Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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प्राचीन चरित्रकोश
शत्रुघ्न
अपनी सापत्न माता कैकेयी के मोह में फँस कर राम जैसे पुण्यपुरुष 'को वनवास देनेवाले अपने पिता दशरथ को भी इसने बुरा-भला कहा, एवं इस दुःखी घटना का अवरोध न करनेवाले अपने ज्येष्ठ भाई को भी काफ़ी दोष दिया (वा. रा. अयो. ७८.२ - ४ ) ।
पादुका संरक्षण - राम की पादुका ले कर नन्दिग्राम लैट आनेवाले भरत के शरीररक्षक के नाते यह भी उपस्थित था । राम के वनवासकाल में शत्रुघ्न कहाँ रहता था, इस संबंध में कोई भी जानकारी 'वाल्मीकि रामायण' में उपलब्ध नहीं है। राम के वनवाससमाप्ति के पश्चात् यह उसका धनुष एवं बाण ले कर उसका स्वागत करने
गया था।
लवणवध — वनवास काल के पश्चात् राम अयोध्या का राजा बन गया, तब उन्हीं के आदेश से इसने लवणासुर पर आक्रमण किया ।
बासुर यमुनावट के निवासी च्यवन भार्गवादि ऋषियों को त्रस्त करता था । उसके पिता मधु को शिव से एक अजेय शूल प्राप्त हुआ था, एवं शिव ने उसे आशी र्वाद दिया था कि, जब तक वह शूल लवण के हाथ में रहेगा, तब तक यह अवश्य होगा ( वा. रा. उ. ६१. २४) । इसी शूल के बल से लवण अब समस्त पृथ्वी पर अत्याचार करने के लिए प्रवृत्त हुआ था।
च्यवन भागर्वादि ऋषियों ने लवण की शिकायत राम से की, जिस पर राम ने शत्रुघ्न को इस प्रदेश का राज्याभिषेक किया, एवं इसे लवण का वध करने की आज्ञा दी । इसने एक विशाल सेना को मधुवन की ओर भेज दिया, एवं स्वयं एक रात्रि बाल्मीकि के आश्रम में व्यतीत कर, यह मधुवन के लिए रवाना हुआ। अयोध्या से निकल ने के पश्चात् चौथे दिन यह मधुपुर पहुँच गया।
मधुपुर पहुँचते ही इसने देखा कि, शिव के द्वारा दिया गया शूल अपने राजभवन में रख कर, लवण कहीं बाहर गया था। इसने वह शूल हस्तगत किया, एवं यह उस राक्षस की राह देखते मधुपुर के द्वार में ही खड़ा हुआ पश्चात् इन दोनों में घमासान युद्ध हुआ, इसने लवण का वध किया।
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जिसमें
इसने
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मथुरा की स्थापना -- लवणवध के पश्चात् मधुवन में स्थित मधुपुरी अथवा मधुरा नगरी में राजधानी स्थापित कर उसका नाम 'मथुरा रक्खा
अपनी
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शत्रुघ्न
कर उसे 'शरसन' नाम प्रदान किया। आगे चलकर इसी नाम से यह प्रदेश सुविख्यात हुआ ।
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राम से भेंट- इस प्रकार, बारह वर्षों तक मधुपुरी में राज्य करने के पश्चात् राम के दर्शन की इच्छा इसके मन में उत्पन्न हुई । तनुसार यह अयोध्या पहुँचा, एवं इसने मधुपुरी छोड़ कर राम के पास ही अयोध्या में रहने की इच्छा प्रदर्शित की। किंतु राम ने इसे इस निश्चय से परावृत कर, क्षात्रधर्म के अनुसार मधुपुरी में प्रजापालन का कार्य करने की आज्ञा दी ( प्रजा हि परिपाल्या क्षत्रधर्मेण वा. . . ७२.१४) । पश्चात् सात दिनों तक अयोध्या में रह कर यह मधुपुरी लौट गया। मधुपुरी वापस शते समय इसे वाल्मीकि के आश्रम में कुशलयों के द्वारा रामायण सुनने का अवसर प्राप्त हुआ ।
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राम का अश्वमेधयज्ञ -- राम के अश्वमेध यज्ञ के समय, अश्वमेधीय अश्व के संरक्षण का भार इसे सौंपा गया था ( वा. रा. उ. ९१ ) । अश्वसंरक्षण के हेतु के द्वारा किये गये पराक्रम का कल्पनारम्य वर्णन पद्म में .. प्राप्त है, जहाँ इस कार्य के लिए इसने पाताल में दिख जय करने का ( पद्म. पा. ३८ ), एवं शिव से युद्ध करने का निर्देश प्राप्त है (पद्म. पा. ४२ ) ।
शत्रुश के अश्वमेधीय दिविजय में निम्नलिखित वीर शामिल थे: प्रतापाय, नीरन, लक्ष्मीनिधि, रिताप उग्रहय, शस्त्रवित्, महावीर, रथाग्रणी, एवं दंडभृत् ( पद्म. पा. ११ ) ।
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दिग्विजय- अश्वमेधीय अश्व के साथ इसने निम्नलिखित देशों में दिग्विजय कर अपना प्रभुत्व प्रस्थापित किया थायांचाल, कुरु, उत्तरकुरु दशाणं, विशाल, अहिच्छत्र, पयोष्णी, रत्नातटनगर, नीलपर्वत, चक्रांकनगर, तेजःपूर, नर्मशतीर, पाताळलोक, विंध्यपर्वत में स्थित देवपूरनगर, भारतवर्ष की सीमा के बाहर स्थित हेमकूटपर्वत, अंग, बंग, कलिंग, कुंडलनगर, कुंडलनगर, गंगातीर में स्थित वाल्मीकि आश्रम (पद्म. पा. १-६८ ) ।
मृत्यु --- अपना आयुःकाल समाप्त हो गया है, यह जान कर राम ने भरत एवं शत्रु को अयोध्या में बुला लिया, एवं ये तीनों भाई सरयू नदी के तट पर 'गोप्रतारतीर्थ' में वैष्णव तेज़ में विलीन हुए ( वा. रा. उ. ११० ) । लक्ष्मण की मृत्यु इसके पहले ही हो चुकी थी (राम दाशराथ देखिये) ।
( २.६२.१८६ वायु, ८८.१८५- १८६.९.
परिवाद इसकी पत्नी का नाम श्रुतकीर्ति था, जो
११.१४ ) | पश्चात् इसने 'मधुवन' राज्य का नाम बदल | कुशध्वज जनकराजा की कन्या थी ( वा. रा. ग. ७३.
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