कारण इसे 'शांतनु' नाम प्राप्त हुआ जिसका अनुवाद पाणिनि के 'अंगभूत परिशिष्ट' में पाया
(म. आ. ९२.१७-१८)। भागवत के अनुसार, इसके जाता है।
केवल हस्तस्पर्श से ही अशांत व्यक्ति को शान्ति, एवं परिभाषा-इसके 'फिट्सूत्रों में अनेकानेक पारिभाषिक | वृद्ध व्यक्ति को यौवन प्राप्त होता था, इस कारण इसे शब्द पाये जाते हैं, जो पाणिनीय व्याकरण में अप्राप्य शांतनु नाम प्राप्त हुआ था ( भा. ९.२२.१२, म. आ.. हैं। इनमें से प्रमुख शब्दों की नामावलि एवं उनका शब्दार्थ | ९०.४८)। नीचे दिया गया है :-अनुच्च (अनुदात्त ); अप (अच्);
महाभारत की भांडारकर संहिता में इसके नाम का नप् (नपुंसक); फिष् (प्रातिपदिक); यमन्वन् (वृद्ध); |
'शंतनु' पाठ स्वीकृत किया गया है। किंतु अन्य सभी शिट् (सर्वनाम); स्फिग् (लुप्); हय् (हल्)।
ग्रंथों में इसे शांतनु ही कहा गया है । ___ 'फिटसूत्रों' का महत्त्व-उदात्त, अनुदात्तादि स्वर केवल वैदिक संहिताओं के उच्चारणशास्त्र के लिए आवश्यक इसका ज्येष्ठ भाई देवापि बाल्यावस्था में ही राज्य हैं, सामान्य संस्कृत भाषा के उच्चारण के लिए इन | छोड़ कर वन में चला गया। इस कारण, कनिष्ठ हो कर स्वरों की कोई आवश्यकता नहीं है, ऐसा माना जाता है। भी इसे राज्य प्राप्त हुआ. ( देवापि देखिये )। यह किंतु इन स्वरों की संस्कृत भाषा के उच्चारण के लिए अत्यंत धर्मशील था, एवं इसने यमुना नदी के तट पर भी नितांत आवश्यकता है, यह सिद्धांत शांतनव के सात बड़े यज्ञ एवं अनुष्ठान किये (म. व. १५९. 'फिटसूत्रों के द्वारा सर्वप्रथम प्रस्थापित किया गया,
२२-२५)। एवं आगे चल कर 'पाणिनीय व्याकरण' ने भी इसे गंगा से विवाह-एक बार यह मृगया के हेतु वन में मान्यता दी।
| गया, जहाँ इसकी गंगा (नदी) से भेंट हुयी । गंगा के फिटसूत्रों' में प्राप्त ८७ सूत्रों में से केवल पाँच ही अनुपम रूप से आकृष्ट होकर, इसने उससे अपनी पत्नी सूत्रों में वैदिक शब्दों के (छन्दसि ) स्वरों की चर्चा की बनने की प्रार्थना की। गंगा ने वसुओं के द्वारा उससे की गयी है, बाकी सभी सूत्रों में प्रचलित संस्कृत भाषा गया प्रार्थना की कहानी सुना कर, इसे विवाह से परावृत्त एवं वेद इन दोनों में प्राप्त संस्कृत शब्दों के स्वरों की करने का प्रयत्न किया, किन्तु इसके पुनः पुनः प्रार्थना एवं उच्चारण की चर्चा प्राप्त है।
करने पर उसने इससे कई शर्ते निवेदित की, एवं उसी - इसी कारण 'फिटसूत्र' केवल वैदिक व्याकरण का ही शतों का पालन करने पर इससे विवाह करने की मान्यता नहीं, बल्कि 'पाणिनीय व्याकरण' का भी एक महत्त्व-दी (गंगा देखिये)।