Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
View full book text
________________
वृंदा
प्राचीन चरित्रकोश
वृषगण
उसी दिन से ये तीनो पेड़ पवित्र नाने जाने लगे, एवं | ५. एक दैत्य, जो अनायुषा के पुत्रों में से एक था । यह स्वयं 'तुलसीवृंदा' नाम से प्रसिद्ध हुई।
इसे श्रद्धाद, यज्ञहन् , ब्रह्महन् , एवं पशुहन् नामक पुत्र वृंदारक--कौरवपक्ष का एक योद्धा, जो अभिमन्यु | उत्पन्न हुए थे (ब्रह्मांड. ३.६.३१)। के द्वारा मारा गया था (म. द्रो. ४६.१२)।
६. (सो. अनु.) एक राजा, जो विष्णु के अनुसार २. (सो. कुरु.) धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों में से एक || शिबि राजा का पुत्र था। इसे 'वृषादर्भि' नामान्तर भी भारतीय युद्ध में यह भीम के द्वारा मारा गया था (म. प्राप्त था (वृषादर्भि देखिये)। द्रो. १०२.९५)।
__७. (सो. सह.) एक राजा, जो भरत राजा का पुत्र, वृश जान अथवा वैजान--एक आचार्य, जो व्यरुण | एवं मधु राजा का पिता था ( विष्णु. ४.११.२५-२६)। राजा का पुरोहित था। 'जन' का वंशज होने से इसे 'जान | ८. एक राजा, जो सुंजय एवं राष्ट्रपाली का पुत्र था अथवा 'वैजान' पैतृक नाम प्राप्त हुआ होगा। (भा. ९.२४.४२)।
एक बार यह एवं व्यरुण राजा रथ में बैठ कर जा रहे ९. एक यादव राजकुमार, जो कृष्ण एवं सत्या के पुत्रों थे, जब एक बालक की इनके रथ के नीचे मृत्यु हो गयी। में से एक था (भा. १०.६१.१३)। उस समय, रथ का लगाम इसीके हाथ में होने के कारण | १०. एक यादव राजकुमार, जो कृष्ण एवं कालिंदी के इसे मृत्यु का पातक लगा। पश्चात् 'वार्श' साम का पठन - पुत्रों में से एक था (भा. १०.६१.१४)। . का इसने मृत बालक को पुनः जीवित किया (पं. बा.१३. ११. एक हैहयवंशीय राजकुमार, जो कार्तवीर्य अर्जुन ३.१२)। सांख्यायन, तांड्य एवं भाल्लवि ब्राह्मण, तथा के पुत्रों में से एक था। यह परशुराम के क्षत्रियसंहार से बृहद्दवता में भी इस कथा का संक्षिप्त निर्देश प्राप्त है। बच गया था (ब्रह्मांड. ३.४१.१३)।
सीग के अनुसार ऋग्वेद में भी इस कथा का निर्देश १२. अंगराज कर्ण का नामान्तर (म.व.२९३.१३)। प्राप्त है (ऋ. ५.२)। किंतु वह तर्क अयोग्य प्रतीत १३. धर्म सावर्णि मन्वन्तर का इंद्र। . . होता है।
वृषक-एक राजकुमार, जो गांधारराज सुबल का वृष--शिव का एक अवतार, जो वृषभ रूप में उत्पन्न
या पुत्र था। यह द्रौपदीस्वयंवर में, एवं युधिष्ठिर के राजसूय. हुआ था। समुद्र-मंथन के पश्चात् , उस मंथन से उत्पन्न
यज्ञ में उपस्थित था (म. आ. १७७.५; म. स. ३१.७)। हुए सुंदर स्त्रियों से विष्णु कामासक्त हुआ, एवं उसे उन .
भारतीय युद्ध में यह कौरवपक्ष में शामिल था, जहाँ स्त्रियों से सैंकड़ो पुत्र उत्पन्न हुए | पाताल में उत्पन्न हुए
इसकी श्रेणि 'रथी' थी (म. उ. १६५.६ ) अर्जुनपुत्र विष्णु के इन पुत्रों ने समस्त पृथ्वी कंपित करना प्रारंभ
इरावत् का इसने पराजय किया था (म. भी. ८६.२४किया, जिनका परामर्ष लेने के लिए शिव ने वृष का
४३)। अंत में अर्जन ने इसका वध किया (म. द्रो. अवतार धारण किया।
२८.११-१२; क. ४.३९.)।
__भारतीय-युद्ध के पश्चात् , व्यास के द्वारा आवाहन विष्णपत्रों से शाप--उत्पन्न होते ही इसने विष्णु की | करने पर, यह गंगाजल से प्रकट हुआ था (म. आश्र पराजय कर, उसका सुदर्शन चक्र हरण किया, एवं उसे | ४०.१२)। स्वर्लोक में भाग जाने पर भी विवश किया । जाते समय वषकंड--कश्यपकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । विष्णु ने अपने पुत्रों को पाताल में भाग जाने की सलाह |
वृषनाथ--कौरवपक्ष का एक योद्धा, जो द्रोणदी, जिस पर इसने उन्हें शाप दिया, 'शांत-वृत्ति के ऋषि निर्मित गरुडव्यूह के हृदयस्थान में खड़ा था (म. द्रो. एवं मेरे अंश से उत्पन्न दानवों के अतिरिक्त, जो भी | १९.३१)। मनुष्य पाताल में जायेगा, उसे मृत्यु प्राप्त होगी'। उस वषकेत-अंगराज कर्ण के पत्रों में से एक । युधिष्ठिर माय से पाताल लोक मनुष्यप्राणियों के लिए निषिद्ध बन | के अश्वमेधीय अश्व की रक्षा के लिए यह गया था। गया ( शिव. शत. २२-२३)।
। यही काम करते समय, यह बभ्रुवाहन के द्वारा मारा २. स्कंद का एक सैनिक ।
गया (जै. अ. ३०)। ३. एक दैय, जो पूर्वकाल में पृथ्वी का शासक था। वृषगण वासिष्ठ-एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. ९.९७. ४. विकुंठ देवों में से एक ।
| ७-९)।
९००