Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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वृषजार
प्राचीन चरित्रकोश
वृषभ
वृषजार-एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. ५.२)। वृषन् पाथ्य-अग्नि का एक उपासक (ऋ. १.३६.
वृषण-(सो. सह.) एक राजा, जो विष्णु के अनुसार १०)। ऋग्वेद में अन्यत्र इसका पैतृक नाम 'पाथ्य' सहस्रार्जुन राजा का पुत्र था। भागवत एवं वायु के दिया गया है (ऋ. ६.१६.१५)। अनुसार, इसे क्रमशः 'वृषभ' एवं 'वर्ष' नामांतर भी वृषपर्वन्-एक दानवराज, जो कश्यप एवं दनु के प्राप्त थे।
पुत्रों में से एक था (म. आ. ५९.२४)। यह दीर्घप्रज्ञ वषणश्च-एक मनुष्य, जिसकी पत्नी का नाम मेना | राजा के रूप में पृथ्वी पर अवतीर्ण हुआ था (म. आ. था। मेना का रूप धारण कर स्वयं इंद्र इसकी पत्नी बना ६१.१६)। उशनम् शुक्राचार्य इसीका ही राजपुरोहित था (ऋ. १.५१.१३)। ब्राह्मण ग्रंथों में भी इसका था, जिसने 'संजीवनी-विद्या के कारण इसकी राज्य की निर्देश प्राप्त है (जै. बा. २.७९; श, ब्रा. ३.३. एवं असुरों की ताकद काफी बढायी थी। ४.१८, प. बा. १.१.१५, त. आ. १.१२.१२). इंद्रवृत्र युद्ध में इसने इंद्र से युद्ध किया था । देवासुर
घषदर्भ-एक राजा, जिसने अपने राज्यकाल में एक युद्ध में इसने अश्विनों से युद्ध किया था (भा. ६.६. गुप्त नियम बनाया था, 'ब्राह्मणों को सुवर्ण एवं चांदी ही
ह। ३१-३२,१०.२०)। दान दिया जाय।
. इसकी कन्या शर्मिष्ठा ने शुक्रकन्या देवयानी का एक बार इसके मित्र सेन्दुक के पास एक ब्राह्मण आया,
अपमान किया, जिस कारण शुक्र इसका राज्य छोड़ एवं उससे १००० अश्वों का दान माँगने लगा। यह
जाने के लिए सिद्ध हुआ। इसपर अपने राज्य में रहने दान देने में सेन्दुक ने असमर्थता प्रकट की, एवं उस ब्राहाण
के लिए इसने शुक्र से प्रार्थना की, एवं तत्प्रीत्यर्थ अपनी को इसके पास भेज दिया।
कन्या शर्मिष्ठा को देवयानी की आजन्म दासी बनाने की इसने अपने गुप्त नियम के अनुसार, ब्राह्मण के द्वारा उसकी शर्त भी मान्य की (भा. ९.१८.४) । शर्मिष्ठा ने अश्वों का दान माँगते ही उसे कोड़ों से फटकारा । ब्राह्मण भी असरवंश के कल्याण के लिए, देवयानी की दासी के द्वारा इस अन्याय का रहस्य पूछने पर, इसने उसे अपना बनने के प्रस्ताव को मान्यता दी (म. आ. ७५)। गुप्तदान ( उपाशु) का संकल्प निवेदित किया, एवं उसकी
___ परिवार-शर्मिष्ठा के अतिरिक्त, इसकी सुंदरी एवं माफी मांगी। पश्चात् इसने उसे अपने राज्य की एक
चंद्रा नामक अन्य दो कन्याएँ भी थी। दिन की आय दान के रूप में प्रदान की (म. व. परि
२. एक ऋषि, जिसका आश्रम हिमालय प्रदेश में १. क्र. २१. पंक्ति ४.)। भांडारकर संहिता में यह कथा
गंधमादन पर्वत के समीप स्थित था। वनवासकाल में अप्राप्य है। इसे 'वृपादर्भि' नामान्तर भी प्राप्त था।
तीर्थयात्रा करते समय युधिष्ठिरादि पांडव इसके आश्रम २. उशीनर देश के शिबिराजा का पुत्र । इसी के नाम में आये थे। इसने पांडवों को उचित उपदेश कथन से इसके राज्य को 'वृषादर्भ' जनपद नाम प्राप्त हुआ
किया, एवं आगे बदरी- केदार जाने का मार्ग भी (ब्रह्मांड ३.७४.२३)।
बताया (म. व. १५५.१६-२५)। बदरी-केदार से लौट वृषदश्व--(सू. इ.) एक राजा, जो वायु के अनुसार
आते समय भी, पुनः एक बार पांडव इसके आश्रम में पृथरोमन् अथवा अनेनम् राजा का पुत्र था।
आये थे (म. व. १७४.६-८)। वपध्वज-एक जनकवंशीय राजा, जिसके पुत्र का
३. एक असुर, जो वृत्र का अनुयायी था (भा. ६. नाम रथध्वज था । यह सीरध्वज जनक राजा के पूर्वकाल
१०.१९)। में उत्पन्न हुआ था। किन्तु वंशावलि में इसका नाम
४. अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। अप्राप्य है। २. एक असुर, जिसने वृत्र-इंद्र युद्ध में वृत्र के पक्ष
वृषभ-(सो. सह.) एक हैहयवंशीय राजा, जो में भाग लिया था (भा. ६.१०)।
भागवत के अनुसार कार्तवीर्य सहस्रार्जुन राजा का पुत्र ३. कर्णपुत्र वृषकेतु का नामान्तर ।
था (भा. ९.२३.२७)। ४. प्रवीर वंश में उत्पन्न एक कुलांगार राजा, जिसने । २. (सो. अज.) एक राजा, जो मत्स्य के अनुसार अपने दुर्वर्तन के कारण अपने स्वजनों का नाश किया कुशाग्र राजा का पुत्र, एवं पुण्यवत् राजा का पिता था (म. उ. ७२. १६ पाठ.)। पाठभेद-'बृहद्बल । (मत्स्य. ५०.२९)।
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