Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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विवस्वत्
प्राचीन चरित्रकोश
विविक्त
व्युत्पत्ति--अग्नि एवं उपस् के संदर्भ में विवस्वत् शब्द | इसका निर्देश एक स्वतंत्र आदित्य के नाते नहीं, बल्कि कई बार 'दैदीप्यमान' अर्थ में प्रयुक्त किया गया है ( ऋ. | लोकेश्वर सूर्य के नाते ही किया गया प्रतीत होता है। १.९६: ७.९ ) । विवस्वत् का शब्दशः अर्थ 'प्रवाशित पुराणों में इसे अदिति का नहीं, बल्कि दाक्षायणी का पुत्र होना है, जो उपस् (उदय होना) से काफी मिलता जुलता | कहा गया है। इसे श्रावण माह का आदित्य एवं प्रजापति भी है। शतपथ ब्राह्मण के अनुसार, यह दिन एवं रात्रि को कहा गया है (वायु. ६५.५३)। इन ग्रंथों में भी इसे सूर्य प्रकाशित ( विवस्ते ) करता है, इसी कारण इसे विवस्वत् का ही प्रतिरूप माना गया है, एवं मनु, श्राद्धदेव, यम एवं नाम प्राप्त हुआ ( श. ब्रा. १०.५.२ )।
यमी को इसकी संतान मानी गयी हैं (विष्णु. ४.१.६ )। विवस्वत् देवता का अन्वयार्थ-व्युत्पत्तिजन्य अर्थ, महाभारत में इसकी पत्नी का नाम संज्ञा दिया गया अग्नि, अश्विनों एवं सोम के साथ इसका संबंध, एवं यज्ञस्थल | है, एवं नासत्य एवं दस्र नामक दो अश्विनीकुमार इसके में इसका निवास, इन सारी सामग्री की ओर संकेत कर, | पुत्र बताये गये हैं, जो वस्तुतः इसकी नहीं, बल्कि सूर्य की कई अभ्यासकों का कहना है कि, उदित होनेवाला सूर्य ही | ही संतान हैं । इसने वेदोक्त विधि के अनुसार यज्ञ कर वैदिक विवस्वत् है। अन्य कई अभ्यासक इसे सूर्यदेवता | के अपने पिता आचार्य कश्यप को दक्षिणा के रूप में एक ही मानते है ( सूर्य देखिये)। बगेन के अनुसार, विवस्वत् दिशा का दान कर दिया था। इसी कारण, उस दिशा को मुख्यतः एक अग्निदेवता है, जिसका ही एक रूप सूर्य | दक्षिण दिशा कहते है। है (बर्गेन. १..८)।
४. एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. १०.१३)। एक देवता के नाते विवस्वत का महत्त्व वैदिकोत्तर
५. ज्येष्ठ माह में प्रकाशित होनेवाला सूर्य, जिसकी साहित्य में कम होता गया, एवं अन्त में इसका स्वतंत्र
चौदह सौ किरणें रहती है (मत्स्य. १.७८)। भागवत एवं अस्तित्व विनष्ट हो कर यह सूर्य एवं आदित्य देवताओं
ब्रह्मांड के अनुसार, यह नभस्य (भाद्रपद) माह में में विलीन हो गया (सूर्य देखिये). .
प्रकाशित होता है। . २. मानवजाति का प्रथम यज्ञकर्ता, जो मनु एवं यम
६. चाक्षुष मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक (मत्स्य. ९. · का पिता माना जाता है (ऋ. ८.५२ १०.१४.१७)। मनु इसका पुत्र होने के कारण, उसे 'विवस्वत् ' एवं ।
७. एक असुर, जो गरुड के द्वारा मारा गया था . 'वैवस्वत पैतृक नाम से भूषित किया गया है ( अ. वे.
(म. उ. १०३.१२)। ८.१०; श. बा. १६.४.३)। तैत्तिरीय संहिता में मनुष्यों
८. एक सनातन विश्वेदेव (म. अनु. ९१.३१)। को भी विवस्वत् की संतान कहा गया है ( तै. सं. ६.५.
विविंश-(सू. इ.) एक सूर्यवंशीय राजा, जो महाभारत में भी यम एवं मनु को विवस्वत् की संतान
महाभारत, विष्णु एवं वायु के अनुसार विंश राजा का
| पुत्र था (म. आश्व. ४.५; वायु. ८६.६ ) । इसके खनीकहा गया है (म. आ. ७०.१०; ९०.७)।
नेत्र आदि पंद्रह पुत्र थे। ईगनी साहित्य में--इस साहित्य में निर्दिष्ट विवन्द्वन्त् (यिम के पिता) से विवन्वत् काफी साम्य रखता है।
२. एक राजा, जो क्षुप राजा का पुत्र था। विदर्भ जिस प्रकार विवस्वत् पृथ्वी के अग्नि का आद्यजनक माना
कन्या नंदिनी इसकी माता थी (मार्क. ११६ )। जाता है, उसी प्रकार विवन्द्वन्त'को 'हओम' बनाने- विविंशति-(सो. कुरु.) धृतराष्ट्र का एक महारथी वाला पहला व्यक्ति कहा गया है ।
पुत्र । यह द्रौपदी स्वयंवर में उपस्थित था (म. आ. ३. एक आदित्य, जो बारह आदित्यों में से एक माना
१७७.१)। दुर्योधन के द्वारा विराट की गोशाला पर जाता है (वायु. ३.३; ६६.६६; विष्णु. १.१५.१३१)।
किये गये आक्रमण में भी यह उपस्थित था (म. भी. यद्यपि ऋग्वेद में विवस्वत् को अदिति का पुत्र नहीं कहा
३३.३)। भारतीय युद्ध में यह भीम के द्वारा मारा गया। गया है. फिर भी यजर्वेद एवं ब्राह्मण ग्रंथों में विवस्वत को २. एक राजा, जो चाक्षुष राजा का पुत्र, एवं रंभ राजा आदित्य कहा गया है (वा. सं. ८.५: मै. सं. १.६ )। | का पिता था (भा. ९.२.२४-२५)।
महाभारत में इसे कश्यप एवं अदिति के बारह विविक्त--कुशद्वीप का एक राजा, जो हिरण्यरेतस पुत्रों में से एक कहा गया है (म. आ. ७०.९)। राजा का पुत्र था (भा. ५.२०.२४)।
२३)।