Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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विराट
प्राचीन चरित्रकोश
विराट
कर परास्त-किया, एवं इसकी तथा इसगे गायों की मुक्तता नगरी में उत्तरा एवं अभिमन्यु का विवाह संपन्न कराया की । पश्चात् सुशर्मन् को बाँध कर वह उसे युधिष्ठिर के | (म. वि. ६६-६७)। मामने ले आया. किन्नु युधिष्ठिर ने सुशर्मन् की मुक्तता भारतीय युद्ध में--इस यद्ध के समय, यह यद्यपि करने के लिए भीम को आज्ञा दी । पश्चात् सुशर्मन् ने अत्यंत वृद्ध हुआ था, फिर भी अपने बन्धु एवं पुत्रों के विराट की क्षमायाचना की, एवं वह त्रिगत देश चला गया साथ यह पाण्डवों के पक्ष में युद्ध करने के लिए उपस्थित (म. वि. २९.३२ ) । इस प्रकार सुशर्मन् के साथ हुए, हआ था। यधिष्ठिर के सात प्रमुख सेनापतियों में से यह युद्ध में पाण्डवों ने काफी पराक्रम दर्शाने के कारण, विराट एक था (म. उ. १५४.१०-११)। इस युद्ध में इसका ने उनका बहुत ही सम्मान किया (म. वि. ६६)। निम्नलिखित योद्धाओं से युद्ध हुआ था:--१. भगदत्त
दुर्योधन से युद्ध--उपर्युक्त युद्ध के समय, सुशर्मन् के (म. भी. ४३.४८); २.अश्वत्थामन् (म. भी. १०६. अनुरोध पर दुर्योधन ने मत्स्य देश की गोशालाओं पर ११:१०७.२१); ३. जयद्रथ (म. भी. ११२.४१-४२); आक्रमण किया, एवं इसकी गायों का हरण किया (म. ४. विंद एवं अनुविंद (म. द्रो. २४.२०); ५. शल्य वि. ३३ )। उस समय स्वयं विराट सुशर्मन् से युद्ध (म. द्रो. १४२.३०)। करने में व्यस्त था, इस कारण इसके पुत्र उत्तर ने | मृत्यु--जयद्रथ वध के उपरान्त हुए रात्रियुद्ध में यह बृहन्नला को अपना सारथी बना कर, कौरवों पर आक्रमण द्रोण के द्वारा मारा गया (म. द्रो. १६१.३४)। इसकी किया ( म. वि. ३५)।
मृत्यु पौष कृष्ण एकादशी के दिन प्रातःकाल में हुई थी(भारतसुशमन को जीत कर विराट अपनी नगरी में लौट सावित्री)। इसकी मृत्यु के उपरान्त युधिष्ठिर ने इसका दाहआते ही इसे सूचना प्राप्त हुई कि, उत्तर भी कौरवो को संस्कार किया (म. स्त्री. २६.३३), एवं इसका श्राद्ध भी परास्त कर गायों के साथ आ रहा है । तत्काल इसने किया (म. शां ४२.२)। मृत्यु के उपरान्त यह स्वर्ग में उत्तर के स्वागत के लिए अपनी सेना भेज़ दी, एवं यह जा कर विश्वेदेवों में सम्मिलित हुआ (म. स्व. ५.१३)। स्वयं कंक ( युधिष्ठिर ) के साथ द्युत खेलने बैठ गया। परिवार-इसकी कुल दो पत्नियाँ थी:-१. कोसलराज
युधिष्ठिर का अपमान--त खेलते समय विराट ने कुमारी सुरथा, जिससे इसे श्वेत एवं शंख नामक दो पुत्र अपने पुत्र उत्तर की वीरता का गान युधिष्ठिर को सुनाना उत्पन्न हुए थे; २. केकय देश के सूत राजा की कन्या फ्रारंभ किया। युधिष्ठिर इस बात को न सह सका, एवं सुदेष्णा, जो इसकी पटरानी थी (म. वि. ८.६); एवं सह जवश कह बैठा, 'बृहन्नला जिसका सारथी हो जिससे इसे उत्तर (भूमिंजय ), एवं बभ्र नामक दो पुत्र, उसे विजय प्राप्त होनी ही चाहिए। कंक की यह | एवं उत्तरा नामक एक कन्या उत्पन्न हुई थी। . वाणी सुन कर विराट क्रुद्ध हुआ, एवं इसने जोश में इसके कल ग्यारह भाई थे. जिनके नाम निम्तकार
आ कर कक के मुख पर जोर से पासा फेंक मारा, जिस थे:-१. शतानीक; २. मदिराक्ष (मदिराश्व, विशालाश्व); कारण उसकी नाक से खून बहने लगा। उसी समय उत्तर | ३. श्रतानीक; ४. श्रतध्वजः ५. बलानीक; ६. जयानीका बहाँ आ पहचा, एवं उसने बृहन्नला के पराक्रम की वाता। ७. जयाश्व; ८. रथवाहन; ९. चंद्रोदय; १०. समरथ; कह सुनायी । पश्चात् उसने इसे युधिष्ठिर की क्षमा माँगने | ११. सूर्यदत्त (म. द्रो. १३३.३९-४०)। इन भाइयों के लिए भी कहा।
में से शतानीक इसका सेनापति था, एवं मदिराक्ष उत्ता-अभिमन्यु-विवाह--पाण्डवों का अज्ञातवास | 'महारथी' था। . समाप्त होने पर, उनकी सही जानकारी जब विराट को इसके सारे पुत्र एवं सारे भाई भारतीय युद्ध में ज्ञात हुई, तब इसे बड़ा दुःख हुआ । पाण्डवों के उपकारों शामिल थे। उनमें से शंख, सूर्यदत्त एवं मदिराक्ष द्रोण के का बदला चुकाने, तथा उनका सत्कार करने की दृष्टि से, | द्वारा, श्वेत एवं शतानीक भीष्म के द्वारा, एवं उत्तर शल्य इसने अपनी कन्या उत्तरा का विवाह अर्जुन के साथ करना | के द्वारा मारे गये। चाहा । किन्तु अर्जुन ने इस प्रस्ताव का इन्कार किया, एवं| २. सुतप देवों में से एक (वायु. १००.१५)। अपने पुत्र अभिमन्यु का उत्तरा के साथ विवाह कराने की । ३. आनंद नामक गालव्यकुलोत्पन्न ब्राह्मण का मानसइच्छा प्रकट की। अर्जुन का यह प्रस्ताव सुन कर विराट | पुत्र (आनंद १. देखिये)। को अत्यंत आनंद हुआ, एवं इसने अपने उपप्तव्य नामक | ४. प्रतईन देवों में से एक (वायु. ६२.२६)।
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