Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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शिबि.
प्राचीन चरित्रकोश
शिव
निर्देश महाभारत में प्राप्त है, जिसका संकेत भी इसी २. एक जातिविशेष, जिसका निर्देश दस्यु लोगों के पुण्यदान के आख्यान की ओर प्रतीत होता है (म. आ. | साथ प्राप्त है (ऋ. १.१००.१८)। सीमर के अनुसार, ८८.८) महाभारत में अन्यत्र नारद का, एवं इसका एक ! ये लोग अनार्य थे (अल्टिन्डिशे लेबेन, ११८-११९)। संवाद प्राप्त है, जहाँ उसने इसे अपने से भी अधिक शिरिबिठ भारद्वाज--एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. पुण्यवान् वर्णन किया है (म. व. परि. १.२१.५.)। | १०.१५५.१)। 'ऋग्वेद अनुक्रमणी' में इसे भरद्वाज
यह अत्यंत संपत्तिमान् , उदार, पराक्रमी, राजनीति- | का पुत्र कहा गया है। किंतु यास्क इसे व्यक्ति न मान प्रवण एवं यज्ञकर्ता राजा था (म. द्रो. परि. १.८.४०९- |
कर 'मेघ' मानते हैं (नि. ६.३०)। ४३६ )। यह कुछ काल तक इंद्र बना था, एवं ब्रह्मा के
| शिरीष--अत्रिकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । यज्ञ का 'प्रतिष्ठाता' भी यही था।
शिरीषक--कश्यपकुलोत्पन्न एक नाग, जो नारद ने
इंद्रसारथि मातलि को वर के रूप में प्रदान किया था दान का. महत्त्व-इसने सुहोत्र राजा को दान का महत्त्व कथन किया था। उस समय उसने इसे कहा,
(म. उ. २०१.१४)।
| शिरीषिन्--विश्वामित्र ऋषि के ब्रह्मवादी पुत्रों में से 'दान यह एक ही संपत्ति ऐसी है कि, जो देने से अधिक बढती है ' (म. व. पंरि. १.२१.२)। इसका यह उपदेश |
| एक (म. अनु. ४.५९)।
शिलक शालावत्य--एक आचार्य, जो चैकितायन सुन कर, सुहोत्र ने इसे सम्मानपूर्वक विदा किया।
दाल्भ्य, एवं प्रवाहण जैवलि नामक आचार्यों का समकालीन मृत्यु-मृत्यु के पश्चात् यह यमसभा का सदस्य हुआ
था (छां. उ. १.८.१)। 'शलावति' का वंशज होने के (म. स. ८.९)। मृत्यु के पश्चात् , उत्तर-गोग्रहणयुद्ध
कारण, इसे शालावत्य पैतृक नाम प्राप्त हुआ था। के समय पांडवों के पराक्रम को देखने के लिए अन्य
शिलर्दनि-अत्रिकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । देवों के साथ यह उपस्थित हुआ था (म. वि. ५१.९१७*
शिलवृत्ति-एक ऋषि, जिसने गंगा नदी के माहात्म्य पंक्ति. ३०)। इसके माहात्म्य की अनेकानेक कथाएँ पद्म
के संबंध में एक सिद्ध से संवाद किया था (म. अनु. में प्राप्त हैं (पद्म. उ. ८२; १९९)।
२६.१९-१०३)। इसे 'शिलोच्छवृत्ति' नामांतर भी प्राप्त परिवार---इसके निम्नलिखित चार पुत्र थे:- १.
था (म. अनु. २६.१९)। .वृषादर्भ, २. सुवीर; ३. मद्र; ४. केकय (भा. ९.२३. ३)। इसके इन पुत्रों ने पंजाब प्रदेश में क्रमशः वृषादर्भ,
शिलस्थलि--अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । सौवीर, केकय, एवं मद्र राज्यों की स्थापना की, एवं इस |
शिला--धर्म ऋषि की कन्या, जो मरीचि ऋषि की
पत्नी थी। अपने पति के शाप के कारण, यह गयाक्षेत्र में प्रकार वे समस्त पंजाब प्रदेश के स्वामी बन गये।
शिला बन कर रहने पर विवश हुई (वायु. १०७)। 6. उपर्युक्त पुत्रों के अतिरिक्त, इसके गोपति, एवं |
| शिलाद--शिवपार्षद नंदिन का पिता (लिंग. १-४२, बृहद्गर्भ नामक पुत्रों का निर्देश भी महाभारत में प्राप्त है
नंदिन् १. देखिये)। (म. शां. ४९.७०)।
शिलायूप--विश्वामित्र ऋषि एक पुत्र (म.अनु.४.५४)। . २. उशीनर देश का एक राजा, जो द्रौपदी स्वयंवर में
शिलास्थलि--अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । उपस्थित था (म. आ. ६०.२१)। भारतीय युद्ध में यह
शिलीन--जित्वन् शैलिनि ऋषि का पिता (बृ. उ. पांडवों के पक्ष में शामिल था । अन्त में यह द्रोण के द्वारा
| ४.१.५ माध्य.)। मारा गया (म. द्रो. १३०.१७)।
| शिल्व काश्यप--एक आचार्य, जो काश्यप निध्रुवि शिर्मिदा--एक दानव (अ. वे. ४.२५.४; श. ब्रा. | नामक आचार्य का शिष्य, एवं हरित काश्यप नामक ७.४.१.७)। यह शब्द ' शिमिद् ' से व्युत्पन्न है, जिसका | आचार्य का गुरु था (बृ. उ. ६.४.३३ माध्यं.)। शब्दशः अर्थ 'व्याधि' है (ऋ. ७.५०.४)।
शिव--एक देवता, जो सृष्टिसंहार का आद्य देवता शिम्यु-एक राजा, जो दाशराज्ञ युद्ध में सुदास राजा | माना जाता है (रुद्र-शिव देखिये)। के द्वारा नहुष, भरत, वार्षगिर, ऋज्राश्व, अंबरीष, सहदेव, २. एक जातिविशेष, जो दाशराज्ञ युद्ध में सुदास राजा भजमान आदि राजाओं के साथ परास्त हुआ था (ऋ. | के द्वारा अलिन् , पक्थ, भलानस् , विषाणिन् आदि .७.१८.५)।
| जातियों के साथ हुआ था (ऋ. ७.१८.७)। ९७१