Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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शुक वैयासकि
प्राचीन चरित्रकोश
शुक्र उशनस्
में जनक राजा ने इसका यथोचित स्वागत किया, एवं ८. ब्रह्मवेत्ता के लक्षण; ९. मन एवं बुद्धि के गुणों का वर्णन इससे ज्ञान-विज्ञानविषयक अनेकानेक प्रश्न पूछे (म. (म. शां. २२४-२४७)। शां. ३१३.३-२१)। मिथिला नगरी से लौट कर यह शुक-निर्वाण--इसके महानिर्वाण का विस्तृत वर्णन पुनः एक बार अपने पिता व्यास के पास आया (म. शां. महाभारत में प्राप्त है, जो सत्पुरुष को प्राप्त होनेवाले ३१४.२९)।
'योगगति' का अपूर्व शब्दकाव्य माना जाता है। अपने भागवत का कथन-शुक के जीवन से संबंधित घटनाओं पिता वेदव्यास को अभिवादन कर यह कैलास पर्वत पर में एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण घटना, व्यास पाराशर्य से ध्यानस्थ बैट गया । पश्चात् यह वायुरूप बना, एवं उपस्थित इसे हुई भागवतपुराण की प्राप्ति मानी जाती है। लोगों के आँखो के सामने आकाशमार्ग से सूर्य (आदित्य) भागवत ग्रंथ की प्राप्ति होने के पूर्व ही शुक परमज्ञानी लोक में प्रविष्ट हुआ। इसके पिता व्यास ' हे शुक' कह था, किंतु फिर भी यह पुराण इसने अत्यंत भक्तिभावना कर शोक करने लगे,एवं बाकी सभी लोग अनिमिष नेत्रों से से सुना, एवं उसे सुनते ही इसका हृदय भक्तिभावना यह अपूर्व दृश्य देखते ही रहे ( म. शां ३१९-३२० )। से भर आया (भा. १.७.८)। पश्चात् यह पुराण इसने व्यास से तलना--शुक सदैव नग्नस्थिति में रहता था। परिक्षित् राजा को सुनाया था। पुराण सुनाते समय, यह इसके सोलह वर्षों तक नग्नावस्था में रहने का निर्देश प्राप्त है तेजस्वी, तरुण एवं आजानबाहु प्रतीत होता था (भा.१. (भा. १.१९.२६ )। इसी नग्न अवस्था में यह परिक्षित् १९.१६-२८)।
राजा से मिलने गया था। इसे नग्न अवस्था में सरोवर, '. भागवत पुराण की रचना अन्य पुराणों से भिन्न है। पर स्नान के लिए जाते समय वहाँ के उपस्थित लोग लज्जित अन्य पुराणो में जहाँ परमेश्वर प्राप्ति के लिए उपासना, नहीं होते थे, बल्कि व्यास को वैसी अवस्था में देखने पर . चिंतन एवं तपस्या पर जोर दिया गया है, वहाँ भागवत उन्हें लज्जा का अनुभव होता था। इसका कारण यही था में भक्ति को प्राधान्य दिया गया है । यही भक्तिप्राधान्यता कि, शुक स्त्री पुरुषों के भेदों के अतीत अवस्था में पहुँच भागवत का प्रमुख वैशिष्टय है । इसी कारण, भागवत को गया था, जिस अतीत अवस्था में व्यास नहीं पहुँचा था 'अखिलश्रुतिसार' एवं 'सर्ववेदान्तसार' कहा गया है (म. शां. ३२०. २८-३०; मा. १.४.४ )। (भा. ३.२.३, १२.१३.१२)। इस ग्रंथ के संबंध में । शुकनाभ--रावण के पक्ष का एक राक्षस ( वा. रा. प्रत्यक्ष भागवत में कहा गया हैराजन्ते तावदन्यानि पुरागानि सतां गणे।
शकी--कश्यप एवं ताम्रा की कन्या। इसका विवाह यावन्न दृश्यते साक्षाच्छीमद्भागवतं परम् ॥
गरुत्मत् से हुआ था। सृष्टि के सारे शुक ( तोते )
इसकी संतान माने जाते हैं। इसके पुत्रों में सुख, (भा. १२.१३.१४)।
सुनेत्र, विशिख, सुरूप, सुरस, एवं बल प्रमुख माने जाते थे भागवत के अनुसार, इस ग्रंथ के कथन से स्वयं व्यास (ब्रह्मांड. ३.७.४५०)। . को भी अत्यधिक समाधान प्राप्त हुआ। परमेश्वरप्राप्ति - शक्ति आंगिरस-एक. सामद्रष्टा आचार्य (पं. ब्रा. का 'साधनचतुष्टय' इस ग्रंथ से पूर्ण होने के कारण, | १२.५.१६ )। अपने जीवन का सारा कार्य परिपूर्ण होने की धारणा | शक्र उशनस्--भार्गवकुलोत्पन्न एक ऋषि, जो उसके मन में उत्पन्न हुई।
दैत्यों का एक सुविख्यात आचार्य था। यह भृगु ऋषि एवं व्यास-शुकसंवाद--महाभारत में 'शुकानुप्रश्न' नामक | हिरण्यकशिपु की कन्या दिव्या का पुत्र था। पौराणिक एक उपाख्यान प्राप्त है, जहाँ शुक के द्वारा अपने पिता | साहित्य में इसे कवि का पुत्र भी कहा गया है, जिस व्यास से पूछे गये अनेकानेक प्रश्नों का, एवं व्यास के द्वारा | कारण इसे 'काव्य' पैतृक नाम प्राप्त था। यह एवं दिये गये शंकासमाधानों का वृत्तांत प्राप्त है । उस उपाख्यान च्यवन भृगुकुल में उत्पन्न ऋषियों में सर्वाधिक प्राचीन में चर्चित प्रमुख विषय निम्नप्रकार है:--१. ज्ञान के | ऋषि माने जाते हैं। साधन एवं उनकी महिमा;२. योग से परम पद की प्राप्ति; दैत्यों का आचार्य-महाभारत एवं पुराणों में इसे ४. कर्म एवं ज्ञान में अंतर; ५. ब्रह्मप्राप्ति के उपाय | दैत्यों का गुरु, आचार्य, उपाध्याय, पुरोहित एवं याजक ' ६. ज्ञानोपदेश में ज्ञान का निर्णय; ७. प्रकृति-पुरुष विवेक; | कहा गया है ।
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