Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
View full book text
________________
शाकल.
प्राचीन चरित्रकोश
शांखायन
में रूपांतरित हुआ, एवं इस प्रकार इसकी जान बच गयी। शाख--अनल नाम.. वसु का पुत्र, जो कार्तिकेय का आगे चल कर इसने परशु राक्षस का उद्धार किया (ब्रह्म. छोटा भाई था । यह एवं इसके छोटे भाई विशाख एवं १६३)।
नैगम स्वयं कार्तिकेय के ही रूप माने जाते है (म. शाकल्यपितृ--एक बैय्याकरण; जिसका संधिनियम | श. ४३.३७)। के संबंध में अभिमत 'ऋक्प्रातिशाख्य' में प्राप्त है (ऋ. शाखेय-पाणिनीय व्याकरण का एक शाखाप्रवर्तक प्रा. २२३)।
आचार्य (पाणि नि देखिये)। शाकवक्त्र-कंद का एक सैनिक (म. श. ४४.७१)। शांखायन--ऋग्वेद का एक अद्वितीय शाखाप्रवर्तक
शाकवण रथीतर--एक आचार्य, जो ब्रह्मांड के | आचार्य, जो स्वयं के शाखान्तर्गत 'संहिता' 'ब्राह्मण' अनुसार, व्यास की ऋक् शिष्यपरंपरा में से सत्यश्री नामक 'आरण्यक', ' उपनिषद' श्रौत्रसूत्र, गृह्यसूत्र आदि ग्रंथों आचाय का शिष्य था । पाठभेद-' शाकपूणि' का रचयिता माना जाता है। कुषीतक ऋषि का पुत्र होने शाकायन--वसिष्ठकुलोत्पन्न एक गोत्रकार ।
के कारण, इसके द्वारा विरचित समस्त वैदिक साहित्य २. एकायन नामक भृगुकुलोत्पन्न गोत्रकार का नामांतर ।
'कौषीतकि' अथवा 'शांखायन' नाम से सुविख्यात है । शाकायनि--भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार ।
टीकाक्रार आनीय के अनुसार, इसे 'सुयज्ञ' नामांतर
भी प्राप्त था (सां. गृ. ४.१०; ६.१०)। 'शांखायन शाकायन्य--एक तत्त्वज्ञ आचार्य, जिसने बृहद्रथ
आरण्यक' में भी इसका निर्देश प्राप्त है (शां. आ. ऐक्ष्वाक राजा को आत्मज्ञान कराया था (मै. उ. १.२)। २. जात नामकं आचार्य का पैतृक नाम, जो उसे
शांखायन संहिता-व्यास की ऋक्शिष्यपरंपरान्तर्गत 'शाक' का वंशज होने के कारण प्राप्त हुआ था (क. सं.
पाँच प्रमुख शाखाएँ मानी जाती थीं, जिनकी नामावलि
निम्नप्रकार है :--१. शाकल २. बाष्कल ३. आश्वलायन शाकहार्य--वसिष्ठकुलोत्पन्न एक गोत्रकार ।
५. शांखायन ५. माण्डुकेय । इन पाँच शाखाओं में से 'शाकिनी--गौड देश में रहनेवाले दुर्व नामक ब्राह्मण
शांखायन शाखा का प्रणयिता यह माना जाजा है, जिसकी की पत्नी । इसके पुत्र का नाम बुध था (बुध ७. देखिये)।।
शांखायन, कौषीतकि आदि विभिन्न उपशाखाएँ थीं। . शाकुनि--मधुवन में रहनेवाला एक ऋषि, जिसके
__ इस शाखा में प्रचलित 'ऋग्वेद संहिता' प्रायः सर्वत्र कुल नौ पुत्र थे। इनके पुत्नों में से ध्रुव, शील, बुध, तार
शाकल शाखांतर्गत ऋक्संहिता से मिलती जुलती थीं । एवं ज्योतिष्मत् ये पुत्र गृहस्थाश्रमी एवं अग्निहोत्री थे।
वर्तमानकाल में प्राप्त ऋग्वेदसंहिता शाकल शाखा की मानी इसके चार पुत्र निर्मोह, जितकाम, ध्यानकेश एवं गुणाधीक |
जाती है। विरक्त एवं संन्यस्त वृत्ति के थे (पद्म. स्व. ३१)।
___ शांखायन ब्राह्मण---ऋग्वेदसंहिता के दो ब्राह्मण ग्रंथ शाक्त्य--गौरवीति पराशर ऋषि का पैतृक नाम, जो
माने जाते है:-१. ऐतरेय; २. शांखायन अथवा कौषीतकि। उसे 'शक्ति' का वंशज होने के कारण प्राप्त हुआ था | 'कौषीतकि ब्राह्मण' में कुल ३० अध्याय है, एवं यज्ञ (ऐ. बा. ३.१९.४; श. ब्रा. १२.८.३.७; पं. बा. ११.५.
| की श्रेष्ठता प्रतिपादन करना, एवं उसकी शास्त्रीय व्याख्या १४; १२.१३.१०; आप. श्री. २३.११.१४)।
करना इस ग्रंथ का प्रमुख उद्देश्य है । यद्यपि ऐतरेय एवं शाक्य--(सू. इ. भविष्य.) एक राजा, जो भागवत, कौषीतकि ब्राह्मण एक ही ऋग्वेद के हैं, फिर भी,विषय प्रतिमत्स्य, विष्णु, भविष्य एवं वायु के अनुसार संजय राजा पादन के दृष्टि से ये दोनों ग्रन्थ काफी विभिन्न हैं । विषयका पत्र था। भविष्य में इसे 'शाक्यवर्धन' कहा गया है। प्रतिपादन के स्पष्टता के दृष्टि से 'कौषीतकि ब्राह्मण' ऐतरेय इसके पुत्र का नाम शुद्धोद था।
ब्राह्मण से कतिपय श्रेष्ठ प्रतीत होता है। इस ब्राह्मण में शाक्रतव--शौकतव नामक अत्रिकलोत्पन्न गोत्रकार | इसका निर्देश 'कौषीतकि' एवं 'कौषीतक' इन दोनों का नामांतर।
नाम से प्राप्त हैं। शाकायण--कश्यपकुलोत्पन्न एक गोत्रकार।
शांखायन आरण्यक-यद्यपि आरण्यक ग्रंथों की शाकर--ऋषभ नामक वैदिक सूक्तद्रष्टा का पैतृक नाम | संख्या अनेक बतायी गयी है, फिर भी इनमें से केवल (ऋ. १०.१६६)।
| आठ ही आरण्यक ग्रन्थ आज उपलब्ध हैं, जिनकी