Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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वृद्धकन्या
प्राचीन चरित्रकोश
वृंदा
वृद्धकन्यातीर्थ--अपने कुरुक्षेत्र में स्थित जिस आश्रम वृद्धद्युम्न आभिप्रतारिण--एक कुरुवंशीय राजा में इसने तपस्या की थी, वहाँ आगे चल कर 'वृद्धकन्या- (राजज्ञ), जिसके पुरोहित का नाम शुचिवृक्ष गौपालायन था तीर्थ' नामक तीर्थस्थान का निर्माण हुआ। भारत के (ऐ. ब्रा. ३.४८.९)। अपने इस पुरोहित की सहायता तीर्थस्थानों का यात्रा करता हुआ बलराम इस तीर्थस्थान | से इसे विपुल धनलक्ष्मी प्राप्त हुई। में आया था, जहाँ उसे शल्यवध की वार्ता ज्ञात हुई थी। एक बार इसने तृष्टोम-क्षत्रधृति' नामक यज्ञ किया
वृद्धगौतम--एक वैश्य, जो मणिकंडल नामक वैश्य का | था। उस समय यज्ञकर्म में इसके द्वारा एक टि हो गयी. मित्र था (मणिकुंडलः देखिये)।
जिस कारण पुरोहित ने इसे शाप दिया, 'जल्द ही कुरुवृद्धक्षत्र-एक राजा, जो सिंधुनरेश जयद्रथ का पिता |
राजवंश का कुरुक्षेत्र से लोप होगा'। आगे चल कर पुरोहित था। इसने जयद्रथ को वर प्रदान किया था, 'जो भी
की यह शापवाणी सच साबित हुई (सां. श्री. १५.१६. तुम्हारे सिर को पृथ्वी पर गिरायेगा, उसके मस्तक के
१०-१३)। सैकड़ो टुकड़े हो जायेंगे।
अभिप्रतारिन् का वंशज होने से इसे 'आभिप्रतारिण' भारतीय यद्ध में अर्जुन ने अपने बाणों से जयद्रथ का यह पैतृक नाम प्राप्त हुआ होगा। संभवतः यह अभिशिरच्छेद किया, एवं उसका सिर वृद्धक्षत्र के ही गोद में |
प्रतारिन् काक्षसेन राजा के वंश में उत्पन्न हुआ होगा। गिरा दिया, जिस कारण इसकी मृत्यु हुई (म. द्रो. १२१)।
| वृद्धशर्मन्--(सो. पुरूरवस्.) एक राजा, जो आयु वृद्धक्षत्र पौरव-एक पूरुवंशीय राजा, जो भारतीय
राजा एवं स्वर्भानु का पुत्र था। इसके अन्य चार भाइयों
के नाम नहुष, रजि, रम्भ एवं अनेनस् थे (म. आ. ७०. युद्ध में पांडवों केपक्ष में शामिल था। यह अश्वत्थामन्
२३)। इसे क्षत्रधर्मन् नामान्तर भी प्राप्त था। . के द्वारा मारा गया (म. द्रो. १७१.५६-६४)। वृद्धक्षेम-एक राजा, जो त्रिगर्तराज सुशर्मन् का पिता |
२. करुष-देशीय एक राजा, जो वसुदेव-भगिनी
श्रुतदेवा का पति था। इसके पुत्र का नाम दन्तवक्र,था था। इसी कारण सुशर्मन् को 'वार्धक्षेमि' पैतृक नाम प्राप्त
(भा. ९.२४.३७)। था (म. आ. १७७.८; वार्धक्षेमि १. देखिये)।
वृद्धसेना--एक राजस्त्री, जो सुमति राजा की पत्नी, २. एक कृष्णिवंशीय राजा, जो भारतीय युद्ध में पाण्डवों |
एवं देवताजित् राजा की माता थी (भा. ५.१५.१-२)। के पक्ष में शामिल था (म. उ. १६८.१६ )। इसे |
वृद्धा--एक राजकन्या, जो आर्टिषेणपुत्र ऋतध्वज 'वार्धक्षेमि' नामान्तर प्राप्त था ।
राजा एवं सुश्यामा की कन्या थी। इसका विवाह वृद्धभारतीय युद्ध में इसका कृप के साथ युद्ध हुआ था | गौतम ऋषि से हुआ था (ब्रह्म. ११७ )। (म. द्रो. २४.४९)। अन्त में बाव्हिक ने इसका वध
वृधु तक्षन्--एक हीनकुलीन अंत्यज, जिसने किया ( म. क. ४.७९)।
भरद्वाज ऋषि को गोदान किया था। यह हीन जाति का वृद्धगर्ग-एक आचार्य, जिसने राज्य में उत्पन्न होने
होने के कारण, इससे दान लेना अधर्म्य था । किन्तु भरद्वाज वाले दुश्चिन्ह के बारे में अत्रि ऋषि को ज्ञान प्रदान | ऋषि क्षुधार्त एवं आपदग्रस्त थे, जिस कारण उन्हें कोई किया था (मत्स्य. २२९.३८)।
दोष न लगा (मनु. १०.१०७)। वृद्धमार्य--एक आचार्य, जिसने पितरों की तृप्ति किस | __ ऋग्वेद में निर्दिष्ट 'बुबु तक्षन् ' नामक दास संभवतः प्रकार होती है इस संबंध में अपने पितरों के साथ संवाद | यही होगा। किया था। उस समय पितरों ने इसे वर्षा ऋतु में दीपदान वृंदा--एक दैत्यकुलोत्पन्न स्त्री, जो कालनेमि एवं करने का, एवं अमावास्या के दिन तर्पण करने का माहात्म्य | स्वर्णा की कन्या, एवं जालंधर दैत्य की पत्नी थी (पद्म. कथन किया था (म. अनु. १२५.७७-८३)। उ. ४; शिव. रुद्र. यु. १४)।
२. एक ऋषि, जो मुचुकुंद राजा का समकालीन था जालंधर दैत्य की मृत्यु के पश्चात इसने अग्निप्रवेश (विष्णु. ५.२३.२५८)।
किया था। इसकी पतिभक्ति से विष्णु प्रसन्न हुए, एवं वृद्धगौतम--एक ऋषि, जो पूर्वकाल में जड़बुद्धि था। उन्होंने इसके अग्निप्रवेश के स्थान पर गौरी, लक्ष्मी एवं किन्तु वृद्धा नामक स्त्री के तप के कारण यह बुद्धिमान् बन स्वरा के अंश से क्रमशः आमला, तुलसी एवं मालती गया (ब्रह्म. १०७)।
| पेड़ों का निर्माण किया ( प. उ.१०५; जालंधर देखिये )।