Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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व्याडि
प्राचीन चरित्रकोश
व्यास
संग्रह-व्याडि के द्वारा रचित ग्रन्थों में 'संग्रह' व्यास पाराशर्य-एक सुविख्यात आचार्य, जो वैदिक श्रेष्ठ ग्रन्थ माना जाता है, किन्तु वह वर्तमानकाल में संहिताओं का पृथक्करणकर्ता, वैदिक शाखाप्रवर्तकों का आद्य अप्राप्य है। इस ग्रंथ के जो उद्धरण उत्तरकालीन ग्रंथों आचार्य, ब्रह्मसूत्रों का प्रणयिता, महाभारत पुराणादि ग्रंथों में लिये गये है, उन्हींसे ही उसकी जानकारी आज प्राप्त का रचयिता, एवं वैदिक संस्कृति का पुनरुज्जीवक तत्त्वज्ञ हो सकती है। पतंजलि के व्याकरण-महाभाष्य के अनु- माना जाता है। यह सर्वज्ञ, सत्यवादी, सांख्य, योग, धर्म सार, यह व्याकरण का एक श्रेष्ठ दार्शनिक ग्रंथ था, जिसकी आदि शास्त्रों का ज्ञाता एवं दिव्यदृष्टि था (म. स्व. ५. रचनापद्धति पाणिनीय अष्टाध्यायी के समान सूत्रात्मक ३१-३३)। वैदिक, पौराणिक एवं तत्त्वज्ञान संबंधी विभिन्न थी (महा. ४.२.६०)। इस ग्रंथ में चौदह सहस्र शब्द- क्षेत्रों में व्यास के द्वारा किये गये अपूर्व कर्तृव के कारण, रूपों की जानकारी दी गयी थी (महा. १.१.१)। चांद्र यह सर्व दृष्टि से श्रेष्ठ ऋषि प्रतीत होता है। व्याकरण में प्राप्त परंपरा के अनुसार, इस ग्रंथ के कुल प्राचीन ऋषिविषयक व्याख्या में, असामान्य प्रतिभा, पाँच अध्याय थे, एवं उनमें १ लक्ष श्लोक थे (चांद्र- क्रांतिदर्शी द्रष्टापन, जीवनविषयक विरागी दृष्टिकोण, व्याकरणवृत्ति. ४.१६१)।
अगाध विद्वत्ता, एवं अप्रतीम संगठन-कौशल्य इन सारे कालनिर्णय-आधुनिक अभ्यासकों के अनुसार, गुणों वा सम्मिलन आवश्यक माना जाता था। इन सारे यास्क, शौनक, पाणिनि, पिंगल, व्याडि, एवं कौत्स ये गुणों की व्यास जैसी मूर्तिमंत साकार प्रतिमा प्राचीन व्याकरणाचार्य प्रायः समकालीन ही थे। इनमें से भारतीय इतिहास में क्वचित् ही पायी जाती है। इसी शौनक के द्वारा विरचित 'ऋप्रातिशाख्य' का रचनाकाल | कारण, पौराणिक साहित्य में इसे केवल ऋषि ही नहीं, २८०० ई. पू. माना जाता है । व्याडि का काल संभवतः किन्तु साक्षात् देवतास्वरूप माना गया है। इस साहित्य में. यही होगा (युधिष्ठिर मीमांसक, पृ. १३९)। इसे विष्णु का (वायु. १.४२-४३; कूर्म. १.३०.६६; __ ग्रंथ--इसके नाम पर निम्नलिखित ग्रंथ प्राप्त हैं:-- | गरुड. १.८७.५९); शिव का (कूर्म. २.१५.१३६ ); १. संग्रह. २. विकृतवल्ली. ३. व्याडिव्याकरण. ४. बल- ब्रह्मा का (वायु. ७७.७४-७५, ब्रह्मांड. ३.५३.७६); रामचरित ५. व्याडि परिभाषा. ६. व्याडिशिक्षा (C.C.) एवं ब्रह्मा के पुत्र का (लिंग, २.४९.१७) अवतार कहा
गरुडपुराण के अनुसार, इसने रत्नविद्या के संबंध में गया है। भी एक ग्रंथ की रचना की थी (गरुड. १.६९.३७)। सनातन हिंदुधर्म का रचयिता-श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त व्याधाज्य-भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। | सनातन हिंदु धर्म का व्यास एक प्रधान व्याख्याता कहा जाता
व्यास धर्मशास्त्रकार'-एक धर्मशास्त्रकार, जिसके | है। व्यास महाभारत का केवल रचयिता ही नहीं, बल्कि द्वारा रचित एक स्मृति आनंदाश्रम, पूना, व्यंकटेश्वर प्रेस, | भारतीय सांस्कृतिक पुनरुज्जीवन का एक ऐसा आचार्य था बंबई एवं जीवानंद स्मृतिसंग्रह में प्रकाशित की गयी है । | कि, जिसने वैदिक हिंदुधर्म में निर्दिष्ट समस्त धर्मतत्त्वों को इस ‘स्मृति के चार अध्याय, एवं २५० श्लोक हैं। ।
बदलते हुए देश काल-परिस्थिति के अनुसार, एक बिल्कुल ___ व्यासस्मृति-'व्यासस्मृति में वर्णाश्रमधर्म, नित्यकर्म,
नया स्वरूप दिया । भगवद्गीता जैसा अनुपम रत्न भी इसकी स्नानभोजन, दानधर्म आदि व्यवहारविषयक धर्मशास्त्रीय | कृपा से ही संसार को प्राप्त हो सका, जहाँ इसने श्रीकृष्ण विषयों की चर्चा की गयी है। 'अपरार्क,'स्मृतिचंद्रिका' के अमर संदेश को संसार के लिए सुलभ बनाया।
आदि ग्रंथों में इसके व्यवहारविषयक उद्धरण प्राप्त है। इसी कारण युधिष्ठिर के द्वारा महाभारत में इसे 'भगवान' ___ अन्य ग्रंथ--' व्यासस्मृति' के अतिरिक्त इसके निम्न- | उपाधि प्रदान की गयी हैलिखित ग्रंथों का निर्देश भी निम्नलिखित स्मृतिग्रंथों में प्राप्त
भगवानेव नो मान्यो भगवानेव नो गुरुः। हैं:-१. गद्यव्यास-स्मृतिचंद्रिका; २. वृद्धव्यास-अपरार्क; ३. बृहव्यास-मिताक्षरा; ४. लघुव्यास, महाव्यास, दान
भगवानस्य राज्यस्य कुलस्य च परायणम् ।।
(म. आश्र. ८.७)। व्यास-दानसागर।
पुराण में यह एवं कृष्ण द्वैपायन व्यास एक ही (भगवान् व्यास हमारे लिये अत्यंत पूज्य, एवं हमारे व्यक्ति होने का निर्देश प्राप्त है (भवि, ब्राहा. १)। गुरु है। हमारे राज्य एवं कुल के वे सर्वश्रेष्ठ आचार्य किंतु इस संबंध में निश्चित रूप से कहना कठिन है। हैं)।