Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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शल्य
प्राचीन चरित्रकोश
शशबिंदु
में वह असफल रहा। इस समारोह में इसने युधिष्ठिर को कर्ण-शल्यसंवाद-दूसरे दिन कर्ण एवं अर्जुन के दरम्यान एक रत्नजडित तलवार, एवं एक सुवर्णकलश प्रदान किया | हुए युद्ध में, इसने कर्ण से नाना प्रकार के उपहासपूर्ण था। युधिष्ठिर एवं शकुनि के दरम्यान हुई द्युतक्रीड़ा में वचन कह कर, उसका तेजोभंग किया। चित्रसेन गंधर्व के भी यह उपस्थित था।
युद्ध में कर्ण के द्वाग किया गया पलायन, विराट__ भारतीय युद्ध में इस युद्ध के समय, पांडवों ने
| पुत्र उत्तर के द्वारा किया गया उसका पराजय आदि कर्ण अपनी ओर से इसे रणनिमंत्रण भेजा था। नकुल सहदेवों
के जीवन के अनेकानेक लांछनास्पद प्रसंगों का स्मरण इसने का मामा होने के कारण, इसका पांडवों के पक्ष में शामिल
उसे दिलाया। अर्जुन के तुलना में कर्ण एक 'काक' के होना स्वाभाविक भी था। किंतु पांडव पक्ष में दाखल होने
समान क्षुद्र एवं नीच है ऐसा कह कर, 'हंसकाकीय' के लिए एक अक्षौहिणी सेना के साथ निकले हुए शल्य को
नामक एक व्यंजनात्मक उपाख्यान भी उसे सुनाया (म. दुर्योधन ने राह में ही बड़ी चतुरता से रोका, एवं इसका क. २६.२७-२९)। इतना भन्य आदरसत्कार किया कि, यह पांडवों का पक्ष
इस समय, कर्ण ने भी व्यक्तिशः इसकी एवं बाहिक छोड़ कर कौरवपक्ष में शामिल हुआ। पश्चात् यह युधिष्ठिर | देश में रहनेवाले लोगों की यथेच्छ निंदा की, एवं इन्हें के पास गया, एवं इसने कौरव पक्ष में रह कर ही युद्ध चोर, हीन जाति के, व्यभिचारी आदि अनेकानेक भलेबुरे करने का अपना निश्चय उसे विदित किया (म. उ. ८. | शब्द कहे । पश्चात् दुर्योधन ने मध्यस्थता कर, इन २५-२७)। उस समय युधिष्ठिर ने इसे कौरवपक्षीय दोनों में शांतता प्रस्थापित की (म. क. ३०)। आगे चल योद्धाओं का एवं विशेषतःकर्ण का तेजोभंग करने की प्रार्थना कर, कर्ण एवं भीम के दरम्यान हुए युद्ध में, इसने कण की। इसने युधिष्ठिर की यह प्रार्थना मान्य कर उससे की जान भी बचायी थी (म. क. ६२.८.१४)। . 'इंद्रविजय' नामक उपाख्यान भी सुनाया। इसी कारण सेनापति शल्य---कर्णवध के पश्चात् , यह कौरवसेना महाभारत में शल्य को 'उपहित' (शत्रु की वंचना करने का सेनापति बन गया (म. श. १.८)। यह केवल आधा के लिए नियुक्त ) कहा गया है।
दिन के लिए ही कौरवों का सेनापति रहा। अन्त में भारतीय युद्ध में इसकी श्रेणी 'अतिरथी' थी, एवं
| माध्याह्न के समय, यह युधिष्ठिर के द्वारा मारा गया
(म. श. १.१०; १६.५९-६५)। इसकी मृत्यु पौष कृष्णा हर एक युद्ध में यह कृष्ण के साथ स्पर्धा करने में प्रयत्न- | शील रहता था।
अमावस्या के दिन हुई।
शवकर्ण-शिवकर्ण नामक वसिष्ठगोत्रोत्पन्न गोत्रकार युद्धप्रसंग--भारतीय युद्ध में इसने निम्नलिखित
का नामांतर। योद्धाओं के साथ युद्ध किया था:--१. विराटपुत्र उत्तर
शवस- एक आचार्य, जो अग्निभू काश्यप नामक (म. भी. ४५.४१) २. विराटभ्राता शतानीक (म. |
आचार्य का शिष्य था। इसके शिष्य का नाम देवतर द्रो. १४२.२७ ); ३. युधिष्ठिर (म. भी. ४३.२६)।
शावसायन था (वं. वा. २)। , इसी युद्ध में यह निम्नलिखित योद्धाओं के हाथों शश भारद्वाज--एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. १७. पराजित हुआ था :-(१) भीमसेन (म. भी. ६०. १५२)। २३); (२) सहदेव (म. भी. ७९.५०); (३) शशक--एक जातिसमूह, जो कर्ण के दिग्विजय में अभिमन्यु (म. द्रो. ४७.१३)।
परास्त हुआ था (म. व. परि. २४.७०)। कर्ण का सारथ्य--द्रोण वध के पश्चात् , कर्ण कौरवसेना | शशकर्ण काण्व-एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ.८.९)। का सेनापति बन गया। उस समय इससे अपना सारथी शशबिंदु--(सो. सह.) एक सुविख्यात यादववंशीय बनने की प्रार्थना कर्ण ने की । इसमें अपना अपमान समझ चक्रवर्ती राजा, जो महातपस्वी था (वायु. ९५.१९)। कर इसने इस प्रस्ताव को अमान्य कर दिया। किंतु अंत यह चित्ररथ राजा का पुत्र था। में स्वयं दुर्योधन के द्वारा प्रार्थना किये जाने पर, इसने नारद के द्वारा संजय राजा को सोलह प्रातःस्मरणीय कर्ण का सारथ्य स्वीकार लिया। किंतु यह शर्त रक्खी | राजाओं के जो आख्यान सुनाये गये थे, उनमें यह भी कि, सारथ्यकर्म करते समय जो भी कुछ भलाबुरा यह एक था (म. द्रो. परि १. क्र. ८ पंक्ति. ६२३-६४५ कर्ण से कहेगा, वह उसे सुनना पड़ेगा (म. क. २२.२५)। शां. २९.९८-१०३; २०१.११)। संसार के श्रेष्ठतम
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