Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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विरोचना
प्राचीन चरित्रकोश
विवस्वत
विरोचना-असुरराज प्रह्लाद की कन्या, जो विरोचन | ऋग्वेद में--इस ग्रंथ में यद्यपि विवस्वत् का स्वतंत्र दैत्य की बहन थी । इसका विवाह त्वष्ट से हुआ था, | सूक्त अप्राप्य है, फिर भी एक स्वतंत्र देवता के नाते जिससे इसे विरज नामक पुत्र उत्पन्न हुआ था ( भा. ५. इसका निर्देश ऋग्वेद में प्रायः तीस बार आया है। इसे १५.१५ ) । वायु में विश्वरूप त्रिशिरस् नामक मुनि को अश्वियों का एवं यम का पिता कहा गया है (ऋ. १०. भी इसीका ही पुत्र कहा गया है ( वायु. ८४.१९)। १७; १०.१४.१, ५८.१)। ऋग्वेद में अन्यत्र सभी
२. स्कंद की अनुचरी एक मातृका (म. श. ४५. | देवताओं को भी विवस्वत् की संतान ( जनिमा ) कहा गया २८)।
है (ऋ. १०.६३.१ )। त्वष्ट्र की कन्या सरप्यू इसकी विरोध-एक राक्षस, जो वात नामक राक्षस का पुत्र | पत्नी थी (ऋ. १०.१७.१-२)। था । इसके पुत्र का नाम जनान्तक था ( ब्रह्मांड. ३.७. दूत--ऋग्वेद में एक ही बार मातरिश्वन को विवस्वत्
का दूत कहा गया है (ऋ. ६.८.४)। अन्यथा सर्वत्र अग्नि विरोहण--तक्षक कुल में उत्पन्न एक नाग, जो जन- को इसका दूत कहा गया है (ऋ. १.५८.१, ४.७.४; ८. मेजय के सर्वसत्र दग्ध हुआ था।
| ३९.३; १०.२१.५)। विलास-पश्चिमी घाट में रहनेवाला एक तपस्वी। निवासस्थान--विवस्वत् के सदन का निर्देश ऋग्वेद में इसके मित्र का नाम भास था। 'विमलज्ञान' की | अनेकबार प्राप्त है । देवगण एवं इंद्र इस सदन में आनंद प्राप्ति हो कर ये दोनों मुक्त हुए (यो. वा. ५.६५-६७)। | मनाते है (ऋ. ३.५१), एवं इसी सदन में गायक-गण
विलोमन--(सो. कुकुर.) एक राजा, जो भागवत | इंद्र एवं जल की महानता का गुणगान करते है (ऋ. १. के अनुसार वह्नि राजा का, एवं विष्णु के अनुसार कपोत
५३; १०.७५) रोमन राजा का पुत्र था। भागवत में इसे कपोतरोमन् का
'देवताओं का मित्र-विवस्वत् का सब से बड़ा मित्र इंद्र पिता कहा गया है (भा. ९.२४.१९-२०)।
है, जिसकी यह पुनः पुनः स्तुति करता है । इंद्र इसकी विलोहित--एक रुद्र, जो कश्यप एवं सुरभि के पुत्रों
स्तुति से प्रसन्न होता है. (ऋ. ८.६), एवं अपना में से एक था।
समस्त धनकोश विवस्वत् के बगल में रख देता है (ऋ. २. एक राक्षस, जो कश्यप एवं खशा के पुत्रों में से |
२. १३)। विवस्वत् की इस उँगलियों के द्वारा इंद्र एक था। इस के तीन सिर, तीन पैर एवं तीन हाथ थे
युलोक से जल नीचे गिराता है (ऋ. ८.६१)। (वायु. ६९.७६)।
___ विवस्वत् का अन्य एक मित्र सोम है । वह विवस्वत् विवक्षु--(सो. कुरु. भविष्य.) कुरुवंशीय निमिचक्र
के साथ ही रहता है (ऋ. ९.२६.४ ), एवं विवस्वत् राजा का नामान्तर । मत्स्य में इसे अधिसोमकृष्ण राजा
की कन्याएँ ( उँगलियाँ ) सोम को स्वच्छ करती है (ऋ. का पुत्र कहा गया है (मत्स्य. ५०.७८; निमिचक्र देखिये)। विवर्धक-वसिष्ठकुलोत्पन्न गोत्रकार विचक्षुष का
९.१४ )। विवस्वत् की स्तुतियाँ पिशंग नामक सोम को
प्रवाहित करती है (ऋ. ९.९९)। इसका आशीवाद नामान्तर।
प्राप्त कर लेने पर, सोम की धाराएँ बहने लगती है विवर्धन--युधिष्ठिर का सभा का एक राजा (म. स.
| (ऋ. ९.१०)। ४.१८)।
२. एक यक्ष, जो मणिवर एवं देवजनी के पुत्रों में से | अश्विनीकुमार भी इसके साथ रहते है ( १.४६. एक था।
१३)। अश्वियों के रथ जोतने के समय, विवस्वतू विवस्वत-एक देवता, जो संभवतः उदित होनेवाले | के उज्वल दिनों कों का प्रारंभ होता है ( ऋ. १०.३९: सूर्य का प्रतिनिधित्व करता है।
श. बा. १०.५.१)। ___ ऋग्वेद में विवस्वत् , आदित्य, पूषन् , सूर्य, अर्थमन् , एक उपास्य-देवता के नाते, वरुण एवं अन्य देवताओं मित्र, भग आदि सूर्य से संबंधित (सौर्य) देवताओं को | के साथ विवस्वत् का निर्देश प्राप्त है (ऋ. १०.६५) विभिन्न देवता माना गया हैं (ऋ. ५.८१.४; १०.१३९. | अपने उपासकों के द्वारा उपासित् विवस्वत् एक आक्रमक १)। किंतु वे स्वतंत्र देवता न हो कर एक ही सूर्य देवता | देवता है, जो यम से एवं आदित्यों से उनकी रक्षा करती की विभिन्न रूप प्रतीत होते है (सूर्य देखिये)। है (अ. वे. १८. ३; ऋ. ८.५६)।
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