Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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विश्वामित्र
एवं उस नदी का 'कौशिकी' नाम भी इसी के 'कौशिक' पैतृक नाम से प्राप्त हुआ था ( म. आ. ६५.३० ) । यह वही पुण्य स्थान था, जहाँ पूर्वकाल में वामन ने बलि वैरोचन से त्रिपाद भूमि की माँग की थी। यही स्थानमाहात्म्य जान कर इसने 'सिद्धाश्रम' में अपना आश्रम बनाया था ( वा. रा. बा. २७ - २९ ) । संभवतः यह आश्रम आद्य विश्वामित्र ऋषि का न हो कर, रामायणकालीन विश्वामित्र महर्षि का होगा ।
प्राचीन चरित्रकोश
इनके अतिरिक्त इसके देवकुण्ड (वेदगर्भपुरी ), एवं विश्वामित्री नदी के तट पर स्थित अन्य दो आश्रमों का निर्देश भी प्राप्त है ।
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परिवार—विश्वामित्र के कुल एक सौ एक पुत्र थे, जिनमें से मँझले (इक्कावनवे ) पुत्र का नाम मधुच्छन्दस् था । अपने भतिजे शुनःशेप को पुत्र मान लेने पर, विश्वामित्र ने उसे ' देवरात ' नाम प्रदान कर, अपना ज्येष्ठ पुत्र नियुक्त किया, एवं अपने बाकी सारे पुत्रों को उसका ' ज्येष्ठपद' मानने की आज्ञा दी । विश्वामित्रपुत्रों में से पहले पचास पुत्रों ने विश्वामित्र की यह आज्ञा अमान्य कर दी, जिस कारण इसने उन्हें ग्लेंच्छ बनने का शाप दिया । ऐतरेय ब्राह्मण के अनुसार, अपने इन पुत्रों को इसने अन्ध्र, पुण्ड्र, शवर, पुलिंद, मूतित्र आदि अन्त्य जाति के लोग बनने का शाप दिया ( ऐ. ब्रा. ७.१८ रैभ्य एवं ऋषभ याज्ञतुर देखिये ) । मधुच्छंदस् एवं अन्य पचास कनिष्ठ पुत्रों ने विश्वामित्र की आज्ञा मान ली, जिस कारण इसने उन्हें अनेकानेक आशीर्वाद प्रदान किये ।
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विश्वामित्र के उपर्युक्त शाप के कारण, इसके पुत्रों की एवं वंशजों की निम्नलिखित दो शाखाएँ बन गयी :
१. कुशिक शाखा,——जो विश्वामित्र के कृपापात्र पुत्रों से उत्पन्न हुयी, जिनमें देवरात प्रवर आता है ( भा. ९. १६.२८-३७ );
२. विश्वामित्र शाखा, जो विश्वामित्र के शाप के कारण ही कुलीन बन गये ।
पत्नियाँ -- विश्वामित्र की पत्नियाँ, एवं उनसे उत्पन्न इसके पुत्रों की जानकारी ब्रह्म, हरिवंश, वायु, ब्रह्मांड आदि पुराणों में प्राप्त है, जो संक्षेपरूप में नीचे गयी है:--
दी
पत्नी का नाम
१. रेणु
२. शालावती
३. सांकृति
४. माधवी
५. पती
विश्वामित्र
पुत्रों के नाम
रेणु, सांकृति, गालव, मधुच्छंदस्, जय, देवल, कच्छप, हरित,
अष्टक |
हिरण्याक्ष, देवश्रवस्, कति । मौद्गल्य, गालव ।
अष्टक |
कृत, ध्रुव, पूरण ।
वायु में दृषद्वती का पुत्र केवल अष्टक ही बताया गया है।
ह..वं. १.३२; ब्रह्म. १०; वायु. ९१.९९ - १०३ ) । पुत्र -- विश्वामित्र के पुत्रों की नामावली महाभारत,. वाल्मीकि रामायण एवं विभिन्न पुराणों में प्राप्त है, जो निम्न दी गयी है :
महाभारत में — अक्षीण, अंभोरद, अरालि, आंध्रक, आश्वलायन, आसुरायण, उज्जयन, उदापेक्षिन्, उपगहन, उलूक, ऊर्जयोनि, कपिल, कारीष, कालपथ, कूर्चामुख, गार्ग्य, गार्दभि, गालव, चक्रक, चांपेय, चारुमत्स्य, जंगारि, जाबालि तंतु, ताडकाग्नन, देवरात ( शुनःशेप), नवतंतु, नाचिक, नारद, नारदिन, नैकदृश, पर, पर्णजंघ ( वल्गुजंघ ), पौरव, बकनख, बभ्रु बाभ्रवायणि, भूति, मधुच्छंदस्, मारुतंतत्र्य, मार्दम, मुसल, यति, यमदूत, याज्ञवल्क्य, लीलाढ्य, वक्षोग्रीव, वज्र, वातन्न, वादुलि, विभूति, शकुन्त, शिरी शिन्, शिलायूप, शुचि, श्यामायन संश्रुत्य, सालंकायन, सित, सुरकृत्,, सुश्रुत, सूत, सेयन, सैंधवायन, स्थूण, हिरण्याक्ष (म. अनु. ४.४९-५९ ) । इन पुत्रों में से हिरण्याक्ष को छः पुत्र उत्पन्न हुए थे ।
हविष्पंद ( वा. रा. बा. ५७ ) । विश्वामित्र के ये सारे पुत्र ( २ ) रामायण में -- दृढनेत्र, मधुष्पंद, महारथि एवं ब्राह्मणदेशविवर्धक एवं गोत्रकार माने जाते हैं ।
(३) हरिवंश एवं पद्म में कवि, क्रोधन, स्वसृम ( स्वसृप ), पितृवति ( पितृवर्तिन् ), पिशुन, वाग्दुष्ट, हिंस्त्र (ह. वं. १.२१.५; पद्म. सृ. १० ) ।
(४) अन्य ग्रंथों में -- हिरण्याक्ष, देवश्रवस् (देवरात, शुनःशेप), कति, रेणु ( रेणुक, रेणुमत् ), सांकृति, गालव, मधुच्छन्दस्, जय (नय), देवल (देव), कच्छ, हरित ( द्वारित), अष्टक, कृत, ध्रुव, पूरण। इनमें से
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