Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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विरजा
प्राचीन चरित्रकोश
विराट
४. कृष्ण की एक प्रियपत्नी, जो राधा की सौत थी। शस्त्रसंभार को शमीवृक्ष में छिपा कर, पाण्डव विराटनगरी सवती-मत्सर के कारण राधा ने इसे नदी बनने का शाप | में पहुँच गये । युधिष्ठिर के दुर्भाग्य की कहानी सुन कर, यह दिया, जिस कारण, यह विरजा नामक नदी बन गयी। मत्स्यदेश का अपना सारा राज्य उसे देने के लिए उद्यत क्षार-समुद्रादि अष्टसमुद्र इसीके ही पुत्र माने जाते हैं | हुआ। किन्तु युधिष्ठिर ने उसका इन्कार कर, स्वयं को एवं (ब्रह्मवै. ४.२)।
अपने भाइयों को अज्ञात अवस्था में एक वर्ष तक रखने के विरजामित्र-स्वायंभुव मन्वन्तर के 'विरजस्' नामक | लिए इसकी प्रार्थना की । (म. वि. ९)। वसिष्ठपुत्र का नामान्तर । इस शब्द का शुद्ध पाठावरजस्+ | पाण्डवों के अज्ञातवास की जानकारी प्रथम से ही विराट मित्र होने की संभावना है।
को थी, यह महाभारत में प्राप्त निर्देश अयोग्य, एवं उसी विरथ--( सो. द्विमीढ.) द्विमीढवंशीय बहुरथ
ग्रंथ में अन्यत्र प्राप्त जानकारी से विसंगत प्रतीत होता है। राजा का नामान्तर । मत्स्य में इसे नृपंजय राजा का पुत्र
| पश्चात् पाँच पाण्डव एवं द्रौपदी विराट-नगरी में कहा गया है।
निम्नलिखित नाम एवं व्यवसाय धारण कर रहने विरस-एक कश्यपवंशीय नाग (म. उ. १०१.१६) | लगे :--१. युधिष्ठिर (कंक)--विराट का द्यतविद्याप्रवीण विराज-(स्वा. नाभि.) एक राजा, जो विष्णु के राजसेवक (म. वि. ६.१६); २. अर्जुन ( बृहन्नला )-- अनुसार नर राजा का पुत्र था।
| विराट के अंतःपुर का सेवक, जो विराटकन्या उत्तरा को २. स्वायंभुव मनु का नामान्तर (मत्स्य. ३.४५, गीत, वादन, नृत्य आदि सिखाने के लिए नियुक्त किया ब्रह्मांड. २.९.३९; मनु स्वायंभुव देखिये)। गया था (म. वि. १०.११-१२); ३. भीमसेन (वल्लव)
विराज--(सो. कुरु ) एक राजा, जो कुरु राजा का पाकशालाध्यक्ष (म. व. ७.९-१०); ४. नकुल (ग्रंथिक पौत्र, एवं अविक्षित् राजा का पुत्र था (म. आ. ८९. अथवा दामग्रंथी)-अश्वशालाध्यक्ष (म. वि. ११.९-१०);. ४५)।
५. सहदेव (तंतिपाल अथवा अरिष्टनेमि)-गोशाला२. (सो, कुरु.) धृतराष्ट्र के शतपुत्रों में से एक, जो | ध्यक्ष (म. वि. ९.१४);६.द्रौपदी (सैरंध्री)-- विराटभीम के द्वारा मारा गया (म. भी. ९९.२६ )। पत्नी सुदेष्णा की सैरंध्री (म. वि. ३.१७, ८)। ।
विराट--मत्स्य देश का सुविख्यात राजा, जो मरुद्गणों कीचकवध-इस प्रकार पाण्डव छमा नामों से अपने - के अंश से उत्पन्न हुआ था (म. वि. ३०.६; आ. ६१. | अपने कार्य करते हए रहने लगे। इतने में विराट के ७६)। मत्स्य देश में स्थित विराट-नगरी में इसकी सेनापति कीचक ने द्रौपदी पर पापी नजर डाल दी, जिस राजधानी थी। इसी कारण संभवतः इसे विराट नाम प्राप्त
कारण वह भीम के द्वारा मारा गया (म. वि. ६१.६८; हुआ था।
परि. १. क्र. १९. पंक्ति ३१-३२)। यह अपने समय का एक श्रेष्ठ एवं आदरणीय राजा सुशर्मन से युद्ध--सेनापति कीचक की मृत्यु से इसकी था। अपने पुत्र उत्तर एवं शंख के साथ यह द्रौपदी- सेना काफी कमजोर हो गयी। यही सुअवसर पा कर, स्वयंवर में उपस्थित था (म. आ. १७७.८)। यह मगध- त्रिगर्तराज सुशर्मन् ने मत्स्य-देश पर आक्रमण किया, राज जरासंध का मांडलिक राजा था। जरासंध के द्वारा | एवं इसकी दक्षिण दिशा में स्थित गोशाला लूट ली। यह उत्तरदिग्विजय के लिए नियुक्त किये गये मांडलिक | देख कर अपनी सारी सेना एकत्रित कर, विराट ने राजाओं में से यह एक था (ह. वं. २.३५, जरासंध | सशर्मन पर हमला बोल दिया। इस सेना में, इसके देखिये )। युधिष्ठिर के राजसूययज्ञ के समय, सहदेव के | शतानीक एवं मदिराक्ष नामक दो महारथी भाई; द्वारा किये दक्षिण दिग्विजय में, उसने इसे जीता था | उत्तर एवं शंख नामक दो पुत्र, एवं अजुन को छोड़ (म. स. २८.२) । उस यज्ञ के समय, इसने युधिष्ठिर | कर बाकी चार ही पाण्डव शामिल थे (म. वि. ३१.५८४)। को सुवर्णमालाओं से विभूषित दो हज़ार हाथी उपहार के | काफी समय तक युद्ध चलने पर, सुशर्मन् ने इसे रूप में दिये थे (म. स. ४८.२५)।।
जीवित पकड़ कर बन्दी बना लिया । जैसे ही युधिष्ठिर को का अज्ञातवास-वनवास समाप्ति के पश्चात् | यह पता चला, उसने भीमसेन को एवं उसके चक्ररक्षक अपने अज्ञातवास का एक वर्ष पाण्डकों के द्वारा विराट- | के रूप में नकुल-सहदेव को इसे छड़ाने के लिए भेज नगरी में ही व्यतीत किया गया। उस समय अपने समस्त दिया । शीघ्र ही भीम ने सुशर्मन् को चारों ओर से घिरा