Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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वामन
प्राचीन चरित्रकोश
वायु
का रूप धारण किया। महाभारत में इसका विस्तृत स्वरूप- था, जहाँ आगे चल कर विश्वामित्र ने अपना आश्रम वर्णन प्राप्त है, जहाँ इसे मुण्डी, यज्ञोपवीती, कृष्णजिन- | प्रस्थापित किया। धारी, शिखी, पलाशदण्डधारी कहा गया है। इसी वामन पुराण में वामन के एक सौ इकतीस वामनस्थानों ब्राह्मण बटु के रूप में यह बलि वैरोचन के यज्ञमण्डप में का निर्देश प्राप्त है, जहाँ विभिन्न नामों से वामन की पूजा प्रविष्ट हुआ।
| की जाती थी (वामन. ९०)। इससे प्रतीत होता है कि, __वामन ने बलि वैरोचन से त्रिपाद भूमि की याचना | एक समय भारत के सारे प्रदेशों में वामन को देवता
की, जिसे बलि ने 'तथास्तु' कहा । तत्पश्चात् वामन ने | मान कर उसकी पूजा की जाती थी। विराट रूप धारण कर पहले दो पगों में पृथ्वी एवं स्वर्ग २. एक नाग, जो कश्यप एवं कद्रू के पुत्रों में से का व्यापन किया, एवं तीसरा पग बलि के मस्तक पर | एक था। रखने के लिए उद्यत हुआ (भा. ८.१८.२१)। उस | ३. एक दानव, जो कश्यप एवं दनु के पुत्रों में से समय वीरभद्रादि असुर युद्ध करने के लिए उद्यत | एक था। हुए, जिन्हें वामन ने परास्त किया। उस समय बलि, ४. एक पक्षिराज, जो गरुड के पुत्रों में से एक था । प्रहाद एवं बलिपत्नी विंध्यावालि ने वामन की स्तुति | ५. एक दिग्गज, जो इरावती के चार पुत्रों में से एक की । फिर वामन ने प्रसन्न हो कर बलि को नमुचि, शंबर, था। इसके अन्य तीन भाईयों के नाम ऐरावत, सुप्रतीक प्रह्लाद आदि असुरों के साथ 'सुतल' नामक पाताल | एवं अंजन थे (ब्रह्मांड. ३.७.२९२)। घटोत्कच के लोक में स्थापित किया, एवं इंद्र को त्रिभुवन का राज्य | सैन्य में से एक राक्षस का यह वाहन था (म. भी. समर्पित किया (म. स. परि. १. क्र. २१. पंक्ति ३११- ६०.५१)। ३७४: वामन. ३१; स्कंद. १.१.१८-१९; मत्स्य. २४४- वामनिका-स्कंद की अनुचरी एक मातृका (म. श. २४६)।
| ४५.२३)। वामन-अवतार का अन्वयार्थ-प्राचीन भारत के | वामरथ्य--अत्रिवंश का एक गोत्रकार एवं प्रवर । बिहार प्रदेश में वामन का अवतार हुआ, ऐसा माना | वामा-स्कंद की अनुचरी एक मातृका (म.श.४५. जाता है। बलि वैरोचन का बंधन कर वामन ने उसे | १२)। पाठभेद -भ्रमा'। उसके परिवार के साथ समुद्र में ढकेल दिया। वायत--पाशद्युम्न नामकं आचार्य का पैतृक नाम (ऋ.२. बंगाल की खाड़ी में 'बलिद्वीप' नामक प्रदेश आज भी ३३.२)। वयत् का वंशज होने से उसे यह पैतृक नाम दिखाई देता है, जो आधुनिक काल में आग्नेय एशिया में | प्राप्त हुआ होगा। स्थित 'बाली' देश नाम से प्रसिद्ध है । इन सारे निर्देशों से | वाम्नेय-- बृहदुक्थ वामदेव नामक आचार्य का प्रतीत होता है कि, प्रागैतिहासिक काल में पूर्व-भारत | नामान्तर (बृहदुक्थ वामदेव देखिये)। में लंबे कद एवं मोटे शरीर के कई लोग रहते थे, वायु--एक वैदिक अंतरिक्षदेवता, जिसका एक जिन्हे उत्तरीपूर्व दिशा से भारत में प्रवेश करनेवाले | संपूर्ण सूक्त ऋग्वेद में प्राप्त है (ऋ. ४.४६) । एक देवता छोटे कद के कई कृश लोगों ने परास्त किया। यही के रूप में इसका निर्देश प्रायः सर्वत्र इंद्र के साथ प्राप्त है, कारण है कि, पर्व भारत में आज भी मंगोलवंशीय लोग | तथा इंद्र एवं वायु में से कौनसा भी एक देव वैदिक अंतअधिक रूप में पाये जाते हैं।
रिक्ष-देवताओं का प्रतिनिधित्व कर सकता है, ऐसा निर्देश उपाप्तना--कुरुक्षेत्र में वामन का एक मंदिर बनवाया | निरुक्त में प्राप्त है (नि. ७.५)। गया था, जो आज भी विद्यमान है (मस्त्य. २४४. जन्म एवं स्वरूपवर्णन-विश्वपुरुष की श्वास से इसकी २-३)। भाद्रपद शुक्ल द्वादशी के जिस दिन वामन उत्पत्ति हुई (ऋ. १०.९०)। त्वष्ट इसका जामात था, अवतीर्ण हआ, वह दिन आज भी 'वामन द्वादशी' नाम | एवं इसने आकाश के गर्भ में से मरुतों को उत्पन्न किया से सुविखात है।
| था (ऋ. ८.२६; १.१३४ )। बिहार प्रदेश में शहाबाद जिले में बक्सार ग्राम में | यह सुंदर, मनोजब एवं सहस्रनेत्रोंवाला बताया गया वामन का आश्रम दिखाया जाता है, जो सिद्धाश्रम नाम | है (ऋ. १.२३)। इसके पास एक प्रकाशमान रथ था, से प्रसिद्ध है। इस स्थान पर सर्वप्रथम वामन का आश्रम जिसे हज़ार अश्वों का एक दल खींचता था (ऋ. १.
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