Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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वीतहव्य
प्राचीन चरित्रकोश
वीर
आगे चल कर क्षत्रियसंहार से परशुराम के निवृत्त होने वहाँ उस गाय का संबंध जमदग्नि एवं असित ऋषियों के पर, यह हिमालय से लौट आया, एवं इसने माहिष्मती साथ निर्दिष्ट है (अ. वे. ५.१७.६-७; १८.१०-१२)। नामक नगरी की स्थापना की । पश्चात् इसने अयोध्या किन्तु इस कथा का सही अर्थ अस्पष्ट है। पर आक्रमण किया, एवं वहाँके इक्ष्वाकुवंशीय फल्गुतंत्र अथर्ववेद में अन्यत्र इसे संजयों का राजा बताया राजा को पराजित किया। आगे चल कर, इसने का शि देश | गया है, एवं इसीके द्वारा भृगुऋषि का वध होने का पर आक्रमण किया , किन्तु यह उस देश पर विजय न निर्देश वहाँ प्राप्त है (अ. वे. ५.१९.१ )। संभवतः पा सका, एवं इसका एवं काशिराजाओं का युद्ध पीढ़ियों इस कथा का संकेत परशुराम के पिता जमदग्नि भार्गव की तक चलता रहा।
मृत्यु से होगा, एवं इस कथा में निर्दिष्ट वीतहव्य हैहय महाभारत में इस ग्रंथ में इसे हैहय कहा गया है, वंशीय होगा। यदि यह सच हो, तो हैहयवंशीय वीतहव्य एवं इसकी दस पत्नियों का निर्देश वहाँ प्राप्त है। अपनी | एवं यह दोनों एक ही होंगे (वीतहव्य २. देखिये)। इन पनियों से इसे प्रत्येक से दस पुत्र उत्पन्न हुए, जिन्होंने वीतहव्य श्रायस-एक राजा (ते. सं. ५.६, ५.३; काशि देश के हर्यश्व; सुदेव एवं दिवोदास राजाओं को का. सं. २२.३; पं. ब्रा. २५.१६.३)। यह संभवतः वीतपराजित किया। .
हव्य आंगिरस के वंश में ही उत्पन्न हुआ होगा। पंचविंश आगे चल कर, काशि के दिवोदास राजा को भरदाज ब्राह्मण में इसे 'निर्वासित जीवन व्यतीत करनेवाला' मुनि के कृपाप्रसाद से प्रतर्दन नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। (निरुद्ध ) राजा बताया गय
(निरुद्ध ) राजा बताया गया है (पं. बा. ९.१.९)। प्रतदन ने इसके सारे पुत्रों का वध किया, एवं इस पर | किन्तु भाष्यकार इस एक राजा नहा, बाल्क ए: भी इतना जोरदार आक्रमण किया कि, यह भृगु ऋषि के | मानते है । आश्रम में जा कर छिप गया।
संतति प्रदान करनेवाले यज्ञ की प्रशंसा करते समय, इसका पीछा करते हए प्रतन भृगुऋषि के आश्रम | इसका निर्देश उदाहरण के रूप में प्राप्त है, जहाँ ऐसा में पहँच गया, एवं इसे हूँढने लगा। इस पर भृगुऋषि ने | ही एक यज्ञ करने के कारण इसे १००० पुत्र उत्पन्न होने प्रतर्दन से कहा कि, उसके आश्रम में रहनेवाले सारे | की जानकारी दी गयी है। लोग ब्राह्मण ही है, एवं वहाँ क्षत्रिय कोई भी नहीं है। वीति-भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। पश्चात् भृगुऋषि के कहने पर इसने अपने क्षत्रियधर्म । २. एक अनिविशेष। को छोड़ दिया, एवं यह ब्राह्मण बन गया। | वीतिमत् -एक राजा, जो रैवत मनु का पुत्र था
तपस्थी-आगे चल कर भृगुऋषि के कृपाप्रसाद से | (पद्म. स. ७)। यह ब्रह्मर्षि बन गया, एवं इसे गृत्समद नामक पुत्र उत्पन्न | वीतिहोत्र-हैहयवंशीय वीतहव्य राजा का नामान्तर हुआ ( म. अनु. ३०.५७-५८)। इसका गोत्र भार्गव | (वीतहव्य २. देखिये )। था एवं यह उस गोत्र का मंत्रकार भी था। वीतहव्य २.(स्वा. प्रिय.) एक राजा, जो भागवत के अनुसार नामक एक जीवन्मुक्त ऋषि की कथा वसिष्ठ ने राम से | प्रियव्रत एवं बर्हिष्मती के पुत्रों में से एक था । इसके पुत्रों कथन की थी, जो संभवतः इसीकी ही होगी। कई | के नाम रमणक एवं धातकि थे (भा. ५.१.२५,२०.३१)। अभ्यासक, वैदिक साहित्य में निर्दिष्ट बीतहव्य आंगिरस | ३. (सु. नरि.) एक राजा, जो इंद्रसेन राजा का पुत्र, नामक ऋषि एवं यह दोनों एक ही मानते है। एवं सत्यश्रवस् राजा का पिता (भा. ९.२.२०)। .वीतहव्य आंगिरस-एक राजा, जो ऋग्वेद के | ४. (सो. क्षत्र.) एक राजा, जो सुकुमार राजा का कई सूक्तों का प्रणयिता माना जाता है (ऋ. ६.१५)।। पुत्र, एवं भर्ग राजा का पिता था (भा. ९.१७.९)। विष्णु ऋग्वेद में सुदास राजा के समकालीन के रूप में, एवं एवं वायु में इसे क्रमशः 'वैनहोत्र' एवं 'वेण्होत्र' भरद्वाज ऋषि के साथ साथ इसका निर्देश प्राप्त है (ऋ. | कहा गया है।
५. एक ऋषि,जो युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में उपस्थित था। अथर्ववेद में, एक गाय (अथवा ब्राह्मण स्त्री) का हरण | वीर-एक असुर, जो कश्यप एवं दनायु के पुत्रों में करने के कारण, इसका एवं इसके 'वैतहव्य' नामक अनु- | से एक था (म. आ. ५९.३२)। गामियों का पराजय होने की एक संदिग्ध कथा प्राप्त है। २. (सो. कुरु.) धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों में से एक ।