Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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शाकल
प्राचीन चरित्रकोश
शाकल
शौनक के द्वारा विरचित एक 'अथर्वप्रातिशाख्य' पदपाठ का रचयिता-ऋग्वेद के वर्तमान 'पदपाठ' भी प्राप्त है, जो 'चतुराध्यायिका' नाम से सुविख्यात है। की रचना शाकल्य के द्वारा की गयी है। इस पदपाठ
शाकल्यसंहिता-शाकल शाखा की आद्यसंहिता में ऋग्वेद में प्राप्त समानार्थी पदों का संग्रह परिगणना'शाकल्य संहिता' थी, जिसका निर्देश 'व्याकरण- | पद्धति से किया गया है। किंतु कौन से नियम का अनुमहाभाष्य' में प्राप्त है (महा. १.४.८४)। कात्यायन
सरण कर इस 'पदपाठ' की रचना की गयी है, इसका की 'ऋक्सर्वानुक्रमणी' एवं शाकल्य का पदपाठ इसी
पता पदपाट में प्राप्त नहीं होता। . संहिता को आधार मान कर लिखा गया है। इस पद
___ व्याकरणाचार्य-शौनक के 'ऋक्प्रातिशाख्य' में भी पाठ के अनुसार, शाकल्य के मूल संहिता में १५३८२६ इसका निर्देश प्राप्त है, जहाँ इसे एक 'व्याकरणकार' पद थे।
कहा गया है । 'ऋग्वेद संहिता' में संधि किस प्रकार शाकलायनि--अत्रिकुलोत्पन्न एक गोत्रकार ।
साधित किये जाते हैं, इस संबंध में इसके अनेकानेक
उद्धरण 'शौनकीय ऋक्प्रातिशाख्य' में प्राप्त हैं (ऋ. शाकलि--ऋग्वेदी श्रुतर्षि ।
प्रा. १९९;२०८; २३२, शु. प्रा. ३.१०)। शाकल्य-ऋग्वेद का सुविख्यात शाखा प्रवर्तक
पाणिनि के अष्टाध्यायी में--इस ग्रंथ में संधिनियमों आचार्य, जो व्यास के वैदिक शिष्यों में प्रमुख था । इसे
के संदर्भ में इसका निर्देश अनेक बार प्राप्त है (पा..सु. शतपथ ब्राह्मण में 'विदग्ध' शाकल्य, ऐतरेय आरण्यक
६.१.१२७, ८.३.१९; ४.५०)। इसी ग्रंथ में 'पदकार' में ' स्थविर ' शाकल्य एवं पौराणिक साहित्य में वेदमित्र
नाम से इसका निर्देश प्राप्त है (पा. सू. ३.२.२३)। ( देवमित्र ) शाकल्य कहा गया है ( श. ब्रा. ११.६.३.
इसके द्वारा लिखित पदपाठ में जिस 'पद' का निर्देश : ३; बृ. उ. ३.९.१.४; ७; ऐ. आ. ३.२.१.६; सां. आ. |
| 'इति' से किया गया है, जो पाणिनि के अनुसार ७. १६; ८.१.११; वायु. ६०; ब्रह्मांड. २.३४)।
'अनार्ष' है (पा. सू. १.१.१६)। शाखाप्रवर्तक आचार्य--व्यास से इसे जो 'ऋग्वेद
पाणिनि ने 'उपस्थित' शब्द की व्याख्या करते समय संहिता' प्राप्त हुई, वह 'शाकल संहिता' नाम से
पुनः एक बार इसका निर्देश किया है, एवं कहां है, प्रसिद्ध है, जो आगे चल कर इसने अपने पाँच शाखा
" शाकल्य के अनुसार, 'इतिकरण' से सहित 'पद'. प्रवर्तक शिष्यों में बाँट दी । इसी के नाम से वे शाखाएँ
को 'उपस्थित' कहते थे" (पा. सू. ६.१.१२९)। 'शाकल ' सामूहिक नाम से प्रसिद्ध हैं ( शाकल देखिये )।
याज्ञवल्क्य से संवर्ष--याज्ञवल्क्य वाजसनेय से इसने ऋग्वेद की वर्तमानकाल में उपलब्ध संहिता 'शाकल्य किये प्राणांतिक वादविवाद का निर्देश 'बृहदारण्यक के शाखा की' अर्थात् 'शाकल संहिता' मानी जाती है। उपनिषद' में प्राप्त है (याज्ञवल्क्य वाजसनेय, एवं इसी कारण पड्गुरु ने अपने सर्वानुक्रमणी में ' शाकलक' |
देवमित्र शाकल्य देखिये)। की व्याख्या करते समय 'शाकल्योच्चारणम् शाकलकम्'
पौराणिक सहित्य में महाभारत में इसे एक ब्रह्मर्षि कहा है (ऋ. सर्वानुक्रमणी १.१)।
कहा गया है, एवं इसके नौ सौ वर्षों तक शिवोपासना इससे प्रतीत होता है कि, इसने 'ऋग्वेद संहिता' करने का निर्देश वहाँ प्राप्त है। इसकी तपस्या से प्रसन्न का पदघाट' तैयार किया, अनेकानेक प्रवचनों द्वारा हो कर शिव ने इसे वर प्रदान किया, 'तुम बड़े ग्रंथकार उसका प्रचार किया एवं सैकड़ों शिष्यों के द्वारा उसे बनोगे, एवं तुम्हारा पुत्र ख्यातनाम सूत्रकार बनेगा' (म. स्थायी स्वरूप प्राप्त कराया ।
अनु. १४; शिव. रुद्र. ४३-४७)। महाभारत में प्राप्त पतंजलि के 'महाभाष्य' से, एवं 'महाभारत' से इस कथा में, इसके पुत्र का नाम अप्राप्य है। प्रतीत होता है कि, ऋग्वेद की इक्कीस शाखाएँ थी। ग्रंथ--ऋक्संहितासाहित्य के अतिरिक्त इसके नाम किंत उनमें से केवळ पाँच शाखाओं के नाम आज प्राप्त पर निम्नलिखित ग्रंथ प्राप्त हैं:-१. शाकल्यसंहिता हैं (चरणव्यूह; शाकल देखिये)। ऋग्वेदी ब्रह्मयज्ञांग | २. शाकल्यमत (C. C.)। तर्पण में केवल तीन शाखाप्रवर्तकों का निर्देश पाया जाता २. एक विष्णुभक्त ऋषि, जो भ्रगिरि पर निवास है। देवी भागवत जैसे पौराणिक ग्रंथ में भी शाकल्य की करता था। एक बार परशु नामक राक्षस इसे खाने के तीन ही शाखाएँ बतायी गयी है ( दे. भा. ७)। लिए दौड़ा। उस समय विष्णु की कृपा से यह लोहमति